12 तरह की पश्चिमी चित्र कला शैलियाँ जो आपको होनी चाहिए पता

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
24-11-2018 01:44 PM
12 तरह की पश्चिमी चित्र कला शैलियाँ जो आपको होनी चाहिए पता

"कला" का प्राचीन काल से ही मनुष्यों में बहुत महत्व रहा है। कला में विभिन्न प्रकार की शैलियों का समावेश होता है जिनमें से एक है “दृश्य कला” यानि कला का वह रूप जो मुख्यत: दृश्य प्रकृति से तैयार किया जाता हैं और जिसमें अपने विचारों, भावों व संवेदनाओं को रचनात्मक व कलात्मक माध्यम द्वारा प्रस्तुत किया जाता है। भारतीय दृश्य कला का इतिहास कई वर्षों पुराना रहा है। दृश्य कला प्रदर्शन भारत में सर्वप्रथम पाषाण युग के रॉक चित्रों में हुआ, जोकि हजारों वर्ष पुराने हैं जैसे कि अजंता गुफाओं की पेंटिंग्स। उसके बाद भारत के जैन धर्म के ग्रंथ ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है जो तीर्थंकरों (पार्श्वनाथ, महावीर स्वामी आदि) का जीवनचरित को पेंटिंग के साथ पाण्डुलिपियों में सजाया गया है, जिसमें ईरान की कला शैली नजर आती है। 1375-1400 की कल्पसूत्र पांडुलिपि में महावीर के जन्म का चित्रण है। इस चित्र में महावीर की माता द्वारा देखे गये 14 मंगल सपनों के बारे में बताया गया है। इस पाण्डुलिपी चित्र में सुनहरे और लापीस लाजुली (चटकीला नीला रंग) का उपयोग किया गया है। पांडुलिपियों में चित्रकारी शायद छोटे पैमाने पर कुछ ही अवधि तक प्रचलित थी। इसके बाद मुगल चित्रकला नें भारतीय परंपराओं के साथ फारसी चित्रकला का प्रतिनिधित्व किया।

नासिरशाह (1500-1510 ई.) के शासनकाल में मांडू में चित्रित निमातनामा के साथ ही पांडुलिपि चित्रण में एक नया मोड़ आया। यह स्वदेशी और फारसी शैली के संश्लेषण का प्रतिनिधित्व करता है। चित्रकला की एक और शैली थी जिसे लोदी खुलादार के नाम से जाना जाता था जो उत्तर भारत के सल्तनत के प्रभुत्व में दिल्ली से जौनपुर तक फैल गया था। इसके बाद फारसी शैली के चित्रकला का प्रभाव मालवा, दक्षिण और जौनपुर स्कूल पर स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा। ब्रितानी राज के तहत ब्रिटिश और पश्चिमी कलाकार यहां आए तथा दृश्य कला को एक अनूठी पहचान दी। जौनपुर पश्चिमी कला के लिये 1600 से 1800 ईस्वी के बीच के दौर में अच्छी तरह से जाना जाता है, जब पश्चिमी कलाकार (उदाहरण के लिए होजेस और डेनियल) शहर में बहुत सारी कल्पनाओं और यथार्थवाद से आए और कई सारी पेंटिंग्स बनाई। पश्चिमी देशों नें भारतीय कला पर प्रभाव डाला और आधुनिक तकनीकों और विचारों तक पहुंच प्रदान की। आइये जानते हैं पश्चिमी कला के उन विभिन्न कला आंदोलनों के बारे में जिन्होंने न केवल भारत पर प्रभाव डाला बल्कि आधुनिक दृश्‍य कला को जन्म भी दिया और कला की दुनिया में क्रांतिकारी बदलाव किये:

1. पुनरुत्थान (Renaissance):

