जौनपुर के जनजीवन के लिए हानिकारक है कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग

शारीरिक
19-07-2019 11:27 AM
जौनपुर के जनजीवन के लिए हानिकारक है कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग

वर्तमान में खाद्य पदार्थों के उत्पादन को बढ़ाने के लिये और उन्हें हानिकारक कीटों से बचाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग अधिकाधिक मात्रा में किया जा रहा है। किंतु इनसे होने वाला लाभ वर्तमान में नुकसान का कारण बन गया है। कीटनाशक वास्तव में एक प्रकार के विषाक्त पदार्थ हैं जिनका अत्यधिक प्रयोग दुष्प्रभावों को उत्पन्न करता है। यूं तो इन्हें कीटों को मारने के लिये बनाया जाता है किंतु दुर्भाग्य से अगर कोई व्यक्ति इनके सम्पर्क में आ जाये तो उसे कीटों से भी अधिक नुकसान झेलना पड़ेगा। विषाक्त कीटनाशकों के संपर्क में आने से कई स्वास्थ्य सम्बंधी गम्भीर बीमारियां हो सकती हैं और व्यक्ति श्वसन समस्याओं से लेकर कैंसर (Cancer) तक की बीमारियों से ग्रसित हो सकता है। तो आईये सबसे पहले यह जानते हैं कि हम कीटनाशकों के सम्पर्क में आते कैसे हैं?

कीटनाशकों से हमारा सम्पर्क कई कारणों से हो सकता है। जैसे जब किसान और खेत श्रमिक फसलों, पौधों और बीजों को कीटों से बचाने के लिये उनमें कीटनाशकों का छिड़काव करते हैं तो इन पदार्थों का प्रत्यक्ष प्रयोग हमें विषाक्तता से प्रभावित कर देता है। इसी प्रकार व्यवसायों और घरों में विभिन्न प्रकार से प्रयोग की जाने वाली लकड़ी पर भी कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। जानवरों के शरीर में उपस्थित कीटों को खत्म करने के लिये कीटनाशक उपयोग में लाये जाते हैं और इन जानवरों के सम्पर्क में आने से हम भी प्रभावित हो सकते हैं। कई बार हम विभिन्न बागानों में घूमते हैं जहां कीटनाशकों का छिड़काव हुआ होता है। वहां बैठने और घूमने पर हम भी कीटनाशकों के सम्पर्क में आ जाते हैं। घरों में किये गये कीटनाशकों के छिड़काव से इसके शेष बचे अवशेष हमारे खाने में शामिल हो सकते हैं और हमें बीमार कर सकते हैं।

कीटनाशक अंतर्ग्रहण, श्वसन और त्वचा के माध्यम से शरीर में प्रवेश करते हैं जिसके कारण हानिकारक प्रभाव उत्पन्न होते हैं। इसके तत्कालिक लक्षण 48 घंटे के अंदर दिखने लगते हैं, जोकि निम्नलिखित हैं:
एलर्जी संवेदीकरण (Allergic sensitization)
आँखों और त्वचा में जलन
मितली, उल्टी, दस्त
सिरदर्द और अचेतन होना
अत्यधिक कमज़ोरी, दौरे या मृत्यु

