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भारत में वर्ष दर वर्ष मांस की खपत तीव्रता से बढ़ती जा रही है। ग्रामीण भारत में, मटन, चिकन, मछली आदि की खपत वर्ष 2004 से वर्ष 2011 के बीच दोगुनी से अधिक हो गई है। यदि मांग बढ़ रही है तो सामान्य सी बात है उत्पादन भी बढ़ेगा। उत्पादन को बढ़ाने के लिए खाद्य पशु पालकों द्वारा विभिन्न हथकंडे अपनाए जा रहे हैं, जिससे वे अपने व्यवसाय में कम मेहनत और लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें। भारत में खाद्य पशुओं में एंटिबायोटिक (Antibiotic) का उपयोग भी इनमें से एक है। विकास को बढ़ाने और रोगों को रोकने के लिए खाद्य पशुओं को उनके खाद्य में एंटीबायोटिक दवाओं की एक छोटी मात्रा दी जाती है। किंतु मानव स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बहुत हानिकारक होती है। टेट्रासायक्लिन (Tetracyclines) एंव फ्लुरोक्युनोलोन्स (fluoroquinolones) एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग मानव में हैजा, मलेरिया, श्वसन आदि के संक्रमण के उचार हेतु किया जाता है, जो पशुओं में सर्वाधिक रोगाणुरोधी के रूप में उपयोग किये जा रहे हैं। भारत में क्युनोलोन्स का उपयोग सर्वाधिक देखा गया है।
एक अनुमान के अनुसार पशु पालन केंद्रों में एंटीबायोटिक के उपयोग के उच्च स्तर वाले दस देशों में भारत चौथे स्थान पर है। इस एंटीबायोटिक उपयोग की उच्चतम वृद्धि दर 2030 तक निरंतर रहने वाली है। भारत में खाद्य पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग में अनुमानित वृद्धि कुछ इस प्रकार है:
‘जर्नल साइंस’ में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार, यदि विनियामक प्राधिकरण कोई कदम नहीं उठाता है तो वर्ष 2030 तक खाद्य पशुओं के भोजन में एंटीबायोटिक दवाओं में 82 फीसदी की वृद्धि (4,796 टन एंटीबायोटिक दवाएं) हो सकती है। 2013 में खाद्य पशुओं को 2,633 टन एंटीबायोटिक दवाएं खिलाई गई थी। जो अप्रत्यक्ष रूप में हमारे शरीर में प्रवेश कर रही है जिसके परिणाम भयावह हो सकते हैं।
एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को पूर्णतः अभी प्रतिबंधित तो नहीं किया जा सकता किंतु कुछ सख्त कदम उठाकर इनके उपयोग पर नियंत्रण लगाया जा सकता है, जैसे इनके उपयोग की सीमा निर्धारित करना तथा पशु चिकित्सा एंटीबायोटिक दवाओं की कीमतों में वृद्धि करना। नए अध्ययन में विश्व स्तर पर 50 मिलीग्राम / पीसीयू (PCU) पर फार्म के पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को रोकने का सुझाव दिया गया है। यदि भारत में इस सीमा को अपनाया जाता है तो खाद्य पशुओं में एंटीबायोटिक का उपयोग 15% या 2036 तक 736 टन कम हो जाएगा। भारत में उच्च मात्रा में इनके उपयोग का एक सबसे बड़ा कारण एंटीबायोटिक दवाओं की कीमतों का कम होना भी है। यदि भारत में पशु चिकित्सा एंटीबायोटिक दवाओं के मूल्य पर 50 फीसदी उपयोगकर्ता शुल्क लगाया जाता है तो 2030 तक 46 फीसदी या 2,185 टन तक एंटीबायोटिक उपयोग को घटाया जा सकता है। यदि भारत यह दोनों कदम उठाता है तो खाद्य पशुओं में एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को 61 फीसदी तक कम किया जा सकता है।
एंटीबायोटिक दवाओं के उपयोग को यदि वास्तव में कम करना है तो सर्वप्रथम उत्पादक और उपभोक्ताओं को इसके दुष्परिणाम के विषय में जागरूक करना अत्यंत आवश्यक हैं। यह देखा भी गया है जिन क्षेत्रों में लोग इसके लिए जागरूक हुए हैं उन क्षेत्रों में स्वतः ही इनका उपयोग घटा है।
संदर्भ:
1.https://bit.ly/2WXzmuk
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