समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
प्राचीन काल से ही घोड़ा एक उपयोगी पशु रहा है। यह एक शक्तिशाली जानवर है। इसे सवारी और समान ले जाने के लिए उपयोग में लाया जाता है। प्राचीन काल में घोड़े राजा-महाराजाओं की सेना का प्रमुख अंग थे। घोड़े का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान रहा है। शायद ही कोई होगा जिसने महाराणा प्रताप के घोड़े “चेतक” के बारे में न सुना हो। ये घोड़े भारतीय जनमानस में प्राचीन गौरव को जागृत कर वीरत्व को उत्पन्न करते हैं। परंतु यदि मैं आपसे कहूं की घोड़े अपने शुरूआती दौर में एक छोटे बहु-उंगली जीव थे जोकि एक कुत्ते जैसे लगते थे, तो आप मानेंगे। तो चलिये जानते है घोड़े की उत्पत्ति और विकास का एक संक्षिप्त वर्णन।
घोड़े की उत्पत्ति और विकास
घोड़ों के विकास एक धीमी प्रक्रिया है। यद्यपि घोड़े की उत्पत्ति के काफ़ी प्रमाण प्राप्त हो चुके है और उसका विकास के पूर्ण रूप से क्रमबद्ध अवशेष अमेरिका और अन्य देशों में प्राप्त हो चुके हैं। घोड़ों का विकास 5,50,00,000 वर्ष पूर्व ईयोसीन या आदिनूतन युग से आरंभ हुआ था, जब महाद्वीपीय, पर्वत श्रृंखलाएं और अटलांटिक तथा भारतीय महासागरों का निर्माण शुरू हुआ था। इस अवधि में रॉकी(Rocky), ऐन्डीज़(Andes), आल्पस(Alps) और पनामा रॉकी पर्वत श्रृंखलाओं ने आकार लेना शुरू किया। इस समय के दौरान समुद्री सरीसृप विलुप्त हो गए थे और अपरास्तनी विकसित हुए, तथा जल्द ही भूमि पर हाथी, गैंडे, बैल, बड़े, बंदर और घोड़े के पूर्वज दिखाई देने लगे।
मनुष्य के विकसित होने से लगभग 5 करोड़ वर्ष पहले, घोड़े का सबसे पहला स्तनधारी पूर्वज अस्तित्व में आया, जिसे हायिराकोथिरियम (Hyracotherium) कहा गया। ये लगभग 12 इंच लंबा लोमड़ी के समान छोटा था, पैर पतले और लंबे, अगले पैरों में चार अँगुलियाँ, पिछले में तीन अँगुलियाँ थी। मध्य ईयोसीन से लेकर ओलिगोसीन, मियोसिन और प्लियोसीन के दौरान इसमें विकास के कारण अगले पैर की चौथी अंगुली गायब हो गई, और शेष तीन अँगुलियां अल्पविकसित खुर में विकसित हो गई और बाहरी अंगुलियां अर्धविकसित उपांगों में सिकुड़ गये तथा ये उपांगों अब जमीन तक नहीं पहुंचे पाते है।
दक्षिणी संयुक्त राज्य में हायिराकोथिरियम(Hyracotherium) के बड़ी संख्या में जीवाश्म मिलते है इस बात का प्रमाण है कि आज के बड़े पैमाने पर खुर वाले स्तनधारियों का परिवार दुनिया के उस तरफ उत्पन्न हुआ था। बाद में ये ज़मीनी मार्ग से होते हुए उत्तर की ओर पलायन कर गये और एशिया तथा यूरोप में फैल गये। उसके बाद इस कुल की अमेरिकी और यूरेशियाई नस्ल विलुप्त होने लगी तथा धीरे-धीरे पृथ्वी की भूगर्भीय स्थिति बदलने लगी जिस कारण करीब 4 करोड़ वर्ष पहले हायिराकोथिरियम की नस्ल पूरी तरह से विलुप्त हो गई और जो शेष नस्ल जो इन परिस्थितियों में खुद को अनुकूल रख पाई उनमें विकास हुआ और इस प्रकार औरोहिप्पस (Orohippus) और इसके बाद एपिहिप्पस (Epihippus) प्रजातियां उभर कर आई। इनकी कंकाल संरचना तो हायिराकोथिरियम के समान ही थी परंतु इसके दाँतों में विकास हुआ था।
