समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
मनुष्य एक चेतन प्राणी है, जो हर तथ्य के पीछे तर्क को जानने का प्रयास करता है। किंतु जहां तर्क विफल हो जाते हैं, वहां से जन्म होता है अंधविश्वास का। आज इसने समाज में गहराई से अपनी जड़ें जमा दी हैं। दर्शनशास्त्र (वह ज्ञान है जो परम्स त्य और प्रकृति के सिद्धांतों और उनके कारणों की विवेचना करता है) में तर्क को विशेष स्थान दिया गया है। तर्क के द्वारा किसी व्यक्ति या समुदाय को किसी भी तथ्य को स्वीकारने के लिए तैयार किया जा सकता है।
भारतीय दर्शन में तर्कशास्त्र की अत्यंत व्यापकता के बावजूद भी भारतीय समाज का बहुत कम हिस्सा ही इस विषय पर ध्यान केंद्रित करता है। भारतीय तर्कशास्त्र में अनगिनत प्राचीन विद्वानों के तर्क शामिल किए गए हैं, किंतु दुर्भाग्यवश इसे आधुनिक शिक्षा का हिस्सा नहीं बनाया गया है। 21वीं सदी में स्मार्टफ़ोन (Smartphones) और इंटरनेट (Internet) के उपयोग के बाद भी समाज में अंधविश्वास का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। जिससे निजात पाने के लिए समाज का रूख तर्कशास्त्र की ओर करना होगा, जिसके लिए इसे शिक्षा का अंग बनाना एक अच्छा विकल्प है।
भारत में एक तर्क समुदाय का निर्माण करने के उद्देश्य से एसोशिएशन फोर लॉजिक इन इंडिया (Association for Logic in India - ALI) का गठन किया गया है।तर्क अनुसंधान और शिक्षा को बढ़ावा देता है, ALI का उद्देश्य गणित, दर्शन, भाषा विज्ञान, कंप्यूटर (Computer) विज्ञान, कृत्रिम बुद्धिमत्ता, संज्ञानात्मक विज्ञान और अन्य क्षेत्रों सहित सभी विषयों के तर्कशास्त्र में रुचि रखने वाले शोधकर्ताओं और शिक्षाविदों को एक साथ लाना है। ALI को भारत सरकार के सोसायटी (Society) पंजीकरण अधिनियम के तहत एक गैर-लाभकारी सोसायटी के रूप में पंजीकृत किया जा रहा है। भारतीय तार्किक बुद्धि को एक साथ लाने के लिए यह एक अच्छा कदम है।
भारतीय तर्क को पश्चिम में 19वीं शताब्दी के अंत में एच.टी. कोलब्रुक, अग्रणी प्राच्यविद और गणितज्ञ द्वारा प्रस्तुत किया गया था। इन्होनें मुख्य रूप से भारतीय न्याय दर्शन पर बल दिया। एच. एन. रैंडल ने "अनुमान" की धारणा के बारे में तर्कसंगत स्पष्टीकरण देकर और इसकी पश्चिमी तर्कों के साथ तुलना करते हुए भारतीय न्यायदर्शन पर ध्यान केंद्रित किया। डैनियल एच. एच. इंगल्स ने भारतीय दार्शनिक संदर्भ में तार्किक सोच की उत्पत्ति और विकास का पता लगाया। इस प्रकार कई पाश्चात्य विद्वानों और दार्शनिकों ने भारतीय दर्शन शास्त्र पर ध्यान केंद्रित करते हुए तर्कशास्त्र से संबंधित विभिन्न तथ्य उजागर किए।
अरस्तू को पृथ्वी का पहला महान तर्कशास्त्री कहा जा सकता है, जिसके दर्शन सिद्धान्त के तर्कों का 19वीं शताब्दि तक पृथ्वी में विशेष स्थान रहा। किंतु उन्हें आज मात्र एक यूनानी दार्शनिक के रूप में ही जाना जाता है। वास्तव में दर्शन और तर्क के मध्य एक बहुत बड़ा अंतर है। तर्क दर्शन का एक पहलू है। दर्शन किसी अंतिम लक्ष्य को पाने के जुनून से जुड़ा होता है। दर्शनशास्त्र के अंतर्गत विज्ञान, कला, धर्म सभी को शामिल किया जाता है। दर्शन सभी मानवीय अनुसंधानों पर आधारित है, इसलिए तर्क दर्शन की सबसे मौलिक शाखा है। दर्शन विश्लेषण और तर्क पर आधारित है जो युक्तिसंगत तर्क का अध्ययन करता है।
तर्क युक्ति और विचार के मूल्यांकन का एक विज्ञान है। आलोचनात्मक सोच मूल्यांकन की एक प्रक्रिया है जो सत्य को असत्य से, उचित को अनुचित से अलग करने के लिए तर्क का उपयोग करती है। तर्क हमारे कौशल को आकार देता है और हमारी शक्ति को बढ़ाता है। भारतीय तर्क में प्रमाण शास्त्र का विशेष महत्व है, जो ज्ञान के विषय (प्रमाता), ज्ञान की वस्तु (प्रमेय) और वैध ज्ञान (प्रमाण) के त्रुटिपूर्ण अनुभूति और सत्य के बारे में विभिन्न सिद्धांतों से संबंधित है।
भारत में प्रचलित कुछ अंधविश्वास और उनके पीछे के संभावित तर्क इस प्रकार हैं:
1. हमारे देश में मान्यता है कि ग्रहण के दौरान बाहर नहीं निकलना चाहिए। इस दौरान राहु सूर्य को अवरुद्ध करता है, जिसमें दृष्टि बाधित हो जाती है। जबकि इसके पीछे वास्तविक कारण यह हो सकता है कि ग्रहण के दौरान हमारे रेटीना (Retina) को हानि पहुंचती है, जिससे अंधापन आ सकता है। हमारे पूर्वज संभवतः इस पहलू से वाकिफ थे, इसलिए उन्होंने राहु और सूर्य की धारणा को इससे जोड़ा।
