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विश्व में भारत एकमात्र ऐसा देश है जहां नदियों को माता के रूप में पूजा जाता है। नदियां भारत के धार्मिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी पहलुओं से जुड़ी हुई हैं। विश्व में नदियों को जीवनदायिनी के रूप में जाना जाता किंतु वर्तमान स्थिति देखी जाए तो मानव द्वारा की जा रही उल्टी सीधी गतिविधियों के कारण इन्हीं जीवनदायिनी नदियों का जीवन संकट में आ गया है। भारत में दिन प्रतिदिन नदियों की स्थिति बिगड़ती जा रही है- गंगा, यमुना, गोमती इत्यादि की वर्तमान स्थिति इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। कई नदियां अपने उद्गम स्थल से तो स्वच्छ शीतल धारा के रूप में निकलती हैं, किंतु वही नदियां शहरों में प्रवेश करते ही मलीन नाले के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं। ऐसी ही स्थिति होती जा रही है गोमती नदी की।
गोमती नदी उत्तर भारत के पारिस्थितिकी तंत्र में अहम भूमिका निभाती है, इसका उद्गम स्थल पीलीभित से तीन किलोमीटर पूर्व गोमद ताल नामक जलाशय है। गोमती नदी गंगा नदी की सहायक नदी है, लेकिन आज इसका प्रदूषण स्तर गंगा नदी से भी तीव्रता के साथ बढ़ता जा रहा है। नदी प्रदुषण की प्रक्रिया आज से नहीं वरन् कई वर्ष पूर्व से प्रारंभ हो गयी थी। गोमती नदी के किनारे बसे लखनऊ शहर में नवाबों द्वारा बनाये गये महलों में स्वच्छ जल गोमती नदी से लाया जाता था तथा महल के अपशिष्ट जल (स्नानगारों एवं शौचालय इत्यादि) की निकासी गोमती नदी में कर दी जाती थी।
नदी के किनारे बसे रंजककर्ता वस्त्रों को रंगने के लिए गोमती नदी का जल उपयोग करते थे तथा रंजक प्रक्रिया पूर्ण होने के पश्चात दुषित जल को नदी में छोड़ दिया जाता था। अंग्रेजों ने अपनी छावनी के लिए नहरों के माध्यम से गोमती नदी के जल का उपयोग किया। रोजगार की दृष्टि से भी गोमती नदी ने अपनी अहम भूमिका निभाई अर्थात इसके आसपास के अधिकांश कृषक सिंचाई हेतु गोमती के जल का उपयोग करते हैं तथा मत्स्य पालकों के लिए यह एक महत्वपूर्ण स्त्रोत है। इस प्रकार यह नदी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप में अपने आस पास के क्षेत्रों का भरण पोषण भी करती आ रही है।
इसके आस पास शहरों के विकास से इसकी स्थिति ओर बिगड़ती गयी वर्तमान समय में उद्योगों, शहरों और घरों तथा अन्य सभी क्षेत्रों का अपशिष्ट जल नदि में छोड़ दिया जाता है। जिस कारण नदी का पानी विषैला होता जा रहा है तथा जलीय जीवन भी प्रभावित हो रहा है। अभी कुछ समय पूर्व गौमती नदी में कई कुन्तल मछलियां मर गयी, स्थिति यह थी कि मछुआरे सुबह से शाम तक मछलियां एकत्रित करते करते थक गये किंतु यह खत्म नहीं हुयी। जानकारों के अनुसार नदी में प्रदुषण के कारण पानी में ऑक्सिजन की मात्रा कम हो गयी, जिससे इतनी बड़ी मात्रा में मछलियां मारी गयी। केमिकल इंजिनियर डॉ इंद्रमणि मिश्रा ने कहा गोमती का पानी पीने तो दूर की बात नहाने योग्य भी नहीं रहा है।
जनवरी 2011 से दिसंबर 2012 के दौरान जौनपुर में परिक्षण हेतु गोमती नदी से पानी के नमूने एकत्र किए गए थे। भौतिक रसायन परिक्षण के लिए, चयनित जगहों से 500 मिलीलीटर नदी के जल को पॉलिएथिलीन की बोतल में भरकर नमूने एकत्रित किये गये थे। नदी से एकत्रित किये गये इस जल के परिक्षण के लिए विभिन्न रासायिनिक प्रक्रियाओं से गुजारा गया। जिसमें इसके विभिन्न आयामों की जांच की गयी ।
जौनपुर में गोमती नदी के पानी से भौतिक-रासायनिक गुणों का विश्लेषण
गोमती नदी की स्थिति दिन प्रतिदिन बिगड़ती जा रही है। नगरों, उद्योगों और घरों से निकलने वाले कचरे ने इसकी स्थिति दयनीय बना दी है। दौलतगंज के उपचार संयंत्र में प्रतिदिन 303 मिलियन लीटर सीवेज आता है जो नदी के पानी में जाकर मिल रहा है तथा इससे नदी का पानी विषाक्त हो रहा है और नदी में ऑक्सिजन की मात्रा घटती जा रही है। सीवेज के साथ-साथ शहर के मृत जन्तुओं को भी नदी में बहा दिया जाता है। जिसके परिणामस्वरूप जल प्रदूषण की मात्रा बढ़ रही है और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र भी प्रभावित हो रहा है। रोचक तथ्य यह है कि नदी कि यह स्थिति होने के पश्चात भी सरकार या प्रशासन द्वारा इस पर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है। नदी स्वस्छता की योजनाएं तो बनाई जा रही हैं किंतु इसमें कोई प्रभावी सफलता हासिल नहीं हो सकी है। नदी स्वच्छता हेतु सर्वप्रथम इसमें अपशिष्ट पदार्थों और अपशिष्ट जल की निकासी को रोकना हो तभी कोई प्रभावी परिणाम सामने आ सकते हैं।
संदर्भ:
1. https://bit.ly/2SjFrTn
2. https://bit.ly/2UNWE3M
3. https://bit.ly/2TDGqdD
4. https://bit.ly/2WKqYyl
5. https://bit.ly/2Gh0107
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