14वीं से 17वीं शताब्दी तक, इटली में अद्वितीय स्पष्टीकरण का युग था, जिसे पुनरुत्थान कहते हैं, जोकि "पुनर्जन्म" शब्द से उत्पन्न हुआ था। इस अवधि ने कला और वास्तुकला जैसे सांस्कृतिक विषयों पर विशेष ध्यान दिया गया। लियोनार्डो दा विन्ची, माइकल एंजेलो और राफेल पुनरुत्थान काल के इटली के महान चित्रकार एवं वास्तुशिल्पी थे। पुनरुत्थान-युग इटली में, पुरातन-प्रेरित मानववादी चित्रकला, शरीर-रचना की मूर्तिकला और सममितीय वास्तुकला आदि प्रचलित थी।

2. यथार्थवाद (Realism):

यथार्थवाद का सम्बंध सामाजिक यथार्थवाद से है। यह एक अंतराष्ट्रीय कला आन्दोलन है। जो फ्रांस में 1848 की फ्रेंच क्रांति के बाद शुरू हुआ था। यथार्थवादी चित्रकारी समकालीन लोगों और दैनिक जीवन के दृश्यों पर केंद्रित थी। गुस्तैव कॉर्बेट, कैमिली कैरट, जीन-फ़्रांसिस्को मिलेट आदि प्रमुख यथार्थवादी चित्रकार थें।

3. प्रभाववाद (Impressionism):

प्रभाववाद 19वीं सदी का एक कला आंदोलन था, जो फ्रांस में 1860 के दशक में कलाकारों के एक मुक्‍त संगठन के रूप में आरंभ हुआ। क्लाउड मोनेट, मैरी कैसैट, अल्फ्रेड सिस्ले इसके विख्यात चित्रकार है। जिन्होंने समकालीन परिदृश्य और शहर के जीवन को चित्रित किया।

4. प्रभाववाद के बाद (Post-Impressionism):

प्रभाववाद के बाद, यह एक मुख्य रूप से फ्रांसीसी कला आंदोलन है जो 1886 और 1905 के बीच विकसित हुआ था। प्रभाववाद के बाद(Post-Impressionism)में कला में प्रकाश और रंग के प्राकृतिकवादी चित्रण के खिलाफ प्रतिक्रिया व्यक्त की। इसमें मानवीय व्यवहार के भावनात्मक पहलू को बहुत महत्व दिया। इस आंदोलन का नेतृत्व पॉल सेज़ेन, पॉल गौगिन, विन्सेंट वैन गोग और जॉर्जेस सेराट नें किया था।

5. घनचित्रण (Cubism):

घनचित्रण 20वीं शताब्दी का एक नव-विचारक और सबसे महत्वपूर्ण कला आंदोलनों में से एक है। जिसका नेतृत्व पाब्लो पिकासो और जॉर्ज बराक नें 1900 के दशक की शुरुआत में किया था, जो यूरोपीय चित्रकला और मूर्तिकला में क्रांतिकारी परिवर्तन लाया। घनवादी चित्रकला में कम से कम लाइनों और आकारों को इस प्रकार प्रस्तुत किया जाता है कि वे अक्सर यादृच्छिक कोणों पर एक दूसरे को काटते प्रतीत होते हैं, तथा इसमें सीमित रंगों का उपयोग किया जाता है।

6. अतियथार्थवाद (Surrealism):

अतियथार्थवाद की एक सटीक परिभाषा को समझना मुश्किल हो सकता है, लेकिन यह स्पष्ट है इस प्रकार की कला आधुनिकतम शैली और तकनीक कला का एक प्रतीक है, जो 1920 के दशक में शुरू हुई थी। इसमें कलाकारों को प्रतिबंध से मुक्त करने रचनात्मक आजादी दी जाती है। इसके प्रचारकों और कलाकारों में साल्वाडोर डाली, मैक्स अर्नस्ट, रेने माग्रिटी आदि प्रधान हैं।

7. अमूर्त अभिव्यंजनावाद (Abstract Expressionism):

