विलुप्त होने की स्थिति‍ में टिटहरी पक्षी

पंछीयाँ
10-04-2019 07:00 AM
विलुप्त होने की स्थिति‍ में टिटहरी पक्षी

भारत समेत संपूर्ण विश्व की जैव विविधता तेजी से घट रही है, अपने स्वार्थ के लिए मनुष्य द्वारा किए गए प्राकृतिक दोहन का नतीजा यह है कि पशु-पक्षियों की कई प्रजातियाँ विलुप्त हो गई हैं तो कई विलुप्त होने की कगार में हैं। पहले सुबह-सुबह पक्षियों की सुरीली कूक काफी सुनाई देती थी। वहीं आसमान में, पानी में, जमीन पर हर तरफ काले, सफेद, भूरे, रंग-बिरंगे, छोटे-बड़े पक्षी उड़ते हुए और चहचाते हुए नजर आते थे। लेकिन अब तो न वे रंग हैं और न ही सुरीली कूक। ऐसे ही मानव द्वारा किए गए विस्तार का शिकार हो चुकी है टिटहरी पक्षी, जंगलों का कृषि भूमि में परिवर्तन होने के कारण वर्तमान में टिटहरी पक्षी काफी प्रभावित हो रहे हैं।

टिटहरी एक ऐसा अनोखा पक्षी है जो अपना अधिकांश समय तालाब और झीलों के नजदीक गुजारता है और उड़ता कम है। विश्व के अधिकांश देशों में टिटहरी पाई जाती है और वहीं इसकी केवल 2-3 प्रजातियां ही भारत में पाई जाती है। टिटहरी के सिर और गर्दन के ऊपर की तरफ और गले के नीचे का रंग काला होता है, वहीं इसके पंखों का रंग चमकीला कत्थई तथा सिर गर्दन के दोनों ओर एक सफेद चौड़ी पट्टी देखी जा सकती है। टिटहरी की दोनों आंखों के सामने एक गूदेदार रचना पाई जाती है इस रचना को देखकर यह पक्षी दूर से ही पहचान लिया जाता है। टिटहरी की दूसरी प्रजाति में आंखों के पास पाई जाने वाली यह रचना पीले रंग की होती है।

टिटहरी खुले स्थान में कीड़े मकोड़े का सेवन करती है और साथ ही वह अपना घोंसला सतह पर बनाते हैं। टिटहरी पक्षी की लम्बाई 11-13 इंच एवं पंखों का फैलाव 26-34 इंच तक होता है, वहीं इसका शारीरिक भार लगभग 128-330 ग्राम का होता है। इसके पंख गोलाकार तथा सिर पर एक उभरा भाग होता है। इसकी पूंछ छोटी एवं काली होती है जिसकी लम्बाई लगभग 104-128 मि.मी होती है, इनके चोंच की लम्बाई लगभग 31-36 मि.मी. होती है। टिटहरी मार्च (March) से अगस्त (August) के महीने के बीच 2-3 या 4 अंडे देती है। टिटहरी के अंडों का रंग मिट्टी के रंग से लगभग मिलता जुलता होता है, जिससे दूसरों की नजर अंड़ों पर नहीं पड़ पाती है। टिटहरी दिन रात जाग कर अपने अंडों और बच्चों की देखभाल करती है और यदि कोई जानवर या मनुष्य उसके अंडों के समीप आता है तो वे उन्हें देखकर शोर मचाना शुरू कर देती है। टिटहरी के बच्चों का रंग भी जमीन की तरह ही होता है।

टिटहरी अपने अंडों को अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए अपने पेट के पंखों को निकटतम नदी में भिगोती हैं जिससे अंडे शीतल रहे। एक दिलचस्प बात यह है कि भारत के कुछ हिस्सों में यह माना जाता है कि टिटहरी चिड़िया टांग आकाश की तरफ इसलिए उठा कर सोती है क्योंकि वह सोचती है कि आकाश उसी के कारण टिका है। वहीं टिटहरी और आसमान के बारे में अनेक कहावतें हैं जिनमें से एक यह है कि “टिटहरी को हमेशा लगता है कि उसकी टांग हटी और आसमान गिरा”।

हालाँकि अपने अंडो को बचाने के विभिन्न प्रयास करने के बाद भी टिटहरी कई बार अन्य जानवरों के प्रहार से अंडों को बचा नहीं पाती है और वहीं आग और बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाएं भी उन्हें प्रभावित कर देती है। लेकिन प्राकृतिक आपदाएं तो स्वाभाविक हैं, परंतु जब हमारे द्वारा नदी के तल, घास के मैदानों और प्राकृतिक जंगलों को कृषि भूमि या अपने आवास में बदल देते हैं तो इससे टिटहरी के अंडों को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचता है। उनके निवास स्थानों को अलग करना उनके दीर्घकालिक अस्तित्व के लिए सहायक है। कई बार कुछ पक्षी बदलते परिवेश में समायोजित हो जाते हैं, लेकिन सभी पक्षी इतने अनुकूलनीय नहीं होते हैं।

भारत में बढ़ते पैमाने में वायु और जल प्रदुषण के कारण टिटहरी की आबादी में गिरावट आई है। खास कर स्लेटी टिटहरी (सोसिएबल लैपविंग (Sociable lapwing)) की प्रजाति हमारे देश में लुप्त होने की कगार पर आ गयी है। इंटरनेशनल यूनियन फोर कनजरवेशन आफ नेचर (International Union For Conservation of Nature) एवं नेचुरल रिर्सोसेस (Natural Resource) द्वारा 2006 को जारी की गयी रेड डेटा बुक (Red Data Book) में लुप्तप्राय प्रजातियों का उल्लेख करते हुए कहा है कि स्लेटी टिटहरी को लुप्त प्रायः श्रेणी में रखा गया है। वहीं कृषि भूमि में कीटनाशकों और जड़ी-बूटियों के व्यापक उपयोग के कारण टिटहरी विलुप्त हो रहा है। वहीं टिटहरी के स्थानों में मनुष्यों द्वारा आवास बनाने की वजह से टिटहरी द्वारा घरों की छतों पर घोंसला बनाना शुरू कर दिया है।

संदर्भ :-

1. http://drashokakela.blogspot.com/2014/06/lapwing-bird.html
2. https://www.natureinfocus.in/nature-and-wildlife-conservation/birds-of-a-different-feather
3. https://bit.ly/2uST39J

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