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शर्की सुल्तानों के समय जौनपुर शिक्षा के महत्वपूर्ण केन्द्रों में से एक था। इस्लामी शिक्षा की बहुत सी महत्त्वपूर्ण क़िताबें एवं भारत का सबसे पुराना मानचित्र यहीं से प्रकाशित हुआ था। मगर इस बात पर ध्यान देना काफी जरुरी है कि यह सब गुटेनबर्ग के सन 1440-1450 के बीच पहला मुद्रण-यंत्र बनाने से पहले का है, जौनपुर में हस्तलेख प्रकाशित किये जाते थे क़िताबें नहीं। चित्र में गुटेनबर्ग को अपने मुद्रण यंत्र का प्रयोग करते देखा जा सकता है।
भारत के अगर सबसे पहले शुरू किये हुए मुद्रणालयों को भारत के नक़्शे पर अंकित किया जाए तब ये चित्र उभरकर आता है कि यह सभी मुद्रणालय भारत के समुद्री तट के इर्द-गिर्द ही बसे हुए हैं। ट्रांकेबार, चेन्नई, कलकत्ता, गोवा, कोचीन आदि तटीय जगहों का भारत के मुद्रणालय इतिहास में खासा महत्वपूर्ण स्थान है। मुद्रणालय में तेजी से आते विकास में मुंबई का भी अभी अलग महत्वपूर्ण स्थान है। मलयालम अथवा तमिल यह दोनों भाषाएँ भारत में सबसे पहले चलत मुद्रणालय में इस्तेमाल की जाने वाली भाषाओँ के ख़िताब की दावेदार हैं।
मान्यता है कि इसाई धर्मुगुरु भारत में पहली बार मुद्रण-कला ले आये क्यूंकि उन्हें धर्म प्रसार एवं प्रचार के लिए बाइबिल (Bible) छापना जरुरी था। स्पेन के रहिवासी संत फ्रांसिस ज़ेवियर ट्रांकेबार में बाइबिल सिखा रहे थे, साथ ही गोवा के सूबेदार ने अपने राजा, पोर्तुगाल के जॉन तृतीय के कहने पर गोवा में भारतियों के लिए विद्यालय खोले थे, वहाँ पर किताबें बाँटना अनिवार्य था। इस कारण फ्रांसिस ज़ेवियर ने पोर्तुगाल पर दबाव डालके उन्हें भारत, इथियोपिया और जापान में मुद्रण-यंत्रो को भेजने की मांग की। इसी दौरान इथियोपिया के राजा ने पोर्तुगाल के राजा से विनती की, कि वे धर्म-प्रचारकों के साथ मुद्रण-यंत्र भी भेजे। इस तरह इसाई-धर्मगुरुओं का पहला जत्था इथियोपिया के लिए 29 मार्च 1556 को निकल पड़ा। मार्गक्रमण करते हुए वे 6 सितम्बर 1556 को गोवा में आ पहुंचे जहाँ उन्हें पता चला कि इथियोपियन राजा का धर्म-प्रचारकों की तरफ रवैय्या सही नहीं है। इस तरह भाग्यवश मुद्रण-यंत्र को गोवा के संत पॉल विद्यालय में स्थापित कर दिया गया। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा नवीकरण किये हुए इस विद्यालय की विशाल मेहराब इस इतिहास का साक्ष्य देते आज भी खड़ी है।
वासको द गामा के भारत में पैर रखने के कुछ 59 साल बाद ही भारत में मुद्रण-कला आई और एक तरीके से ये भारत के लिए सांस्कृतिक पुन: जागृति की तरह था। हस्तलिखित, धर्म और विज्ञान आदि विषयों की किताबें अब जन-सामान्यों को भी मिलने लगीं। गुटेनबर्ग ने दुनिया में मुद्रण-यन्त्र का शोध लगाने के बाद तक़रीबन सौ सालों के बाद इस तकनीक ने भारत में इसाई-धर्मंप्रचारकों के जरिये भारत में कदम रखा और आगे चल भारत की विभिन्न भाषाओं को इस तकनीक में ढालने के लिए यहाँ पर अग्रणी काम हुआ। गोवा से शुरू हुई यह मुद्रण-क्रान्ति चेन्नई में जाकर परवान चढ़ी लेकिन भारत में इस क्रान्ति की चरम-सीमा तब हुई जब