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हाल ही में मनायी गयी बुद्ध पूर्णिमा भगवान बुद्ध के जीवन के वृत्तांत को संदर्भित करती है और भगवान बुद्ध के जीवन से जुड़े विशेष स्थान कपिलवस्तु से भी हर कोई ही परिचित होगा। यह वह स्थान है, जो भारतीय उपमहाद्वीप के प्राचीन शाक्य राजघराने की राजधानी हुआ करता था। इस राज परिवार के शासक शुद्धोधन थे जो कि सिद्धार्थ अर्थात भगवान बुद्ध के पिता थे और इसलिये ही आगे चलकर सिद्धार्थ शाक्यमुनि भी कहलाये। लगभग 29 वर्ष की आयु तक कपिलवस्तु में जीवन व्यतीत करने के बाद राजकुमार गौतम ज्ञानोदय का मार्ग शुरू करने के लिए कपिलवस्तु के पूर्वी द्वार से होकर निकले। आत्मज्ञान की प्राप्ति के बाद उनका यहां दोबारा आगमन लगभग 12 वर्षों के बाद हुआ। बौद्ध सूत्रों के अनुसार कपिलवस्तु का नाम वैदिक ऋषि कपिला के नाम पर रखा गया था। बौद्ध ग्रन्थ महावम्सा के अनुसार शाक्यों के वंश का विनाश कोसल जो कि प्राचीन भारतीय महाजनपद था, के शासक विरुद्धक ने किया। 9वीं शताब्दी के दौरान इस क्षेत्र पर पहले मुसलमानों और बाद में हिंदुओं का नियंत्रण हुआ। इस प्रक्रिया के दौरान लगभग सभी बौद्ध संरचनाएं नष्ट हो गयीं और इस क्षेत्र की स्मृति कहीं खो सी गई।
वर्तमान में इस स्थान की उपस्थिति भारत और नेपाल के बीच विवाद का कारण बनी हुई है। इस स्थान के होने की पुष्टि 19वीं सदी में की गयी जिसका आधार इस स्थल की यात्रा करने वाले चीनी बौद्ध भिक्षु फाह्यान और ज़ुआनज़ैंग के छोड़े हुए लेख बने। कुछ पुरातत्वविदों का कहना है कि यह ऐतिहासिक स्थल वर्तमान समय में तिलौराकोट (नेपाल) में है तो कुछ का कहना है कि यह स्थान पीपरहवा (भारत) में है। दोनों ही स्थलों में कपिलवस्तु के पुरातात्विक भग्नावेश मिले हैं तथा दोनों ही शहर बुद्ध के पैतृक घर होने का दावा करते हैं, जिससे यह पुष्टि करना कठिन है कि आखिर ये स्थान कहां स्थित हैं?
पीपरहवा उत्तर प्रदेश का वह स्थान है जो नेपाल की सीमा से सिर्फ चार मील की दूरी पर है। जौनपुर से भी इसकी दूरी कुछ अधिक नहीं है। पीपरहवा बुद्ध के जन्म स्थान लुंबिनी के दक्षिण-पश्चिम में 58 मील की दूरी पर स्थित एक आधुनिक गांव है। यहां 1898 में एक ब्रिटिश योजनाकार डब्ल्यू.सी. पेप्प ने शंकु के आकार के पीपरहवा स्तूप की खोज की थी। उन्होंने दावा किया था कि अपनी रियासत को साफ करते समय, उन्हें एक ईंट का गुंबद मिला जिसमें पांच कास्केट (Casket) के साथ एक सैंडस्टोन (Sandstone) का बक्सा भी था। इन ताबूतों में से एक पर अभिलेख लिखा था जो यह दर्शा रहा था कि इसमें जो हड्डियां थीं, वे बुद्ध की थीं। 1970 में एएसआई पुरातत्वविद के.एम श्रीवास्तव द्वारा पिपरहवा में बड़े पैमाने पर खुदाई करवाई गई थी, जिसमें बड़ी संख्या में शाक्य काल के टेराकोटा (Terracotta) की मुहरों के साथ दो अस्थि कलश भी मिले। एक कलश में 10 जबकि दूसरे में 12 हड्डियों के टुकड़े थे। इस खुदाई में एक अभिलेख प्लेट (Plate) भी पायी गयी जिसपर लिखा हुआ था कि “यह कपिलवस्तु के भिक्षुओं का मठ है।” भगवान बुद्ध की मृत्यु के बाद कपिलवस्तु एक मठवासी बस्ती बन गई थी। ये सभी साक्ष्य 5वीं शताब्दी ईसा पूर्व के थे जो कि बुद्ध के जीवनकाल को संदर्भित कर रहे थे। तथा ये संकेत कर रहे थे कि पीपरहवा ही वह क्षेत्र है जहां भगवान बुद्ध का पालन पोषण हुआ।
इसके विपरीत नेपाल सरकार दावा करती है कि कपिलवस्तु क्षेत्र भारत की सीमा से लगभग 30 किमी दूर स्थित नेपाल के एक गाँव तिलौराकोट में है। नेपाल ने तिलौराकोट को लुम्बिनी के साथ विश्व धरोहर का दर्जा दिया। किंतु 1997 में तिलौराकोट को अस्थायी सूची में रखते हुए यूनेस्को ने केवल लुंबिनी को ही विश्व धरोहर स्थल घोषित किया। तिलौराकोट एक किलाबंद शहर है और कपिलवस्तु भी किलाबंद था जिस कारण यह माना जा सकता है कि तिलौराकोट क्षेत्र कपिलवस्तु का ही क्षेत्र है। हाल ही में तिलौराकोट में की गयी खुदाई से एक टेराकोटा की सील (Seal) मिली जिसमें लिखा हुआ था 'सा-का-ना-स्या' अर्थात ‘शाक्यों का’। इसके अतिरिक्त प्राचीन राजधानी के भग्नावेश भी मिलें हैं जो यह संकेत करते हैं कि तिलौराकोट ही भगवान बुद्ध की भूमि थी। किंतु इसके अतिरिक्त और कोई साक्ष्य न मिलने के कारण पूर्ण रूप से यह नहीं कहा जा सकता कि वर्तमान तिलौराकोट ही प्राचीन कपिलवस्तु है।
संदर्भ:
1.https://tricycle।org/magazine/kapilavastu-tale-two-competing-cities/
2.https://www।telegraphindia।com/india/asi-digs-into-buddha-home-debate-kapilavastu-in-india-or-nepal-excavation-in-up-village-in-search-of-clinching-evidence/cid/287821
3.https://en।wikipedia।org/wiki/Kapilavastu_(ancient_city)
4.https://www।ancient।eu/Kapilavastu/
5.http://uptourism।gov।in/pages/hi/top-menu/%E0%A4%9C%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%82/hi-kapilvastu
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