2. उत्तर की ओर मुंह करके न सोएं, यह मृत्यु को निमंत्रण देता है। हमारे पूर्वजों को शायद पृथ्वी और मानव शरीर के चुंबकीय क्षेत्र (बायोमैग्नेटिज़्म (Biomagnetism)) के बीच संबंध के बारे में पता था। संभवतः उन्होंने रक्तचाप और अन्य बीमारियों से संबंधित हानिकारक प्रभावों से बचने हेतु दक्षिण की ओर सिर रख कर सोने के लिए कहा जिससे पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र के साथ विषमता उत्पन्न हो सके।
3. रात में पीपल के पेड़ के पास न जाएं – संभवतः हमारे पूर्वज पहले से ही प्रकाश संश्लेषण की क्रिया से परिचित थे तथा उन्हें रात में कार्बन डाइऑक्साइड (Carbon Dioxide) के प्रभाव के बारे में पता था। इसलिए लोगों को रात में एक पीपल के पेड़ के पास जाने से रोकने के लिए इन पेड़ों के चारों ओर भूतों की कहानियां बुनी गयीं।
4. बुरी नज़र को टालने के लिए नींबू और हरी मिर्च का उपयोग वास्तव में इनके उपभोग को प्रोत्साहन देने के लिए किया गया था। क्योंकि यह दोनों अलग-अलग विटामिनों (Vitamins) से भरपूर हैं। संभवतः हमारे पूर्वजों ने समारोहों के दौरान इन्हें प्रतीकों के रूप में प्रयोग करने का प्रयास किया होगा जो आगे चलकर प्रथा बन गयी।
5. अंतिम संस्कार प्रक्रिया के बाद स्नान अनिवार्य है। प्राचीन समय में हेपेटाइटिस (Hepatitis), चेचक और अन्य घातक संक्रमक रोगों के विरूद्ध टीकाकरण की कोई व्यवस्था नहीं थी। इसलिए अंतिम संस्कार के बाद स्नान करना अनिवार्य बनाया गया ताकि शव से होने वाले संक्रमण से बचा जा सके। धीरे-धीरे दिवंगत की आत्मा के विषय में कहानियां इस प्रथा से जुड़ गईं।
6. सूर्यास्त के बाद नाखून न काटें – नाखून काटने वाले ब्लेड (Blade) तेज़ हुआ करते थे, जिनके प्रयोग के समय पर्याप्त प्रकाश की आवश्यकता होती थी, जिससे हाथ कटने का डर न रहे। इसलिए दिन के दौरान नाखून काटने की परंपरा बनाई गयी।
7. कुछ निश्चित दिन जैसे मंगलवार या गुरुवार को बाल न धोएं - यह प्रथा संभवतः जल संरक्षण को ध्यान में रखते हुए बनाई गयी होगी।
8. शाम के समय फर्श की सफाई न करें - इसके पीछे का प्रमुख कारण घर की आवश्यक सामाग्रियों को बचाना था जो रात के समय भूल से बाहर न फेंक दी जाएं।
9. कोई भी कार्य करने से पूर्व दही और चीनी का सेवन - भारत में उष्णकटिबंधीय जलवायु है, जहां दही का सेवन लाभदायक होता है जिससे पेट ठंडा रहता है। इसके साथ ही चीनी तुरंत हमारे शरीर को ग्लूकोज (Glucose) प्रदान करती है।
10. तुलसी के पत्ते को चबाएं नहीं सीधे निगलें क्योंकि इसमें माता लक्ष्मी का वास होता है - जबकि वास्तव में तुलसी के पत्ते में थोड़ी मात्रा में आर्सेनिक (Arsenic) होता है जो हमारे दंतवल्क का क्षरण कर सकता है। इससे दांतों में पीलापन आ जाता है।
11. सांप को मारने के बाद उसका सिर कुचल दें - इसके पीछे मान्यता है कि सांप की आंख में मारने वाले की तस्वीर आ जाती है, जिसे उसके साथी पहचानकर बदला ले सकते हैं। किंतु वास्तव में यह अपने क्षतिग्रस्त सिर से भी हमला करने में सक्षम होता है। इसलिए उसके सिर को कुचलने की सलाह दी जाती है, इसके साथ ही उसे भी दर्दनाक मौत से त्वरित छुटकारा मिल जाएगा।
12. किसी भी अनुष्ठान के दौरान गाय के गोबर से फर्श की लिपाई को शुभ माना जाता है - गोबर वास्तव में एक कीटाणुनाशक के रूप में काम करता है। हमारे पूर्वजों ने संभवतः इस प्रथा को कीटों और सरीसृपों से बचाने के लिए शुरू किया होगा।
इस प्रकार की अनेक मान्यताओं के पीछे कोई न कोई सार्थक तर्क छिपा था, जिस कारण हमारे पूर्वजों ने इस प्रकार की प्रथाएं प्रारंभ कीं, किंतु तार्किक कारण के विषय में अज्ञानता के कारण ये प्रथाएं आगे चलकर अन्धविश्वास बन गयी।
संदर्भ:
1.https://www.learnreligions.com/the-importance-of-logic-and-philosophy-3975201
2.https://www.thehindu.com/thehindu/br/2002/02/26/stories/2002022600170400.htm
3.https://www.scoopwhoop.com/inothernews/superstition-and-logic/
4.http://ali.cmi.ac.in/about.php
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.