विलियम कैर्री ने भारत में 11 नवम्बर 1793 में पैर रखा। कैर्री ने विलियम वार्ड एवं जोशुआ मार्शमान की मदद से सेरामपुर धर्म-प्रचार मुद्रणालय की स्थापना की। उन्होंने पंचानन कर्माकर और मनोहर, दो हिन्दुस्तानियों की मदद से भारत की कुल 40 भाषाओं के चलत-प्रकार बनाए जिस वजह से अब इन भाषओं में मुद्रण करने का काम काफी सरल बन गया। कैर्री ने ही भारत में पहला काग़ज़ बनाने वाला कारखाना शुरू किया एवं धलाई-घर शुरू किया। नाथन ब्राउन, ओलिवर कटर और माइल्स ब्रोनसन इन धर्मगुरुओं ने सन 1838 में सदिया, असम में मुद्रणालय शुरू किया जिस वजह से उत्तर-पूर्व की बहुत सी भाषाओँ में साहित्यिक क्रांति आ गयी। सन 1820 में विलियम फायवी ने गुजरात में गुजराती भाषा में मुद्रण करने वाला मुद्रणालय शुरू किया। सन 1820 में स्थापित वैस्लैयन मिशन (Wesleyan Mission) मुद्रणालय और सन 1840 में स्थापित बेसल मिशन (Basel Mission) मुद्रणालय ने कन्नड़ भाषा में मुद्रण को बढ़ावा दिया। कोट्टायाम में सन 1821 में बेंजामिन बैली द्वारा स्थापित सी.एम.एस. मुद्रणालय और हेरमान गुनडर्ट द्वारा सन 1838 में थालासेरी में स्थापित बेसल मुद्रणालय ने मलयालम भाषा में मुद्रण को बढ़ावा दिया। नोबिली, विनस्लो, बेस्ची आदि धर्म-प्रचारकों ने तमिल भाषा और साहित्य को बढ़ावा दिया तथा सी.पी.ब्राउन ने तेलुगु भाषा को। मुंबई में अमेरिकन मिशन (Mission ) मुद्रणालय की स्थापना सन 1812 में हुई थी। इस तरह इन सभी की वजह से इस काल में तक़रीबन 86 शब्दकोश, 115 व्याकरण किताबें और 45 पत्रिकाएं भारत की 73 भाषाओँ में प्रकाशित हुईं।
भारत में मुद्रणालय के इतिहास के कुछ प्रमुख दिन इस प्रकार है:
1. सन 1579: कोचीन में मुद्रण की शुरुवात
2. सन 1712: ट्रांकेबार मुद्रणालय की शुरुवात
3. सन 1751: ट्रांकेबार मुद्रणालय और प्रकाशन-घर, चेन्नई
4. सन 1761: वेपेरी एसपीसीके मुद्रणालय की शुरुवात
5. सन 1795: सेरामपुर धर्म-प्रचार
6. सन 1809: पंजाबी मुद्रणालय,लुधिआना की शुरुवात
7. सन 1817: अमेरिकन मिशन (Mission) मुद्रणालय, मुंबई
8. सन 1820: स्वदेशी विद्यालय एवं विद्यालय पुस्तक समिति, मुंबई
9. सन 1820: बिहार शिलामुद्रणालय, पटना
10. सन 1822: मुंबई के कूरियर मुद्रणालय में ‘पंचोपाख्यान’ का मराठी में मुद्रण
11. सन 1825-26: गुजराती, हिन्दुस्तानी एवं फारसी में मुद्रण
12. सन 1829: पादरी बेंजामिन बैली का सबसे पहला मुद्रणालय कोट्टायम में शुरू
13. सन 1830: कप्तान जॉर्ज जेर्विस का शिलामुद्रणालय पूना में शुरू
14. सन 1830: ग्रीनवे परिवार का हिंदी भाषा कार्य के लिए शिलामुद्रणालय कानपुर में शुरू हुआ
15. सन 1830: शिलामुद्रणालय, मद्रास सूबे में शुरुवात
16. सन 1831: फोर्ट संत जॉर्ज मुद्रणालय एवं महाविद्यालय, चेन्नई में शुरू
17. सन 1799-1833: तंजावर में सर्र्फोजी महाराज मुद्रणालय की शुरुवात
18. सन 1838: गुरुमुखी व्याकरण पंजाबी मुद्रणालय में मुद्रित
19. सन 1841: बहुमहाजन शिलामुद्रणालय ने मराठी साप्ताहिक ‘प्रभाकर’ छापने की शुरुवात की
20. सन 1843: पंडित मोरभट दांडेकर का सम्पादित मासिक ‘उपदेश चन्द्रिका’ का महाजन मुद्रणालय में मुद्रण
