स्‍वयं अध्‍ययन हेतु कैसे बढ़ाई जाए रूचि?

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
16-02-2019 11:20 AM
स्‍वयं अध्‍ययन हेतु कैसे बढ़ाई जाए रूचि?

शिक्षा जीवन का वह पहलू है जिसे प्राप्‍त करने के लिए परिपक्‍वता और इच्‍छा शक्ति दोनों का होना अत्‍यंत आवश्‍यक है अर्थात कोई भी बच्‍चा यह निर्णय ले सकता की उसे क्‍या पढ़ना चाहिए और ना ही कोई व्‍यक्ति उसकी इच्‍छा के विरूद्ध उसे कुछ पढ़ा सकता है। एक प्रभावी शिक्षण के लिए बालक की प्रबल इच्‍छाशक्ति का होना अनिवार्य है। अतः बालकों को शिक्षा देते समय ऐसी शिक्षा प्रणाली का अनुसरण किया जाए, जो भिन्‍न-भिन्‍न प्रवृत्ति वाले छात्रों पर समान प्रभाव डाले। अक्‍सर शिक्षकों के पास विभिन्‍न रोचक जानकारियां होती हैं, जो छात्रों के लिए आवश्‍यक भी होती है तथा शिक्षक इसे छात्रों को प्रदान करना चाहता है किंतु यदि छात्र इस शिक्षा को ग्रहण करने के लिए इच्‍छुक नहीं है तो ऐसी स्थिति में शिक्षक का कर्तव्‍य बनता है कि वह बालकों की रूचियों का अध्‍ययन विश्‍लेषण करे और उसके अनुसार उन्‍हें शिक्षा प्रदान करे।

एक अच्‍छे शिक्षक और वक्‍ता के भीतर यह गुण होना चाहिए कि वह अपनी कक्षा या श्रोतागण के मध्‍य एक तथ्‍य को एक ही अर्थ में अभिव्‍यक्‍त करे तथा वे अपने श्रोताओं के विचार, कहे और अनकहे प्रश्‍नों को सूने और समझे तब अपनी बात प्रस्‍तुत करे। एक व्‍यक्ति जितना अंतरज्ञान से भरपुर होगा वह उतने ही अधिक व्‍यक्तियों या समूह को समझने की क्षमता रखेगा। समूह में उपस्थित लोग अक्‍सर ज्‍यादा जागरूक होते हैं, जिनकी जिज्ञासाओं को एक संवेदनशील वक्‍ता ही संतुष्‍ट कर सकता है। जिस समूह में बच्‍चे भी शामिल होते हैं उनकी अनभिज्ञता का अनुमान लगाना कठिन हो जाता है, विशेषकर जब चर्चा अमूर्त सिद्धातों पर की जा रही हो। ऐसी स्थिति में अर्थपूर्ण शब्‍दावली का प्रयोग किया जाना चाहिए। बच्‍चों की प्रारंभिक शिक्षा के दौरान इस तथ्‍य का विशेष ध्‍यान रखना चाहिए, यदि संभव हो तो कक्षाएं छोटी होनी चाहिए तथा कक्षा में ऐसी विधि का अनुसरण किया जाए जिसके माध्‍यम से बच्‍चों की रूची, ध्‍यान और उनकी समस्‍याओं का व्‍यक्तिगत निरीक्षण किया जा सके।

बच्‍चों सहित सभी व्‍यक्तियों के जीवन का आधार स्‍तंभ शरीर, भावनाएं, इच्छा शक्ति और बुद्धि हैं जिनके आधार पर व्‍यक्ति क्रिया-प्रतिक्रिया करता है। व्‍यक्ति दो प्रकार के होते हैं बहिर्मुखी एवं अंतर्मुखी। बहिर्मुखी व्‍यक्ति अक्‍सर किसी भी तथ्‍य को सहजता से स्‍वीकार कर लेते हैं किंतु बहिर्मुखी व्‍यक्ति किसी भी तथ्‍य को स्‍वीकारने से पूर्व उसकी गहनता से जांच करते हैं तत्‍पश्‍चात उसे स्‍वीकारते हैं। यही स्थिति बच्‍चों की भी होती है अक्‍सर बहिर्मुखी बच्‍चे समायोजित होते हैं अर्थात वे वातावरण और परिस्थिति के अनुसार आसानी से सामंजस्य बैठा लेते हैं। इसलिए इन्‍हें बेहतर समझा जाता है, किंतु इसका अर्थ यह नहीं कि अंतर्मुखी बच्‍चे बेहतर नहीं होते असल में अंतर्मुखी केवल सार्थक तथ्‍यों पर ही प्रतिक्रिया करना पसंद करते हैं, तथा बड़े-बड़े प्रतिभावान व्‍यक्ति भी अंतर्मुखी होते हैं। सभी स्थिति में, बच्‍चों की कमजोरियों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, उनकी ताकत पर विशेष ध्‍यान दिया जाना चाहिए। बच्‍चे इस सकारात्मक दृष्टिकोण के लिए बेहतर प्रतिक्रिया देते हैं।

स्वभाव से अधिक विचारशील बच्‍चों की तुलना में शरीरिक-चेतनाओं पर ध्यान केंद्रित करने वाले बच्चों पर अधिक ध्‍यान देने की आवश्‍यकता होती है। प्रत्येक नियम सभी बच्चों के लिए सही नहीं हो सकते हैं। शिक्षक या स्कूल के लिए यह उचित होगा कि वह हर बच्चे पर एक फाइल तैयार करे, उसके सामयिक लक्षणों को सूचीबद्ध करे, अनुशासन और निर्देश के विषय में उसकी प्रतिक्रियाएं इत्‍यादि शामिल की जाएं। यह भविष्य में उनके व्यक्तिगत "जीवन के लिए शिक्षा" हेतु निर्णय लेने में सहायता कर सकती है।

अक्‍सर यह कहा जाता है कि सभी व्‍यक्तियों को भगवान के समक्ष समान बनाया गया है; सभी मानवों को अपनी प्रतिभाओं को विकसित करने, अपनी आंतरिक क्षमताओं के अनुसार अपनी इच्छाओं को पूरा करने और अपने स्वयं के स्तर से ऊंचा उठने का समान अधिकार है अर्थात् सभी व्‍यक्तियों में समान ऊंचाइयों को प्राप्त करने की क्षमता होती है। आवश्‍यकता है उन्‍हें उपयोग करने की।

संदर्भ:
1. SWAMI KRIYANANDA. 2006. Education For Life. Crystal Clarity Publishers.

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