कीटनाशकों के बार-बार सम्पर्क में आने से हानिकारक प्रभाव विस्तारित अवधि का भी हो सकता है जो समय के साथ बहुत गंभीर हो जाता है। इसके कारण अस्थमा (Asthama), तनाव और कैंसर जैसी भयावह बीमारियां हो जाती हैं। वर्तमान में दुनिया भर में लगभग 1000 से अधिक कीटनाशकों का उपयोग किया जा रहा है। प्रत्येक कीटनाशक के अलग-अलग गुण और विषैले प्रभाव होते हैं जिनके द्वारा हम प्रभावित हो सकते हैं। डायक्लोरो-डायफिनाइल‌-ट्रायक्लोरोइथेन- डीडीटी (Dichloro-diphenyl-trichloroethane) और लिंडेन (Lindane) जैसे कीटनाशक प्रकृति में कई सालों तक बरकरार रहते हैं जो प्रकृति को नुकसान पहुंचाते हैं। कीटनाशकों के इस्तेमाल के संदर्भ में अगर कुछ सावधानियां बरती जायें तो इनके दुष्प्रभावों से बचा जा सकता हैं।
इनमें से कुछ सावधानियां निम्नवत हैं:
किसी को भी कीटनाशकों की असुरक्षित मात्रा के संपर्क में नहीं आना चाहिए।
फसलों, घरों या बगीचों में होने वाले कीटनाशक छिड़काव में व्यक्ति को सीधे शामिल नहीं होना चाहिए और छिड़काव के बाद इन क्षेत्रों से दूर रहना चाहिए।
कीटनाशक का उपयोग करते समय आवश्यकतानुसार दस्ताने और फेस मास्क (Face Mask) पहनकर अपनी सुरक्षा करनी चाहिए।
खाद्य पदार्थों, जैसे फलों और सब्जियों में कीटनाशकों का प्रयोग बहुत अधिक होता है अतः इन्हें अच्छे से धोकर और छीलकर खाना चाहिए।

पीलीभीत जिले के माधोगंज टांडा गाँव के पास गोमत ताल से निकलने वाली गोमती नदी भी कीटनाशकों के प्रभाव से अछूती नहीं है। यह नदी शाहजहाँपुर, लखीमपुर खीरी, हरदोई, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, सुल्तानपुर और जौनपुर के नौ जिलों को आवरित करते हुए अंततः वाराणसी में सैदपुर कैथी के पास गंगा नदी में मिल जाती है। आदि-गंगा कहलायी जाने वाली गोमती नदी अकार्बनिक और कार्बनिक (Carbonic) दोनों प्रकार के प्रदूषकों का सामना कर रही है। नदी में भारी मात्रा में अनुपचारित कृषि सम्बंधी अपवाह होता है जो अपने साथ कीटनाशकों को भी लेकर आता है। चूंकि कीटनाशकों में रासायनिक पदार्थों की मात्रा बहुत अधिक होती है इसलिये इसके हानिकारक रासायनों ने नदी को भी बहुत अधिक प्रदूषित कर दिया है। गोमती नदी के पानी में भौतिक-रासायनिक मापदंडों का आकलन करने पर नदी में नाइट्रेट (Nitrate), नाइट्राइट (Nitrite), क्लोराइड (Chloride), कॉलीफॉर्म (Coliforms), ताम्बा, लोहा, जस्ता, लेड (Lead), आर्सेनिक (Arsenic), कैडमियम (Cadmium) और निकल (Nickel) आदि की भारी मात्रा पायी गयी जो यह इंगित करती है कि नदी के जल की गुणवत्ता में अत्यधिक कमी आ गयी है। अगर नदी की गुणवत्ता को बनाये रखना है तो आवश्यक है कि कीटनाशकों के प्रयोग को न्यून किया जाये और इनका उचित प्रबंधन किया जाये।

हालांकि कीटनाशक खाद्य पदार्थों की पैदावार और गुणवत्ता को बढ़ाते हैं किंतु इनका असुरक्षित प्रयोग हमें घोर संकट में डाल सकता है। अतः यह आवश्यक है कि इनका प्रयोग करते समय विशेष सावधानियां बरती जाएं तथा इनके प्रबंधन की भी उचित व्यवस्था की जाये।

संदर्भ:
1. http://www.pan-uk.org/health-effects-of-pesticides/
2. https://annalsofplantsciences.com/index.php/aps/article/view/238
3. https://www.who.int/news-room/fact-sheets/detail/pesticide-residues-in-food
चित्र सन्दर्भ:-
1. https://www.flickr.com/photos/garycycles8/9789207033/in/photostream/
2. http://res.publicdomainfiles.com/pdf_view/61/13544175612828.jpg

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