समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
यदि आज हमसे कोई भी महीने, साल के विषय में पूछता है, तो हम एक क्षण में जवाब दे देते हैं। किंतु कब और कैसे किया गया इन महीनों का निर्धारण यह एक बहुत बड़ा प्रश्न है ? जिसे जानने में खगोल विदों की सबसे बड़ी सहायता हमारे वेदों ने की जिसमें लगभग 3000 ईसा पूर्व में ही नक्षत्रों के माध्यम से काल गणना की जा चुकी थी।आज हम श्री सुभाष काक द्वारा लिखे गए पेपर 'बेबीलोनियन एंड इंडियन एस्ट्रोनॉमी: अर्ली कनेक्शंस' (Babylonian and Indian Astronomy: Early Connections) का अध्ययन कर इस विषय में थोड़ा और ज्ञान प्राप्त करने की कोशिश करेंगे।
वास्तव में तारों, तारकपुंज, क्रांतिवृत्त (सूर्यपथ) आदि के समूह या पथ को नक्षत्र कहा जाता है। नक्षत्रों की प्रथम सूची (3000 ईसा पूर्व) हमें वेदों से प्राप्त होती है, जिसमें सबसे प्राचीन नक्षत्र कृत्तिका (छः तारों का समूह) को बताया गया है, तत्पश्चात लगभग छठी शताब्दी में अश्विनी नक्षत्र (तीन तारों का समूह) के माध्यम से तिथि निर्धारण प्रारंभ किया गया, जिसमें नया विषुव (बराबर दिन रात), रेवती नक्षत्र (32 तारों का समूह) और अश्विनी नक्षत्र की सीमा पर था। नक्षत्रों की यह सूची खगोल शास्त्रियों के लिए अत्यंत सहायक सिद्ध हुयी। तैत्रीय शाखा (यजुर्वेद) में प्रत्येक नक्षत्र के लिए एक देवता हैं। वेदांग ज्योतिष में नक्षत्रों और उनके देवताओं का नाम एक दूसरे के स्थान पर प्रयोग किया गया था।
वेदांग ज्योतिष में उपस्थित नक्षत्र सूर्यपथ को 27 बराबर भागों में विभाजित करते हैं, जिसमें नक्षत्र के सितारे पथ-प्रदर्शक की भूमिका निभाते हैं। इस परिपथ के माध्यम से चंद्रमा की गति का निर्धारण किया जाता है। चंद्रमा द्वारा पृथ्वी के चारों ओर की जाने वाली परिक्रमा पूर्णतः नक्षत्र पथ में ही की जाती है, जो अपनी परिक्रमा को लगभग 27⅓ दिन में पूरा करता है। एक तिहाई अतिरिक्त समय होने के कारण चंद्रमा की तीन परिक्रमा के बाद एक दिन और जुड़ जाता है। सूर्य चंद्रमा के आधार पर वर्षों को दो भागों में विभाजित किया जाता है, जिसमें चंद्र वर्ष सूर्य वर्ष की अपेक्षा लगभग 11 दिन छोटा होता है। संहिताओं (तैत्तिरीय और कथक) में बताया गया है कि चंद्रमा सभी नक्षत्रों में समान समय व्यतीत करता है। प्रत्येक नक्षत्र लगभग 13⅓ डिग्री के बराबर होता है।
चंद्रमा की 27 नक्षत्रों में उपस्थिति के आधार पर भारतीय महीनों का निर्धारण किया गया है, यहां तक उनके नाम भी इन्हीं नक्षत्रों के आधार पर रखे गये हैं। जो इस प्रकार हैं:
प्रचीन वेदों से ज्ञात होता है कि उस दौरान संक्रातियों (उत्तरायण और दक्षिणायन में सूर्य की उपस्थिति का समय) का निर्धारण नक्षत्रों द्वारा किया जाता था। इन ग्रन्थों के माध्यम से आज हम उस दौरान की तिथियों का भी अनुमान लगा सकते हैं। वैदिक काल में नक्षत्रों और ग्रहों को देखा जा चुका था, जबकि हम नरहरी आचार्य के अथक प्रयासों से इन्हें देखने में सक्षम हुए अर्थात इन्होंने एक विशेष उपकरण तैयार किया जिसके माध्यम से तारों और ग्रहों को देखा जा सकता था।
संदर्भ:
1.Babylonian and Indian Astronomy: Early Connections, Subhash Kak
2.http://hindi.webdunia.com/learn-astrology/nakshatra-month-118050400049_1.html
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.