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प्राचीन भारत मे विवाह को लेकर महिलाओं व पुरूषों को पूरी स्वतंत्रता थी, वे चाहे तो किसी भी समुदाय की महिला व पुरूष से विवाह कर सकते थे, कितुं इसमें स्त्री की पसंद को प्राथमिकता दी जाती थी। परंतु कालांतर में जब जाती व्यवस्था जटिल हुई तो जाति आधारित व्यवस्था शुरू हुई, और इस जाति व्यवस्था में भी उपजाति व्यवस्था आ गयी। और धीरे- धीरे अन्तर्जातीय विवाह पर समाज का विरोध देखने को मिलने लगा। जब धर्म का विभाजन हुआ तो अंतर्धार्मिक विवाह पर भी समाज द्वारा रोक लगा दी गई थी। परंतु वर्तमान में इस रूढ़ीवादी सोच से परे युवा वर्ग के लोग में अंतर्धार्मिक और अन्तर्जातीय विवाह का प्रचलन बढ़ रहा है और ये गैर-कानूनी भी नही है, यहां तक की हिंदू धर्म के आध्यात्मिक ग्रंथों में भी अन्तर्जातीय विवाह के विरूद्ध कुछ नहीं कहा गया है।
अन्तर्जातीय और अंतर्धार्मिक विवाह क्या है?
जब दो लोग जो एक धर्म के तो हों लेकिन उनकी जाती और समुदाय अलग हों, वे शादी करते हैं तो इसे अंतर-जातिय विवाह कहा जाता है और जब दो लोग जो अलग अलग धर्म के हों, वे शादी करते हैं तो इसे अंतर्धार्मिक विवाह कहा जाता है। आजकल इनका प्रचलन बढ़ रहा है क्यूंकि ज्यादातर युवा वर्ग के लोग, जाति और धर्म के बंधनों से परे अपनी व्यक्तिगत पसंद से शादी करना चाहते हैं। सर्वोच्च न्यायलय ने भी इसे सही मानते हुए मान्यता दे दी है।
अंतर-जातिय और अंतर्धार्मिक विवाहों कि संख्या में अब तेजी से वृद्धि देखने को मिल रही है, स्टाम्प और पंजीकरण के विभाग से प्राप्त डेटा से पता चलता है कि अधिनियम के तहत 2013-14 में 2,624 विवाह पंजीकृत किए गए थे, बाद के वर्ष में यह संख्या बढ़कर 10,655 हो गई, 2013-14 से 2014-15 तक इसमें 306% की वृद्धि देखने को मिली थी। और इसी कारण से ये ज़रूरी है कि इस के सम्बन्ध में सही जानकारी और सूचना आपको पता होनी चाहिये। आइये जानते हैं कुछ ज़रूरी तथ्य इसी सम्बन्ध में।
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 भारत के पूरे क्षेत्र (जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर) पर लागू होता है। यह अधिनियम विवाह, पंजीकरण और तलाक के प्रावधानों के साथ पुराने अधिनियम III, 1872 का बदला हुआ रूप है। इस अधिनियम के प्राविधानों के अंतर्गत किसी भी धर्म या जाति के दो व्यक्तियों के बीच विवाह हो सकता है। ऐसा विवाह क़ानूनी रूप से मान्य होता है। इक्कीस (21) वर्ष की आयु पूरी कर चुका कोई भी लड़का तथा अठारह (18) वर्ष की आयु पूरी कर चुकी कोई भी लड़की जो इस कानून के तहत विवाह करना चाहते हैं वे एक प्रार्थना-पत्र जिला विवाह अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत कर सकते हैं। विवाह अधिकारी इस आवेदन को प्राप्त करने के बाद तीस दिन का समय देते हुए उस विवाह के सम्बन्ध में नोटिस जारी करते हैं। यदि तीस दिन के अन्दर उस विवाह के खिलाफ कोई आपत्ति प्राप्त नहीं होती है तो अधिकारी विवाह संपन्न कराते हैं। परंतु ऐसा नहीं है की अंतर-जातिया और अंतर्धार्मिक विवाहों का ही इस अधिनियम के तहत पंजीकरण होता है। सभी प्रकार के विवाह का पंजीकरण विशेष विवाह अधिनियम के तहत किया जा सकता है, यदि आप कानूनी रूप से अपने विवाह का पंजीकरण करवाना चाहते है तो इस अधिनियम के तहत करवा सकते है।
