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किसी भी प्रकार के शारीरिक विकार (विकलांगता, मूकबधिरता, नेत्रहीनता आदि) पर मनुष्य का कोई नियंत्रण नहीं होता। यह प्राकृतिक या अनैच्छिक हैं, किंतु समाज में अनेक उदाहरण ऐसे हैं जिन्होंने अपनी इस कमी को पीछे छोड़कर, स्वयं को कामयाबी के शिखर पर पहुंचाया है। चलिए जानें ऐसे ही कुछ कलाकारों के विषय में, जिन्होंने अपने सुरों से समाज में एक नया मुकाम हासिल किया।
वर्ष 2015 में ‘लैन्सेट ग्लोबल हेल्थ जर्नल’ (Lancet Global Health Journal) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में लगभग 36 मिलियन लोग नेत्रहीन हैं, जिनमें से 8.8 मिलियन लोग भारत में हैं। सन 1990 में भारत के ये आंकड़े 7.2 मिलियन थे। तथा एक अनुमान के अनुसार विश्व में ये आंकड़े 2050 तक 115 मिलियन हो जाएंगे। सन 2007 की बात करें तो भारत के सभी नेत्र सम्बंधित मरीज़ों में से 75% का इलाज संभव था। परन्तु जहाँ भारत को 40,000 ऑप्टोमेट्रिस्ट (Optometrist, आँखों के डॉक्टर) की ज़रूरत थी वहाँ हमारे पास केवल 8,000 डॉक्टर मौजूद थे। साथ ही भारत में वार्षिक रूप से 2.5 लाख नेत्रदान की आवश्यकता थी परन्तु सिर्फ 25,000 वार्षिक नेत्रदान हो पाए जिनमें से 30% नेत्रों का इस्तेमाल भी नहीं किया जा सकता। लेकिन अपने जीवन के इतने बड़े सच को बाधा ना मानते हुए कुछ लागों ने स्वयं को एक उदाहरण के रूप में उभारा है।
प्रारंभ करते हैं भारतीय इतिहास में प्रसिद्ध कृष्ण भक्त सूरदास जी से। ये एक नेत्रहीन संगीतकार और कवि थे। 'पुष्टिमार्ग का जहाज' कहे जाने वाले सूरदास जी ने संगीत के माध्यम से अपनी कृष्ण भक्ति को व्यक्त किया। सूरसागर, सूरसारावली और साहित्य लहरी इनकी प्रमुख रचनाओं में से कुछ हैं। इनके अतिरिक्त भारत में कई और ऐसे उदाहरण हैं।
20वीं सदी के एक प्रसिद्ध दृष्टिहीन भारतीय संगीतकार और गीतकार रविंदर जैन थे। आंखों की रोशनी ना होने के बावजूद उन्होंने गीत-संगीत से संसार को रोशन कर दिया। संगीतकार, गीतकार के रूप में रवींद्र जैन ने हिंदी फिल्मी जगत को सैकड़ों सदाबहार गाने दिए हैं। उन्होंने अपने सुरमयी संगीत और लाजवाब आवाज़ के दम से आज भी दुनियाभर के लोगों के दिल में अपनी जगह बना रखी है। उन्होंने फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ संगीत निर्देशक पुरस्कार भी जीता। उनकी पहली फिल्म, कांच और हीरा, 31 जुलाई 1972 को रिलीज़ हुई थी।
भारतीय उपमहाद्वीप में अनेक ऐसे भी दृष्टिहीन गायक हैं, जो दुनिया के मध्य तो प्रसिद्ध नहीं हुए हैं, लेकिन उनके सुर काफी मधुर हैं। जिनमें से एक है हरिद्वार में गंगा के तट पर पर स्थित हरी, जिसकी आवाज़ उसके लिए एक प्राकृतिक उपहार स्वरूप है। यह प्लास्टिक की बाल्टी को वाद्य के रूप में इस्तेमाल करके गाना गाता है। नीचे दिए गए वीडियो में आप हरी को गाते देख सकते हैं:
ऐतिहासिक रूप से, कुछ अंधे संगीतकारों, जिनमें से कुछ सबसे मशहूर भी हुए, ने औपचारिक निर्देशों के बिना ही प्रदर्शन किया है, चूंकि इस तरह के निर्देश लिखित रूप से नोटेशन (Notation) पर निर्भर होते हैं। हालांकि, आज नेत्रहीन संगीतकारों के लिए कई संसाधन उपलब्ध हैं, जो पश्चिमी संगीत सिद्धांत और शास्त्रीय नोटेशन को समझने में मदद करते हैं। लुई ब्रेल, जिन्होंने नेत्रहीन संगीतकारों के लिए ब्रेल वर्णमाला बनाई, तथा उन्होंने ऐसे संगीतकारों के लिए ब्रेल संगीत नामक शास्त्रीय नोटेशन की एक प्रणाली भी बनाई। यह प्रणाली नेत्रहीन संगीतकारों को नोटेशन पढ़ने और लिखने में सहायता देती है।
संदर्भ:
1.https://timesofindia.indiatimes.com/india/India-has-largest-blind-population/articleshow/2447603.cms
2.https://indianexpress.com/article/india/8-8-million-blind-in-india-in-2015-says-study-in-lancet-4781368/
3.http://www.freepressjournal.in/mind-matters/surdas-saint-singer-and-poet/613138
4.https://en.wikipedia.org/wiki/Ravindra_Jain
5.https://en.wikipedia.org/wiki/Blind_musicians
6.https://scroll.in/article/710288/discover-the-fabulous-street-singers-of-the-indian-subcontinent
7.http://www.radioandmusic.com/entertainment/editorial/news/170802-being-called-blind-spite-being-visually
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