समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
जौनपुर अपना एक विशिष्ट ऐतिहासिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, एवं राजनैतिक अस्तित्व रखता है, जिस पर कभी शर्की शासन करते थे। शर्कीकाल में जौनपुर में अनेकों भव्य भवनों, मस्जिदों तथा मकबरों का र्निमाण हुआ। साथ ही शिक्षा, संस्क़ृति, संगीत, कला और साहित्य के क्षेत्र में जो अनूठा स्वरूप शर्कीकाल में विद्यमान रहा, वह जौनपुर के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण है।
शर्की शासकों ने संगीत का भी संरक्षण किया। उनका दरबार संगीतकारों, सूफ़ी कवियों और कलाकारों से सदैव भरा रहता था। हुसैन शाह के समय में जौनपुर संगीत का केंद्र बन गया जिसका श्रेय खुद हुसैन शाह को जाता था। हुसैन शाह ने अनेक रागों का भी आविष्कार किया। शर्क़ी काल में जौनपुर में संगीत का अपना एक महत्व था। शर्क़ी काल के दौरान कला के तीन प्रमुख क्षेत्रों को देखा गया। सबसे पहला, समा और कव्वाली की संगीत कला, जिसे आध्यात्मिक उत्साह से गाया जाता था और जिसे सुहरावर्दी और चिश्ती रहस्यवादी (सिलसिले) द्वारा प्रोत्साहित किया गया था। दूसरा, भक्ति गीत और भक्ति भजन, ये संतों और कवियों द्वारा रचित होते थे और उनके अनुयायियों द्वारा गाए जाते थे। तीसरा शास्त्रीय परंपरा, जोकि शर्क़ी शासकों और अभिजात वर्ग की आविष्कारशील प्रतिभा से समृद्ध और विस्तारित हुई।
सन 2013 में समा संगीत के संदर्भ में एक फिल्म भी बनाई गयी थी जिसका ट्रेलर आप नीचे देख सकते हैं:
इस बात से तो इंकार नहीं किया जा सकता है कि मुसलमानों के आगमन के शुरुआती चरणों में समा संगीत को सुहरावर्दी और चिश्ती सूफी के खानकाहों में सराहा गया था। भारत में, विशेषकर चिश्ती और सुहरावर्दी सिलसिलों के सूफियों ने ईश्वर के आराधना के रूप में समा को अपनाया। इस प्रकार मुल्तान के इन खानकाहों का भारत के दिल्ली, गुजरात, बंगाल, जौनपुर, हैदराबाद एवं अन्य क्षेत्रों में प्रचार-प्रसार हुआ।
समा एक सूफ़ी समारोह है जिसे ज़िक्र या धिक्र के रूप में किया जाता है। समा का मतलब है ‘सुनना’, जबकि ज़िक्र या धिक्र का अर्थ है ‘याद करना’। इन अनुष्ठानों में अक्सर गायन, यंत्र बजाना, नृत्य करना (दरविश), कविता और प्रार्थनाओं का पाठ, प्रतीकात्मक पोशाक पहनना, और अन्य अनुष्ठान शामिल हैं। तुर्की के मौलवी सूफ़ी तरीक़े में समा की उत्पत्ति का श्रेय रुमी, सूफ़ी गुरू और मेवलेविस के निर्माता को दिया गया। यह सूफ़ीवाद में इबादत के लिए विशेष रूप से लोकप्रिय है।
देश में चिश्ती और सुहरावर्दी सिलसिलों के सूफियों के प्रवास के साथ, समा संगीत की परंपराएं और भी समृद्ध होती गईं, और जल्द ही किछौछा, मानिकपुर और जौनपुर में इसके समृद्ध केंद्र बन गये। शर्की शासकों द्वारा समा संगीत को खूब सराहा गया। आम लोगों के बीच इस कला को लोकप्रिय बनाने में अग्रणी भूमिका हुसैन शर्की ने निभाई। इस प्रकार ये संगीत जौनपुर की गलियों मे फैल गया। हुसैन शार्की ने समा संगीत को बढ़ावा देने में प्रमुख योगदान दिया। वास्तव में, वह दिल्ली के अमीर खुसरो के बाद सबसे ज़्यादा आविष्कारशील प्रतिभा वाले शासक थे।
संदर्भ:
1.https://en.wikipedia.org/wiki/Sama_(Sufism)
2.अंग्रेज़ी पुस्तक: Saeed, Mian Muhammad. The Sharqi Sultanate of Jaunpur. 1972. The Director of Publications, University of Karachi.
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.