हमारे देश के कई स्थानों पर अभी भी अंतर जातीय विवाह वर्जित है। भारत जाति व्यवस्था की एक बहुत ही कठोर संरचना का अनुसरण करता है। जो कोई भी अपनी जाति से हटकर विवाह करता है और परंपरागत बाधाओं को मानने से वंचित होता है, उसे समाज से त्याग दिया जाता है। हर वर्ष ना जाने कितनी हत्याएँ दर्ज की जाती हैं (सबसे अधिक हरियाणा में) और दुर्भाग्य की बात तो ये है की हत्या करने वाले इसे एक गौरव का विषय समझते हैं। यही कारण था की भारत को एक ऐसे कानून की आवश्यकता है जो जातियों और धार्मिक विभक्तों से ऊपर उठकर प्रेम के आधार पर विवाह करने वाले लोगों के हितों की रक्षा कर सके। इसलिए संसद ने विशेष विवाह अधिनियम, 1954 अधिनियमित करा, जो सभी भारतीयों एवं प्रवासी भारतीयों के लिए विशेष रूप से किए गए विवाह के लिए प्रावधान देता है, भले ही वो किसी भी जाती या धर्म के हों।
यह बहुत महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक भारतीय विशेष विवाह अधिनियम के बारे में कुछ जरूरी तथ्यों का पता होना चाहिए:
अधिनियम के दायरे:
विशेष विवाह अधिनियम अंतर जाति और अंतर-धर्म विवाह से संबंधित है। अंतर जाति विवाह दो अलग-अलग जातियों से संबंधित लोगों के बीच एक विवाह है। अब वह दिन बीत गए हैं जब लोग अपने माता-पिता के फैसले के आधार पर विवाह कर लेते थे। अब युवाओं की अपनी खुद की पसंद है। प्रेम एक अति सुंदर भावना है इसे धर्म एवं जाति के साथ नहीं तौला जाना चाहिए। सारे ही धर्म एक बराबर होते हैं और इनके बीच में विवाह करना कोई भी बड़ी बात नहीं है। इसलिए विशेष विवाह अधिनियम एक विशेष कानून है जो विशेष प्रकार के विवाह को प्रावधान देने के लिए अधिनियमित किया गया था जिसके अनुसार बिना धर्म परिवर्तन करे आप विवाह का पंजीयन कर सकते हैं।
अधिनियम के आवेदन:
यह जानकारी प्रत्येक भारतीय के लिए महत्वपूर्ण है, क्योंकि इस जानकारी के माध्यम से ही आप इस आधनियम का फायदा उठा सकते हैं। इस अधिनियम में हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख, जैन और बौद्धों के विवाह शामिल हैं। यह अधिनियम जम्मू और कश्मीर राज्य को छोड़कर, पूरे भारत पर लागू होता है यह अधिनियम विदेशों में रहने वाले भारतीय नागरिकों के लिए भी है।
जरूरी आवश्यकताएँ:
इस अधिनियम के तहत विवाह के लिए, जिले के विवाह रेजिस्ट्रार के पास एक प्रार्थना-पत्र दर्ज कराना होता है, विवाह अधिकारी इस आवेदन को प्राप्त करने के बाद तीस दिन का समय देते हुए उस विवाह के सम्बन्ध में नोटिस जारी करते हैं। विवाह को नोटिस प्रकाशित होने के दिनांक से 30 दिन की समाप्ती के बाद मान्यता मिल जाती है। परंतु यदि पक्षों से संबंधित कोई व्यक्ति ऐसे विवाह से संबंधित कोई आपत्ति दिखाता है और यदि वह आपत्ति रेजिस्ट्रार को उचित कारण लगती है, तो रेजिस्ट्रार विवाह को निष्कासित कर सकता है। एक वैध विवाह के लिए ये भी आवश्यक है कि विवाह पक्ष विवाह अधिकारी और कोई 3 साक्ष्यों के समक्ष अपनी सहमति दें।
संबन्धित शर्तेँ:
• वधू की उम्र कम-से-कम 18 वर्ष होनी चाहिए एवं वर की उम्र कम-से-कम 21 वर्ष होनी चाहिए।
• दोनों पक्ष मानसिक रूप से स्वस्थ होना चाहिए ताकि वह स्वयं के लिए फैसला ले सकें।
• दोनों को अविवाहित होना चाहिए और उस समय कोई जीवित जीवनसाथी नहीं होना चाहिए।
• उनके एक-दूसरे से किसी भी प्रकार के ख़ून के रिश्ते नहीं होने चाहिए अर्थात वे निषिद्ध सम्बन्धों के अंतर्गत नहीं आना चाहिए।
भारत में विशेष विवाह अधिनियम के आगमन के साथ परिवर्तन:
