समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
ताश का खेल पुरे विश्व में लोकप्रिय है, जो छोटे-बड़े, जवान-बूढ़े व स्त्री-पुरूष सभी में ऐसी छाप छोड़ चुका है कि जब भी बोर (Bore) हुए ताश के पत्ते उठा लिए और इस खेल के माध्यम से दिल बहला लिया। यह खेल इतना रोचक है कि इसे खेलते-खेलते पता ही नहीं चलता कब समय बीत गया। लेकिन ताश खेलने के शौकीनों को शायद ही इसकी उत्पत्ती के बारे में पता होगा। 16वीं शताब्दी में मध्य एशिया के मुग़ल सम्राटों द्वारा ताश के खेल को लाया गया, जो गंजिफा (ताश) के काफी शौकिन थे। गंजिफा शब्द फारसी शब्द "गंजिफेह" से विकसित हुआ। इसका संदर्भ मुग़ल राजवंश के संस्थापक बाबर की जीवनी से मिलता है। गंजिफा को सबसे पहले राज दरबार में खेला गया और इसे खेलने के लिए हाथीदांत या कछुओं के खोल से बने तासों का इस्तेमाल किया जाता था। काफी समय बाद यह खेल राज दरबार से बहार आम लोगों के समक्ष आया।
एक हिंदू पौराणिक कथा के अनुसार, महाराजा की पत्नी अपने पति द्वारा दाढ़ी के बालों को खींचते देख परेशान हो गयी थी। जिसके निस्तारण केलिए उनके द्वारा ताश के खेल की स्थापना की गई।
भारत के ताश चीन और कोरिया के आयताकार (Rectangular) के आकार वालें ताशों से विपरीत गोल आकार के होते थे। जिसे बनाने के लिए कपड़े का इस्तेमाल किया जाता था। और उन कपड़ों को गोल आकार में काटकर इमली के बीज से बने गोंद को उस पर लगाया जाता था और खोखले लोहा के सिलेंडरों के प्रयोग से इनमें नक़्क़ाशी की जाती थी। उसके बाद उन्हें लाख, चूना पत्थर (सफेद रंग के लिए), कोयला कार्बन (काले रंग के लिए) और इमली (पीले रंग के लिए) जैसे प्राकृतिक रंगों से सजाया जाता था।
गंजिफा के पत्ते हर विभिन्न स्थानों में आकार और शैली में भिन्न होते थे। उदाहरण के लिए, रघुराजपुर (पुरी) के गंजिफा के पत्ते व्यास में तीन इंच के हैं जबकि सोनपुर जिले में वे इससे छोटे हैं।गंजिफा के पत्तों को विभिन्न संख्याओं (जैसे 46, 96, 120, 144 और इसी तरह) के सूट में व्यवस्थित किया जाता था। प्रत्येक ताश की गड्डी में 12 पत्तों के सूट और अलग रंगों में होते हैं।रंगों की संख्या के आधार पर ताश की गड्डी को अलग नामों से संबोधित किया जाता है, जैसे“अथहरंगी (8 रंग), दशरंगी (10 रंग), बारहरंगी (12 रंग), चौदहरंगी (14 रंग) और शोलहरंगी (16 रंग)”। एक ताश की गड्डी में दस पत्ते, एक राजा और एक बजीर होता है। राजा सबसे ज्यादा मूल्यवान होता है, फिर वजीर उसके बाद अवरोही क्रम (घटते हुए) की श्रृंखला। इन श्रृंखला को हम इक्का, दुक्की, तिक्का, चोका, पंचा, छक्का, सत्ता,अट्ठा, नहला और दहला कहते हैं।
इन ताश के पत्तों से जुड़ी एक रोचक बात है। अगर आप ध्यान से इन्हें देखेंगे तो आपको दिखेगा कि ताश के पत्तों के संख्यात्मक मूल्य हमारे कैलेंडर से कैसे मेल खाते हैं, और ये आम पत्ते आम नहीं हैं।
52 पत्ते = 52 सप्ताह
4 सूट(Suits) = 4 मौसम
13 पत्ते प्रत्येक सूटमें= 13 चंद्र चक्र (पूर्ण और नए चंद्रमा)
गंजिफा के ताश आम ताशों से काफी महंगे होते हैं, वे लगभग 1,000 और 1,200 प्रति सेट मिलते हैं। ज्यादातर पर्यटक इसे अपनी साज सजावट के उपयोग के लिए खरीदते हैं। गंजिफा भारत के राज्य ओडिशा का पारंपरिक खेल हैं। यह गोला कार आकार वाले पट्टाचित्र चित्रित कार्ड के साथ खेला जाता है। यह खेल लगभग 16 वीं के शताब्दी आस पास में शुरू हुआ
1.https://www.adda52.com/blog/origin-of-card-games-in-india
2.https://www.thehindu.com/thehindu/2001/07/01/stories/1301046e.htm
3.http://www.funtrivia.com/askft/Question20270.html
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Ganjapa
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.