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भारतीय चित्रकला में मुगल लघु चित्रशैली एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। मुगल शैली से भारत में प्रगतिशील तत्वों का प्रवेश हुआ जिसने चित्रकला के क्षेत्र में काफी उन्नति की थी। अकबर और जहाँगीर के शासनकाल में भारत के कालीन निर्माण में फ़ारसी कला का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि अमेरिका(America) के वाशिंगटन डीसी (Washington D.C.) के टेक्सटाइल म्यूजियम (Textile Museum) तथा नेशनल गैलरी (National Gallery) में भी ऐसे कालीन मौजूद हैं।
भारतीय कालीन का इतिहास भारत में मुगल वंश(1526-1858) से काफी निकटता रखता है। भारत में कालीन का उपयोग काफी जीवंत और तीव्र रहा है, हालांकि मुख्य रूप से मौसमी कारणों की वजह से कालीनों का उपयोग इतना व्यापक रूप से नहीं किया गया। भारतीय करघों पर बुने हुए कालीनों के प्रकारों में हम स्पष्ट रूप से हेरात में बने फ़ारसी प्रतिरूप की झलक देख सकते हैं, लेकिन उनके रंगों में मूल डिज़ाइन (Design) का पालन नहीं किया जाता था।बल्कि पुष्प-सम्बंधित तथा पशु-सम्बंधित रूपांकन से बने इंडो पर्शियन(Indo-Persian) कारपेट का उदहारण मिलता है। मुगल कारीगरों द्वारा विकसित कि गई इस शैली में पर्शियन(Persian) रूपांकन के पारंपरिक चित्रण से भिन्न प्राकृतिक विभक्ति का उदाहरण ज्यादा मिलता है।
कालीन का स्वर्ण युग जहाँगीर के शासनकाल में विकसित हुआ , उनके शासनकाल में कालीन में प्राकृतिक रूप से प्रचुर पुष्प शैली का उपयोग किया गया। इन कालीनों की मूल कला पर्शियन कालीनों से प्रेरित थी परन्तु उसके साथ और उन्हें सुंदर फूलों की कलियों (गुलाब, बकाइन, बेलफ्लॉवर (Bellflowers), बनफशा, लिली (Lily)) और जंगली जानवरों (मगरमच्छ, बाघ, गैंडे, हाथी, साथ ही ड्रेगन (Dragons)) से अलंकृत किया गया था। यह शैली अगले सम्राट शाहजहाँ के समय तक परिपक्वता के अपने चरम पर पहुंच गई। शाहजहाँ के शासनकाल के दौरान कई शानदार कालीनों का निर्माण किया गया था।
तकनीकी रूप से भारतीय कालीन काफी उत्कृष्ट हैं और इसमें इस्तेमाल की जाने वाली फारसी गाँठ एक बहुत ही उच्च घनत्व वाली होती है, जिसकी लंबाई लगभग 12,000 से 19,000 गाँठे प्रति वर्ग डेसीमीटर (Decimeter) होती है। इन कालीनों में इस्तेमाल किए जाने वाला ऊन अक्सर इतना पतला होता है कि इसे रेशम के लिए भी लिया जा सकता है। रेशम के कालीन दुर्लभ होते हैं और अत्यधिक उच्च गाँठ घनत्व तक फैलते हैं।
वहीं ज्यामितीय पैटर्न पर बने हुए कालीन आमतौर पर बेहतर होते हैं। एक ज्यामितीय योजना से बनी कालीन उसके डिजाईन को क्रमिक रूप से प्रकट करती है और उसके बनावट को एक विचार देती है। पैनल पैटर्न (Panel Patterns) को सावधानी से प्रबंधित ना किए जाने पर वे मोटे हो जाते हैं। भारत के कालीन रंग-सामंजस्य से परिपूर्ण और खिले हुए होते हैं और वे धूप में फूलों के बिस्तर के समान चमकते हैं। भारतीय कालीन को लंदन(London) के भारतीय कार्यालय की इमारत व्हाइटहॉल (Whitehall) के संग्रहालय में देख सकते हैं, यह संग्रहालय जनता के लिए खुला है।
टेक्सटाइल म्यूजियम में 17 वीं शताब्दी का 82 x 88 सेमी के आकार का कालीन देख सकते हैं। जिसमें लाल पृष्ठभूमि के ऊपर दो बड़े हाथियों की अत्यंत प्राकृतिक लड़ाई के चित्र को दर्शाया गया है। कालीन के डिजाइन में हाथियों का समावेश भारतीय कलात्मक अभिव्यक्ति की एक विशिष्ट आकृति पहिचान है, और गाँठ वाले कालीनों के उत्पादन में आसानी से पहचाने जाने योग्य प्रतीक का प्रतिनिधित्व करता है। यह कालीन शिल्प कौशल की गुणवत्ता, बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित डिज़ाइन, उपयोग किए गए उत्कृष्ट ऊन और उज्ज्वल रंगों के कारण बहुत आकर्षित दिखता है।
नैशनल गैलरी, वाशिंगटन (National Gallery, Washington) में 180 x 300 सेमी के आकार वाली प्राकृतिक और फूलों की सजावट से डिजाइन की गई 17 वीं शताब्दी की कालीन है। इस कालीन में सटीक पैटर्न के साथ व्यवस्थित जानवरों के डिजाइनों की एक श्रृंखला है। लाल पृष्ठभूमि के साथ विभिन्न सुंदर फूल और फूलों की टहनियां है और वहीं कई जानवरों को चित्रित किया गया है। वहीं विवरण में एक आदमी को एक बड़े हाथी के ऊपर चढ़ा हुआ दिखाया गया है।
संदर्भ :-
1.https://bit.ly/2G7iURR
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