समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
भारतीय जीवन और संस्कृति के प्रारंभिक साहित्यिक संदर्भों से यह स्पष्ट होता है कि जानवरों की खाल का उपयोग विभिन्न चीजों में होता आ रहा है, जैसे कि जूतों, कपड़ों, पुस्तकों की बाइण्डिंग, फर्नीचर एवं शस्त्र आदि में। जूते आमतौर पर न केवल चमड़े के बने होते थे, बल्कि पक्षियों और अन्य प्राणियों के पंख और खाल से भी बनते थे।
वैदिक काल में चमड़े और खाल का इस्तेमाल आमतौर पर पोशाक की सामग्री बनाने लिए किया जाता था। ऋग्वेद में भी हिरणों की खाल पहने हुए मरुत का उल्लेख मिलता है। वहीं व्रात्य के प्रमुखों और उनके अनुयायियों द्वारा दो परत की खाल (काली और सफेद) पहनने का भी उल्लेख किया गया है। चर्मशोधक के कार्य के लिए चर्मम्न शब्द का उपयोग किया जाता है। वैदिक समाज में चर्मशोधक और ऊर्णजिन कर्ता का पेशा काफी प्रमुख और महत्वपूर्ण था और साथ ही समाज में इनकी काफी आवश्यकता भी थी। मोची को संस्कृत में पादुकाकृत (जूते का निर्माता) के रूप में जाना जाता है। बौद्ध काल में समाज में मोची के पेशे को काफी महत्वपूर्ण माना जाता था क्योंकि बौद्ध की संपूर्ण जातक कथा एक मोची “काम-जातक” को समर्पित है।
अधिकांश विवरण में चमड़े के कार्यकर्ता चाहे वे चर्मकार या मोची को हमेशा भारतीय समाज में सबसे निचले स्थान पर रखा जाता है, क्योंकि ये समाज की जाति प्रथा से परे थे, इसलिए इन्हें अछूत माना जाता था। सिर्फ इतना ही नहीं, 7 वीं शताब्दी के चीनी बौद्ध तीर्थयात्री हिसियन-त्सांग जब भारत में आए तो उन्होंने आश्चर्य के साथ टिप्पणी कि, “भारत की एक प्रथा में अछूतों के साथ संयोगवश संपर्क में आने पर महा अपवित्रीकरण माना जाता था और धार्मिक स्नान करना अनिवार्य होता था।” उनके द्वारा अपने यात्रा वृत्तांत में उत्तरी भारत के लोगों के जीवन के बारे में रोचक अवलोकन किया था। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि अछूत लोग कस्बों और गांवों के बाहरी इलाके में रहते थे। उनका कार्य सबसे छोटा होता था, जैसे साफ-सफाई, श्मशान की भूमि को साफ करना और चमड़े की सामग्री का निर्माण करना।
प्राचीन काल में भारतीय गावों में चमड़े के श्रमिक और मोची, कुम्हार और तेल निकालने वालों की तरह इतने आम नहीं थे, क्योंकि पानी के लिए बर्तन और खाना पकाने के लिए तेल की मांग जूतों से अधिक थी। साथ ही जो समुदाय जानवरों की खाल को एकत्रित करते थे, उन्हें गांवों और कस्बों के बाहर रहना होता था। वहीं मोची प्राचीन भारत में सामाजिक और अनुष्ठानिक जीवन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते थे। इतावली यात्री मानुची के विवरण से यह पता चलता है कि व्यापारियों और दुकानदारों की जातियों में विवाह उस स्थान के मोची के आशीर्वाद के साथ ही किए जा सकते थे, उन्हें समाज के सबसे निचले और सबसे तिरस्कृत भाग के रूप में देखे जाने के बावजूद।
मध्य भारत के मोची को दो शाखाओं में विभाजित किया गया था: निचली जाति – जो जूते बनाते थे और दूसरे जो जीन या साज्ज-सजा की समाग्री बनाते थे। जीन या साज्ज-सजा की समाग्री बनाने वाले को जीनगर और जो किताबों को बांधने वाले को जील्दगर के रूप में जाना जाता था। हिंदू मोचियों को चार उप-समूहों में बांटा गया है, मियंगर (जो चमड़े के बक्से बनाते हैं), पनिगर (जो चमड़े पर चांदी और सोने का काम करते हैं), जिंगर (जो घोड़ा गाड़ी और घोड़ों के लिए श्रृंगार का निर्माण करते हैं), और जोदिगर (जो जूते बनाते हैं)।
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.