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औपनिवेशिक युग में जाति व्यवस्था ने काफी गहराई तक जड़ें जमाई हुई थीं। उस वक़्त प्रत्येक जाति के सदस्यों को पैदा होते ही उपहार स्वरुप मिली परंपराओ और कार्य का पालन करना होता था, हालांकि विभिन्न जातियों को सामाजिक रूप से अलग किया गया, फिर भी उस समय कई जातियां एक दूसरे पर निर्भर रहती थी। इस तरह की परस्पर निर्भरता को “जजमानी प्रणाली” का नाम दिया गया था।
इस प्रणाली के तहत भूमिगत उच्च जातियों और भूमिहीन सेवा जातियों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का आदान-प्रदान होता था। सेवा जातियों में परंपरागत रूप से बुनकर, चमड़े के श्रमिक, लोहार, सुनार, नाई, धोबी, और समुदाय की सेवा करने वाले कारीगरों के समूह शामिल होते थे। भूमिगत उच्च जाति वाले जजमान संरक्षक होते थे, और सेवा जाति वाले ‘कामिन’ कहलाते थे। यह प्रणाली वंशानुगत थी, इसलिए इसमें जजमानी और कामिन अधिकार मृतक जजमान और कामिन के उत्तराधिकारी के बीच में समान रूप से वितरित किये जाते थे। यानी भूमिहीन सेवा जातियों से संबंधित परिवार पीढ़ी दर पीढ़ी भूमिगत उच्च जातियों के परिवारों को अपनी विशेष सेवाएं प्रदान करते रहेंगे। इसमें यदि किसी व्यक्ति की केवल बेटी होती थी, तो उसका दामाद इसे आगे बढ़ाता था। अगर कोई नि:संतान है तो उसके किसी निकटम रिशतेदार को इसे आगे बढ़ाना पड़ता था।
जजमानी प्रणाली की शब्दावली विलियम विसार द्वारा भारतीय सामाजिक मानव विज्ञान में पेश की गई थी। जिसमें उन्होंने अपने उत्तर प्रदेश के एक गांव के अध्ययन में, यह पाया कि विभिन्न जातियों द्वारा वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन का आदान-प्रदान होता था। वहीं रूपांतर के साथ, यह प्रणाली पूरे भारत में मौजूद थी।
जजमानी प्रणाली के कुछ फायदे भी थे:
1) व्यवसाय की सुरक्षा: जजमानी प्रणाली में व्यवसाय की सुरक्षा रहती थी। चूंकि यह प्रणाली वंशानुगत थी, इसलिए कामिन को अपने व्यवसाय का आश्वासन रहता था। इसमें बंधा हुआ हर व्यक्ति यह जानता था कि यदि वह अपने परिवार के व्यवसाय को तोड़ देता है तो वह अपनी आजीविका कमाने में अक्षम हो जाएगा।
2) आर्थिक सुरक्षा: यह कामिन को आर्थिक सुरक्षा प्रदान करती थी, क्योंकि जजमान उसकी सारी जरूरतों को पूरा करता था। हर आर्थिक संकट में जजमान कामिन की मदद करता था।
3) घनिष्ठ संबंध: इसमें जजमान और कामिन के बीच घनिष्ठ संबंध रहता है। यह रिश्ता पूरी तरह से आर्थिक ही नहीं लेकिन यह भावनात्मक भी होता है। जजमान और कामिन दोनों एक-दूसरे की सीमाओं का अच्छी तरह से पालन करते थे। अलग-अलग जाति का होने के बावजूद भी वे एक दूसरे के साथ तालमेल बनाने की कोशिश करते थे।
4) शांतिपूर्ण जीवन: इसमें कोई भी जजमान बिना सेवा के और कोई भी कामिन बिना भोजन के नहीं रहता था, जिस वजह से यह प्रणाली सहानुभूति और सहयोग की भावना पैदा करके शांतिपूर्ण जीवन का माहौल बनाती थी।
जिस चीज के इतने फायदे हों, उसके कुछ नुकसान भी होना ज़ाहिर सी बात है।
1) शोषण का स्रोत: यह प्रणाली शोषणकारी होती थी। इसमें भूमिहीन सेवा जातियों का शोषण पितृत्व संबंधों की वजह से किया जाता था। ऑस्कर लुईस ने रामपुर गांव में जजमानी प्रणाली के अपने अध्ययन में बताया कि पहले ये व्यक्तिगत संबंधों पर आधारित होता था, लेकिन अब यह जाजमानों द्वारा शोषण का साधन बन गया।
2) उच्चता और असमानता का अनुभव: इस प्रणाली में कामिन को कम माना जाता था, जबकि जजमानों को उच्च दर्जा दिया जाता था। चूंकि यह प्रणाली अनुवांशिकता पर आधारित थी, इसलिए कामिन अन्य नौकरी और व्यवसाय में या अपनी आर्थिक स्थिति में भी कोई बदलाव नहीं कर सकते थे। इसने लोगों की मानसिकता पर प्रभाव डाला और जजमानों द्वारा भी उनका शोषण और दुर्व्यवहार किया जाने लगा।
3) जाति व्यवस्था द्वारा समर्थित: जाति व्यवस्था जजमानी प्रणाली का आधार थी, जो जाति प्रथा की सभी बुराइयों से ग्रस्त थी।
परिवहन और संचार के तेजी से विस्तार के कारण, इस प्रणाली में काफी गिरावट आ गयी। कामिन गांव से बाहर जाकर अन्य व्यवसाय की तलाश करने में सक्षम हो गए और साथ में सामाजिक सुधार आंदोलनों के प्रभाव के कारण शोषित जातियों को काफी लाभ मिलने लगा। आर्य समाज जैसे विभिन्न धार्मिक सुधार आंदोलनों ने जजमानी प्रणाली को बंद करने में काफी योगदान दिया। आज अधिकांश गांव समुदाय जजमानी-कामिन प्रणाली के अधीन नहीं है।
संदर्भ:
1.http://www.yourarticlelibrary.com/caste/jajmani-system-in-indian-caste-system-definition-function-and-other-details/34945
2.http://www.sociologydiscussion.com/jajmani-system/features/9-main-features-of-jajmani-system-in-india/2674
3.http://www.sociologydiscussion.com/jajmani-system/jajmani-system-in-india-meaning-definition-advantages-and-disadvantages/2652
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Jajmani_system
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