समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
बारहसिंगा (वैज्ञानिक नाम : रूसरवस डुवाओसेली - Rucervus duvaucelii) हिरण प्रजाति का बड़े आकार का एक शानदार वन्य जीव है। इस वन्य जीव को उत्तर प्रदेश की सरकार ने अपना राज्य पशु घोषित कर रखा है। इसके सींग बहुत बड़े तथा बहुशाखित होते हैं, जिनकी संख्या सामान्यतः 12 तक पहुँच जाती है इसलिए इसे बारहसिंघा कहा जाता है। ये ज्यादातर दलदली जगहों में रहते हैं इस कारण इन्हें अंग्रेजी में “स्वैम्प डियर” (Swamp deer) अर्थात दलदल का हिरण भी कहा जाता है। दुर्लभ वन्य जीव होने के कारण इसे संकटग्रस्त सूची में रखा गया है। यह भारत वर्ष के मात्र तीन स्थानों : उत्तर प्रदेश के तराई वन के 6 इलाकों में, उत्तर पूर्व स्थित असम राज्य के काज़ीरंगा और मानस राष्ट्रीय उद्यान एवं मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान के आरक्षित वन क्षेत्रों में पाया जाता है। यह पश्चिम बंगाल, पाकिस्तान और बांग्लादेश में विलुप्त हो चुका है।
परंतु जौनपुरवासी सौभाग्यशाली हैं क्योंकि जौनपुर का क्षेत्र यूपी के उन दुर्लभ भागों में से एक है जहाँ अभी भी इस सुंदर बारहसिंगा की विलुप्त हो रही प्रजातियों में से कुछ को देखा जा सकता हैं। जौनपुर में समय-समय पर इनको देखा गया है। बरईपार स्थित सई नदी के किनारे जंगलों में बारहसिंगा के टूटे सींग देखे गये थे, यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि अक्सर यहां बारहसिंगों का झुंड दिखाई दे जाता है। यहां के किसानों का यह भी कहना है कि धीरे-धीरे इनकी तादाद क्षेत्र में बढ़ती जा रही है। इसके अलावा जौनपुर के शाहगंज असैथा गांव में बारहसिंगा को ग्रामीणों द्वारा देखा गया था, जिसकी सूचना ग्रामीणों ने वन विभाग को भी दी थी। सूचना पाते ही वन विभाग के कर्मचारियों ने बारहसिंगा को पकड़ा और जंगल में छोड़ दिया।
मूलतः शाकाहारी प्रवृत्ति के इस जीव की ऊँचाई 110- 120 सेमी., वज़न लगभग 170 से 280 किलो तथा सींगों की औसत लम्बाई 76 सेमी. होती है। इसका प्राकृतवास मुख्यतः दलदली व कीचड़ वाले ऊँची घास से आच्छादित क्षेत्र हैं। 1960 के दशक में, भारत में इनकी कुल जनसंख्या 1,600 से 2,150 के बीच थी जबकि नेपाल में इनकी कुल जनसंख्या लगभग 1,600 थी। परंतु वर्तमान में शिकार और घास के मैदानों के नष्ट हो जाने के कारण इनकी संख्या में बड़ी गिरावट आई है। अधिकांशतः इनका शिकार इनके सींगों और मांस के लिये किया जाता है। जौनपुर के शाहपुर नदी किनारे बारहसिंगा के सींग देख यह अनुमान लगाया गया था कि कहीं इनका शिकार तो नहीं किया जा रहा है। आज हमें ज़रूरत है कि हम इस शानदार वन्य जीव को बचाने का प्रयास करें और इसके शिकार पर रोक लगा सकें नहीं तो ये भी एक दिन पक्षी ‘डोडो’ की भांति पूर्णरूप से विलुप्त हो जायेंगे।
भारत में, यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची I के तहत शामिल है। 20वीं सदी की शुरुआत में ही तत्कालीन मध्य प्रांत के एक वन अधिकारी डनबार ब्रैंडर ने सबसे पहले बारहसिंगा की आबादी के घटने की सूचना दी थी। परंतु इसकी आबादी को बचाने के शुरुआती उपाय 1933 में किये गये और वे सिर्फ बंजर घाटी क्षेत्र को अभ्यारण्य घोषित करने तक सीमित थे। सितंबर 1963 में, जॉर्ज बी, शैलर (वैज्ञानिक), भारत आये और उन्होंने कान्हा की पारिस्थितिकी पर अध्ययन किया और बारहसिंगा की दुर्दशा पर दुनिया का ध्यान केंद्रित किया, जो IUCN की संकटग्रस्त प्रजातियों की रेड डाटा बुक (Red Data Book) में सूचीबद्ध है। इसके अलावा मार्च, 1971 में, ज़्यूरिक विश्वविद्यालय से क्लॉड मार्टिन ने कान्हा में बारहसिंगा की स्थिति और पारिस्थितिकी पर गहन अध्ययन किया, और एक पेपर (Paper) प्रकाशित किया जिसे अभी भी उत्कृष्ट अध्ययनों में गिना जाता है।
उपर्युक्त व्यक्तियों की रिपोर्टों (Reports) में अधिकांशतः पाया गया कि बारहसिंगा की आबादी में तेज़ी से गिरावट का मुख्य कारण उनके प्राकृतिक स्थान, घास के मैदान, में कमी थी। घास के मैदान न होने से उनका शिकार भी बढ़ गया था। क्योंकि घास के मैदान न होने से अपनी रक्षा के लिये खुद को छुपा पाना उनके लिये बहुत मुश्किल था। जब इनकी संख्या काफी कम हो गई तब स्थानीय आधार पर इन जानवरों के आवास में सुधार और फैलाव की रणनीतियां बनाई गईं और इनके इलाकों में छोटे बांधों और टैंकों का निर्माण करवाया गया जिससे घास के मैदानों में नमी की मात्रा में सुधार हो सके, जिससे बारहसिंगा के निवास स्थलों पर घास के मैदानों का विकास हो सके। इसके अलावा इनके प्रजनन को बढ़ावा देने के लिये योजनाएं बनाई गईं। आज इन प्रयासों के कारण ही इनकी आबादी लगातार बढ़ रही है। यह कदम बारहसिंगा को सुरक्षा प्रदान करने के लिए उठाये गये हैं। साथ ही साथ ये कदम विलुप्त होने की संभावना से इस प्रजाति को बचाने के प्रति जागरुकता भी फैलाएंगे।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2VDqGY5
2. https://en.wikipedia.org/wiki/Barasingha
3. https://bit.ly/2WUhQXw
4. https://bit.ly/2HCo3Rw
5. http://www.thesamay.com/repeated-screaming-in-the-city/
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.