अमूर्त अभिव्यंजनावाद 1940 और 1950 के दशक की द्वितीय विश्व युद्ध के बाद न्यूयॉर्क में विकसित अमेरिकी चित्रकला में से एक है। कला की यह शैली अतियथार्थवाद की सहजता को स्वीकार करती है और युद्ध के बाद के अंधकारमय प्रभावों को दर्शाती है। इस कला के कलाकार जैक्सन पोलॉक, विल्म डी कूनिंग, क्लाइफोर्ड स्टिल आदि हैं।

8. पॉप कला (Pop Art):

1950 के दशक में पॉप आर्ट एक महत्वपूर्ण आंदोलन है जो समकालीन कला की शुरुआत करता है। पॉप आर्ट ने पारंपरिक कला को चुनौती दी थी। यह शैली ब्रिटेन और अमेरिका में उभरी जिसमें विज्ञापन, कॉमिक पुस्तकें और रोजमर्रा की वस्तुओं का काल्पनिक चित्रण शामिल हैं। पॉप आर्ट के सबसे मशहूर कलाकार एंडी वरहॉल, जैस्पर जॉन्स और रॉय लिचेनस्टिन आदि हैं।

9. इंस्टॉलेशन आर्ट (Installation Art):

20 वीं शताब्दी के मध्य में, अमेरिका और यूरोप में प्रमुख्य कलाकारों ने इंस्टॉलेशन आर्ट का निर्माण शुरू किया। यह कलात्मक शैली त्रि-आयामी (Three dimensional) होती हैं। इसके सबसे मशहूर कलाकार यायोई कुसामा, लुईस बुर्जियोस, डेमियन हिर्स्ट आदि हैं।

10. काइनेटिक आर्ट (Kinetic Art):

1900 के दशक की शुरुआत में, कलाकारों नें गति के साथ कला का प्रयोग करना शुरू किया, जिससे की काइनेटिक कला का जन्म हुआ। इसमें बड़े पैमाने पर पवन संचालित आकृतियों के लिए कंप्यूटर-एडेड डिज़ाइन (computer-aided design) का उपयोग होता है।

11. फोटो यथार्थवाद (Photorealism):

यह कला 1960 और 1970 के दशक के अंत में अभिव्यक्तिवाद के खिलाफ एक प्रतिक्रिया के रूप में विकशित हुई। इसमें कलाकार अपनी चित्रकला एक फोटोग्राफ के जैसे ही बनाने का सर्वोत्तम प्रयास करता है। चक क्लोज़, रिचर्ड एस्तेस, राल्फ गोइंग आदि इसके प्रमुख कलाकार हैं।

12. लोब्रो आर्ट (Lowbrow Art):

लोब्रो, जिसे पॉप अतियथार्थवाद भी कहा जाता है, लोब्रो आर्ट, 1970 के दशक के अंत में, कैलिफोर्निया क्षेत्र में, उभरने वाले एक भूमिगत दृश्य कला आंदोलन का वर्णन करता है। इसमें पेंट आर्टवर्क (paint artworks) से लेकर खिलौने, डिजिटल कला और मूर्तिकला तक शामिल हैं। इसके प्रमुख कलाकार मार्क रैडन, रे सीज़र और आदी हैं।

तो ये थें वे 12 प्रमुख कला आंदोलन, जिन्होंने आधुनिक दृश्‍य कला को जन्म दिया। एक दौर था जब जौनपुर कला की एक शानदार सल्तनत थी। यह ईरान की कला शैली से निर्मित जैन पांडुलिपियों से लेकर पश्चिमी कला शैली के चित्रण तक यहां नज़र आते थें। परंतु वर्तमान में, पश्चिमी कला शैली के चित्रण जौनपुर बाजारों में उपलब्ध नहीं हैं। अब जौनपुर बाजारों में ज्यादातर भारतीय धार्मिक कला प्रिंट नजर आते हैं।

संदर्भ:
1.https://mymodernmet.com/important-art-movements/
2.http://www.smartravel.ch/10-revolutionary-art-movements-shaped-visual-history/
3.https://www.jagranjosh.com/general-knowledge/malwa-deccan-and-jaunpur-schools-of-painting-1345186286-1
4.https://www.metmuseum.org/art/collection/search/37788

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