चूंकि अंतर जातीय या अंतर-धर्म विवाह को अभी भी हमारे देश में वर्जित माना जाता है इसलिए विशेष विवाह अधिनियम की स्थापना एक बड़ी तात्कालिकता थी। यदि हम इन विवाहों के सकारात्मक पक्ष को देखते हैं, तो हम यह पाते हैं कि इन्होंने हमारी राष्ट्रीय अखंडता को जोड़कर रखा है। हमें यह समझने की ज़रूरत है कि हर भारतीय को देश में जाति व्यवस्था के बारे में अपनी मानसिकता बदलनी चाहिए और विभिन्न समुदायों और धर्म के बीच विवाह की सराहना करनी चाहिए।
उत्तराधिकार अधिकार पर आवेदन:
एक और महत्वपूर्ण बात जो कि हर भारतीय को विशेष विवाह अधिनियम के बारे में ज्ञात होनी चाहिए, वो यह है कि, इस अधिनियम के तहत विवाहित व्यक्तियों की संपत्ति या उनके बच्चों की संपत्ति से संबन्धित उत्तराधिकार भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा शासित होगा। परंतु, यदि विवाह पक्ष हिन्दू, बौद्ध, सिख, या जैन हैं, तब उस स्थिति में उनकी संपत्ति का उत्तराधिकार हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम द्वारा शासित होगा।
शादी के प्रथम वर्ष के दौरान तलाक पर प्रतिबंध:
विवाह का कोई भी पक्ष एक वर्ष की समय सीमा समाप्त होने से पूर्व तलाक हेतु न्यायालय में याचिका नहीं लगा सकता है।
क्या पुनर्विवाह किया जा सकता है?
जब विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत व्यक्तियों के पुनर्विवाह का सवाल उठता है, तो यह बात ध्यान में रखी जानी चाहिए कि जहां विवाह भंग हो जाता है और अपील का अधिकार भी समाप्त हो जाता है, या निर्देशित समय सीमा में याचिका दायर नहीं की जाती है, तब इस स्थिति में,जैसा की अधिनियम में दिया गया है, पक्ष पुनर्विवाह कर सकते हैं।
सामान्य और कानूनी समझ:
सामान्य समझ यह है कि हमारा कानून अपने प्रावधानों के तहत प्रत्येक नागरिक को अपनी पसंद के किसी भी व्यक्ति से विवाह करने और एक सुखी जीवन प्राप्त करने का अधिकार देता है।
विशेष शादी अधिनियम के सामान्य और कानूनी पहलू, न केवल उन लोगों के लिए है जो कि इस अधिनियम के तहत अपने विवाह पंजीकृत करा चुके हैं, बल्कि देश के सभी नागरिकों के लिए महत्वपूर्ण है ताकि वह कानून को अच्छी तरह से समझ सकें एवं अंतर जातीय तथा अंतर्धार्मिक विवाह को भी उतना ही पवित्र मानें जितना की वे अपनी ही जाति में किए गए विवाह को मानते हैं।
वर्तमान में, भारत में अंतर-धार्मिक विवाहों के संबंध में कोई भी लाभ या प्रोत्साहन प्रदान नहीं किया जा रहा है, परंतु सरकार अन्तर्जातीय विवाहों को प्रोत्साहना राशि के तहत करीब ढाई लाख रुपए देने को तैयार है। सामाजिक एकीकरण के लिए डॉ. अम्बेडकर योजना के, जिसमें पति/पत्नी में से किसी एक को अनुसूचित जाति का सदस्य होना होगा।s साथ ही उनके विवाह को हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के तहत पंजीकृत होना चाहिए। वहीं प्रोत्साहन संबंधित राशि 2.5 लाख रुपये को केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा 50:50 के आधार पर साझा किया जाता है। जबकि केंद्र शासित प्रदेशों को 100 प्रतिशत केंद्रीय सहायता मिलती है।
संदर्भ:
1. https://en.wikipedia.org/wiki/Interfaith_marriage
2. https://bit.ly/2C9RJ5N
3. https://en.wikipedia.org/wiki/Special_Marriage_Act,_1954
4. https://bit.ly/2RbIQTD
5. https://bit.ly/2AzhU5G
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