21. सन 1844-48: दिल्ली उर्दू अखबार की छपाई दिल्ली में शुरू
22. सन 1849: बनारस में स्थित बनारस अखबार मुद्रणालय में नगरी लिपि में बनारस अखबार का मुद्रण
23. सन 1850: साप्ताहिक ‘धूमकेतु’ का महाजन मुद्रणालय से मुद्रण
24. सन 1851: अंग्रेजी-पंजाबी शब्दकोश का पंजाबी मुद्रणालय में मुद्रण
25. सन 1861: टाइम्स ऑफ़ इंडिया (Times of India) मुद्रणालय, मुंबई में शुरू
26. सन 1866: कट्टक मुद्रणालय संगठन में पहले ओड़िआ साप्ताहिक का मुद्रण
27. सन 1872: कर्नाटक राज्य मुद्रणालयों की शुरुवात
28.सन 1877: दिनदर्शिका कला के व्यवसायिक केंद्र के लिए शिवकाशी नियुक्त
29.सन 1890: लोनावला के नजदीक मलोदी इस जगह पर राजा रवि वर्मा ने बड़ा शिलामुद्रणालय प्रस्थापित किया
30.सन 1907: उर्दू भाषा के लिए चेन्नई में उस्मानी मुद्रणालय की शुरुवात
31. सन 1919: उर्दू छपाई के लिए चेन्नई में शाही प्रेस प्रस्थापित
32. सन 1924: चेन्नई में पहले छपाई प्रमाणपत्र अभ्यासक्रम की शुरुवात
33. सन 1925: वनियाम्बडी में लुथेरन (Lutheran) मुद्रणालय की शुरुवात
34. सन 1929: उर्दू भाषा में छपाई के लिए मजीदिया मुद्रणालय
35. सन 1938: चेन्नई में पहले सनदी प्रमाणपत्र अभ्यासक्रम की शुरुवात
36. सन 1983: चेन्नई में पहले पदवी प्रमाणपत्र अभ्यासक्रम की शुरुवात
भारत में मुद्रणालय की स्थापना इसाई-धर्म प्रचारकों ने धर्म प्रसार के लिए की थी लेकिन इस कला ने आगे जाकर हमारी सामाजिक, राजनितिक और शास्त्रीय समाज को अच्छे तरीके से प्रभावित किया, ज्ञान और सशक्तिकरण के रास्ते पर लाया। पहले जब पुस्तक और ज्ञान सिर्फ समाज के विशिष्ट लोगों के अधिकार में था, वह इस तकनीक की वजह से जन-सामान्यों तक पहुँच गया, देश के कोने कोने में अखबारों के जरिये जानकारी पहुँचने लगी। भारत की सभी भाषाओं में सबसे पहली अखबार पत्रिका बंगाली की दिग्दर्शन थी, उसके बाद आया समाचार दर्पण। इन अख़बारों के जरिये अब लोग अपनी सोच दूसरों के सामने रख सकते थे तथा अपने अधिकारों के लिए लड़ भी सकते थे। आज भारत में तक़रीबन 55,000 से भी ज्यादा पंजीकृत समाचार पत्र और आवधिक पत्र हैं तथा कुछ 16,000 से भी ज्यादा प्रकाशक हैं जो सालाना 70,000 से भी ज्यादा क़िताबें प्रकाशित करवाते हैं, जिसमें से 40% क़िताबें अंग्रेजी में होती हैं जिस वजह से इंग्लैंड और अमेरिका के बाद भारत अंग्रेजी किताबों के प्रकाशन उद्योग में तीसरे स्थान पर है। भारत में प्रकाशन उद्योग का वार्षिक कारोबार 700 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। जगप्रसिद्ध फ्रैंकफर्ट विश्व पुस्तक मेले में भारत को "सन्माननिय अतिथि" होने का अनूठा सम्मान मिला था। यह सम्मान भारत को 20 सालों में दो बार मिला है, सन 1886 और सन 2006, जो आज तक और किसी को नहीं मिला।
1.http://printingindia.com/history/indianhistory.htm
2.http://www.thehindu.com/todays-paper/tp-features/tp-sundaymagazine/from-palm-leaves-to-the-printed-word/article2275089.ece
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