फिर इनके बाद तीन अँगुलियों वाले मेसोहिप्पस (Mesohippus) घोड़े की उत्पत्ति हुई। इसकी चौथी अँगुली नष्ट हो चुकी थी। यह आकार में अधिक बड़ा तो नहीं था, परंतु इसके शरीर के अनेक अंगों में विकास हो गया था। इसके बाद मियोहिप्पस (Miohippus) तथा उससे पेराहिप्पस (Parahippus) नामक घोड़े की भी उत्पत्ति हुई। यह आकार में थोड़ा बड़ा था। इसके बाद मेरीकिप्पस (Merychippus) नामक पूर्वजों ने जन्म लिया। ये पूर्वज काफी हद तक वर्तमान युग के घोड़े के समान दिखते थे। इसकी अधिकतर जातियाँ युग के अंत तक लुप्त हो गई। अंत में प्लायोसीन युग ने प्लायोहिप्पस (Pliohippus) पूर्वज का जन्म हुआ। प्लायोहिप्पस आज के घोड़े ईक्वस (Eqqus) का निकटतम पूर्वज था, और यही नस्ल आगे चल कर आधुनिक घोड़े में विकसित हुई। इस विकास क्रम में हायिराकोथिरियम से लेकर वर्तमान घोड़े ईक्वस तक इनके आकार में वृद्धि, टाँगों का लंबा होना, बाँई दाईं अँगुलियों का क्रमश: कम होना और बीच की अँगुली का खुरों में बदलना आदि परिवर्तन मुख्य है।
घोड़े के मूल पूर्वज मुख्यतः स्तॅपी (यूरेशिया के समशीतोष्ण क्षेत्र में स्थित विशाल घास के मैदान), वन और पठारी क्षेत्रों में फैल गये थे। यही कारण है कि आज ईक्वस कैबालस (Equus caballus) प्रजाति में इतनी विविधता पायी जाती है। क्षेत्रों के हिसाब से देखा जाये तो आज के घोड़े “ईक्वस” के पूर्वज तीन प्रकार के थे:
स्तॅपी के घोड़े: इनका शरीर छोटा और मजबूत था, जो लंबे तथा पतले पैरों और संकीर्ण खुरों पर आश्रित था। इसका रंग संभवतः काले बिंदुओं से भरा हुआ था, इसके पैरों पर ज़ेबरा के जैसे निशान और कंधे पर एक पट्टी थी। यह सतर्क और फुर्तीला था। इनके उत्तरजीवी आज भी मौजूद हैं, जिनका एक उदाहरण मंगोलिया जंगली घोड़े है।
जंगल के घोड़े: यह एक लंबे और चौड़े खुर, लंबे पैर छोटा सिर वाला घोड़ा था, और इसे ठंडे खून वाले घोड़ों के पूर्वजों के रूप में भी जाना जाता है। इसका मूल रंग गहरा होता था, जिस पर अक्सर पट्टीयां या बिंदु होते थे जो इसे जंगल में छुपने में मदद करते थे।
पठार के घोड़े: इस प्रकार के घोड़े अभी भी तारपान के कुछ उत्तरजीवी प्रजातियों में मिलते है, हालांकि यह कहा जाता है कि 1887 में ये जो विलुप्त हो चुकी है। इनका एक छोटा सिर, छोटे कान, बड़ी आंखें तथा एक सीधा या अवतल चेहरा था। इसका शरीर वजन में हल्का और इसके पैर तुलनात्मक रूप से लंबे और पतले थे। इसके खुर दोनों स्तॅपी और जंगल के घोड़ो से मिलते थे। ऐसा लगता है कि ये पॉनी (Pony) के पूर्वज हैं।
आज के आधुनिक घोड़े अर्थात ईक्वस अपने पूर्वजों से ऊँचाई में काफी बड़े है, हालांकि इसकी छोटी नस्ले भी पाई जाती है परंतु फिर भी ये अपने पूर्वजों से काफी भिन्न और विकसित है। वह मनुष्य से जुड़ा हुआ प्राचीन पालतू स्तनपोषी प्राणी है, जिसने अज्ञात काल से मनुष्य की किसी ने किसी रूप में सेवा की है। आधुनिक युग में घोड़ा प्रवास, खेती, खेल, संचार, और यात्रा के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।
संदर्भ:
1.अंग्रेजी पुस्तक : Silver, Caroline. Guide to the horses of the world. 1976 Elsevier Publishing Projects S.A ., Lausanne
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.