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मानव की तरह ही अन्य जीव-जंतु भी प्रकृति का उपहार हैं। किंतु मानव हमेशा से ही बहुत स्वार्थी रहा है तथा अपने जीवन को सुखमय बनाने के लिये उसने दूसरे जीवों के जीवन को आधार बनाया है। विभिन्न महासागरों, नदियों और अन्य जल स्रोतों में एकत्रित प्लास्टिक (Plastic) का कचरा इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। मानव कई वस्तुओं का उपयोग करता है तथा उसके बचे प्लास्टिक को समुद्र या अन्य जल निकायों में फेंक देता है। धीरे-धीरे प्लास्टिक के इस कचरे की मात्रा जल निकायों और अन्य स्थानों में बहुत अधिक बढ़ने लगती है। इससे जल प्रदूषण तो बढ़ता ही है किंतु जल और स्थल में रहने वाले जीवों का जीवन भी खतरे में आ जाता है। 700 से अधिक समुद्री प्रजातियां या तो प्लास्टिक के कारण या शिकार के कारण मर जाती हैं। जिसके परिणामस्वरूप एक वर्ष में लगभग 10 करोड़ से अधिक पशुओं की मौत हो जाती है। एक रिपोर्ट के अनुसार समुद्र में प्लास्टिक के लगभग 51 ट्रिलियन टुकड़े पाये गये। क्योंकि प्लास्टिक का विघटन सम्भव नहीं है, इसलिये केवल एक बार निर्मित प्लास्टिक पर्यावरण में हमेशा के लिये मौजूद हो जाता है।
दरसल मनुष्यों के विपरीत जंगली जानवरों और समुद्री जीवों में ‘सुपाच्य’ सामग्री को पहचानने की क्षमता नहीं होती। वे प्लास्टिक को भी अपना भोजन समझने लगते हैं और उसे खा लेते हैं। इसे खाने की वजह से उनका पाचन तंत्र अवरूद्ध हो जाता है और उनके शरीर में विशिष्ट प्रकार का अम्ल बनने लगता है जिसके फलस्वरूप उनकी मृत्यु हो जाती है। लुप्तप्राय समुद्री कछुए की सभी प्रजातियां प्लास्टिक के कारण ग्रसित हैं। लगभग 50% से अधिक समुद्री कछुए प्लास्टिक को खाते हैं तथा सभी मृत समुद्री कछुओं में से लगभग 50-80% में प्लास्टिक पाया जाता है। इसी प्रकार 54% समुद्री स्तनधारी जैसे व्हेल (Whale), डॉल्फ़िन (Dolphin) और सील (Seal) प्लास्टिक से प्रभावित होते हैं। हर साल लगभग एक लाख समुद्री स्तनधारियों की प्लास्टिक के कारण मृत्यु हो जाती है। मछलियों की 114 प्रजातियां भी प्लास्टिक को निगलने के लिये जानी जाती हैं। प्लास्टिक की समस्या ने समुद्रों के तटों में रहने वाले जीवों को भी प्रभावित किया है। पक्षियों की प्रजातियों का लगभग दो-तिहाई हिस्सा प्लास्टिक से प्रभावित होता है जिससे हर साल लाखों समुद्री पक्षी मारे जाते हैं। भूमि स्तनधारी जंतु भी जलीय जीवों की तरह प्लास्टिक का सेवन करते हैं और अपनी जान को जोखिम में डाल देते हैं। जीव-जंतुओं का जीवन केवल प्लास्टिक से ही प्रभावित नहीं होता बल्कि अन्य तथ्य भी हैं जो इनके जीवन को प्रभावित करते हैं। जैसे भोज्य पदार्थ की चाह में जंतु अपना सिर प्लास्टिक से बने खाद्य कंटेनरों (Containers) के अंदर डाल देते हैं जिससे उनका सिर उसमें फंस जाता है और वे घुटन, निर्जलीकरण आदि के कारण मर जाते हैं। इसी प्रकार जब प्लास्टिक जानवरों के शरीर में चिपक जाता है तो वह उनके शरीर पर घाव भी बना सकता है जो अंततः उनकी मौत का कारण बनता है।
प्लास्टिक से होने वाले नुकसान से भारत भी अछूता नहीं है। भारत में कुल प्लास्टिक खपत का 80% हिस्सा अपशिष्ट के रूप में नदियों या अन्य स्थानों में त्याग दिया जाता है। आंकड़ों की मानें तो प्रतिदिन लगभग 25,940 टन प्लास्टिक कचरा भारत में उत्पन्न होता है जिसमें से कम से कम 40% कचरे को एकत्रित नहीं किया जाता है और यह जगह-जगह पर पड़ा होता है। 70 वर्षों में 8.3 बिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया है। दुनिया भर में हर मिनट में पीने के लिये 10 लाख प्लास्टिक बोतलें खरीदी जाती हैं और हर साल 5 ट्रिलियन डिस्पोज़ेबल प्लास्टिक बैग (Disposable Plastic Bag) का उपयोग किया जाता है। भारत में यह अत्यधिक चिंता का विषय है क्योंकि यहां पैकेजिंग (Packaging) में उपयोग किये जाने वाले प्लास्टिक को प्रभावी ढंग से एकत्रित नहीं किया जाता और यह नदी नालों में पड़ा रहता है।
हालांकि प्लास्टिक प्रदूषण को दूर करने के लिये कई क्षेत्रों में पुनर्चक्रण की विधि अपनायी जा रही है किंतु प्लास्टिक का निवारण तभी सम्भव है जब सभी लोग मिलकर प्लास्टिक के निस्तारण के लिये कुछ महत्वपूर्ण कदम उठायेंगे जोकि निम्नलिखित हैं:
• अपने जलीय स्रोतों पर प्लास्टिक प्रदूषण को रोकने के लिये प्लास्टिक का प्रयोग कम करें तथा अपने परिवार और दोस्तों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करें। ऐसा करने पर हम समुद्रों को साफ और सुरक्षित रख पायेंगे।
• पानी के लिये एक ऐसी बोतल का इस्तेमाल करें जिसे बार-बार प्रयोग में लाया जा सके और यदि आवश्यक हो तो पानी को फ़िल्टर (Filter) करें।
• भोजन या अन्य सामान लाने के लिये प्लास्टिक की बजाय ऐसे थैले का उपयोग करें जिसे बार-बार प्रयोग में लाया जा सके।
• बाहरी भोजन और पेय पदार्थों के सेवन के लिये प्लास्टिक के बर्तनों का उपयोग न करें।
• किसी भी सामान की पैकिंग के लिये प्लास्टिक का उपयोग सबसे अधिक किया जाता है। इसलिये आवश्यक है कि हम इसके लिये जागरूक रहें और विभिन्न कंपनियों (Companies) को इसके बारे में अवगत करायें।
• समाज को जागरूक करने के लिये प्लास्टिक से सम्बंधित अभियानों में भाग लें और विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से प्लास्टिक के सदुपयोग के संदर्भ में समाज को जागरूक करें।
उपरोक्त तथ्यों से यह स्पष्ट है कि प्लास्टिक प्रदूषण विश्व के जलीय और थलीय जीवों के जीवन को लगभग हर प्रकार से प्रभावित कर रहा है। हमारे पारिस्थितिकी तंत्र का संतुलन हमारे जीवन की गुणवत्ता के लिए आवश्यक है जोकि इस बात पर निर्भर करता है कि हम इस मुद्दे के निवारण के लिये अपनी जीवन शैली में बदलाव करते हैं या नहीं। अतः संतुलन बनाये रखने के लिये सभी को प्लास्टिक उत्पादों का उपभोग कम करने तथा कुछ महत्वपूर्ण कदम उठाने की आवश्यकता है।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2SgKwb7
2. https://bit.ly/2K62LfG
3. https://bit.ly/2LMS3xR
4. https://bit.ly/2XA7oUJ
5. https://bit.ly/32d71mx
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