दक्षिण भारत में 7वी शताब्दी से पहले बने मंदिर

वास्तुकला 1 वाह्य भवन
27-04-2018 01:09 PM
दक्षिण भारत में 7वी शताब्दी से पहले बने मंदिर

भारतीय प्राचीन ग्रंथो के अनुसार मंदिर बनाना यह बड़े पुण्य कर्मों में से एक है। भारत के इतिहास में हमें राजा, महाराजा, व्यापारी-वैश्य समाज आदि द्वारा बनाए गए कई मंदिरों के साक्ष्य मिलते हैं तथा वे अपनी श्रद्धा के अनुसार मंदिर बनाने के लिए एवं देख-रेख के लिए वित्त और सुरक्षा भी प्रदान करते थे। भारत के मध्य-दक्षिणी भाग में हमें जैसे विभिन्न तरीके के मंदिरों के प्रकार मिलते हैं वो बहुतायता से देश के और किसी हिस्से में नहीं देखने मिलते और यदि मिलते भी हैं तो कुछ विविधताओं के साथ। जैसे जौनपुर में भी कई प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण हुआ है। लेकिन क्या जौनपुर में भी दक्षिण भारत जैसे कोई मंदिर मौजूद हैं। यह जानने के लिए पहले हमे दक्षिण भारत के मंदिरों को समझना होगा। यह मंदिर निर्माण राजाश्रय के साथ धार्मिक और सामाजिक स्थापत्य के साथ-साथ उस जगह पर उपलब्ध निर्माण सामग्री जैसे पत्थर, लकड़ी आदि पर भी निर्भर करता था। दक्षिण में वैसे तो विभिन्न प्रकार का स्थापत्य उपलब्ध है मगर आज हम बात करेंगे यहाँ पर बने 7वीं शताब्दी के पहले बने मंदिर स्थापत्य की जो बहुतायता से नयनार और पल्लवों के समय बने थे। कोइल इस तमिल शब्द का अर्थ है मंदिर। कोइल इस शब्द को जब हम को+इल ऐसे बांटते हैं तब उसका अर्थ होता है राजाओं का राजा मतलब परमोच्च स्वामी, परमेश्वर का स्थान।

1. पेरून-कोइल या मड-कोइल: इसका शाब्दिक अर्थ है बड़ा मंदिर और ऐसे मंदिर प्रकृति अथवा इंसान के बनाए बड़े टीले अथवा छोटी पहाड़ी पर बनाते थे। जो मंदिर बड़ी मचान अथवा उन्नत पीठ पर बनाए जाते थे जिसका हाथी भी सामना ना कर सके उसे मडक्कोइल कहते हैं। पुराने तमिल संदर्भग्रन्थ तंजावुर के बृहदेश्वर मंदिर को मडक्कोइल प्रकार का बताते हैं। मध्यप्रदेश का भोजराज मंदिर भी इसी प्रकार का है।

2. करक-कोइल: मंदिर की शोभायात्रा निकालते वक़्त इस्तेमाल किये जाने वाले रथ की तरह बने मंदिरों को करक-कोइल कहते हैं। पुराने तमिल संदर्भ-ग्रंथो में शोभायात्रा के रथों को करक कहते हैं इसीलिए इन्हें यह नाम दिया गया है। ओरिसा का सूर्य मंदिर, हम्पी का विट्ठल मंदिर यह इस प्रकार के मंदिर हैं।

3. कोक्कुडी-कोइल: प्राचीन तमिल नाडू में चमेली के पौधे को जो बस कैसे भी बढ़ता है उसे कोक्कुड़ी कहते थे, शायद जहाँ पर यह पौधे बड़ी संख्या में पाए जाते थे उन मंदिरों को कोक्कुडीकोइल कहते थे, आज भी यह फूल भगवान की पूजा के लिए बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होते हैं। नयनार के एक पुस्तक-प्रबंध ‘थेवरम’ में तमिलनाडू के तलैजनायिरू इस जगह का शिवमंदिर इस प्रकार का था। एक पुराने शिलालेख के अनुसार तिरुमुरुगन पूंडी, तमिलनाडु के यहाँ के शिवमंदिर को कोक्कुडीकोइल यह उपमा दी गयी है क्यूंकि वह इन पौधों के बीच बनाया गया था।

4. इलंग-कोइल: चारों तरफ से खुले मंडप को जिसमें भगवान की मूर्ति प्रस्थापित कर उसकी पूजा की जाती है, ऐसे मंदिर को इलंगकोइल कहते हैं। चौथी शती के तमिल महाकाव्य शिलप्पादिकारम के अनुसार तिरुमला-तिरुपति के वेंकटेश्वर भगवान की मूर्ति इलंगकोइल में स्थापित की थी और चरवाहे इनकी पूजा करते थे।

5. मणिक-कोइल: मंदिर जिसका विमान (गर्भगृह के ऊपर का शिखर) घंटी के आकार का रहता है उसे मणिक-कोइल कहते हैं (तमिल में मणि मतलब घंटी)। नयानारों के भजनों में चिदंबरम के नटराज मंदिर को सुन्दर मणिक कोइल बुलाया है। महाबलीपुरम का द्रौपदी रथ मंदिर इसका अच्छा उदहारण है।

6. अलक-कोइल: ऐसी जगह जहाँ पर कोई मंदिर अथवा ऐसी कोई सरंचना ना हो और बरगद के पेड़ के नीचे भगवान की मूर्ति प्रस्थापित हो उसे अलक-कोइल कहते हैं। भारत में वृक्षों का खास कर बरगद और अश्वत्थ का अनन्यसाधारण महत्व है। यहाँ पर बहुत से ऐसे खुले मंदिर मिलते हैं जहाँ पर इन पेड़ों के नीचे मूर्तियों की स्थापना कर उनकी पूजा होती है। ऐसे वृक्षों को स्थल वृक्ष कहा जाता है, अगर मूर्ति को नए मंदिर में पुनर्स्थापित किया जाए तब भी ऐसे स्थल वृक्षों की महत्ता कम नहीं होती। स्थलपुराण में लिखा गया है कि तमिलनाडू के तिरुकच्चूर मंदिर की नरसिम्हा की मूर्ति पहले ऐसे ही अलक-कोइल में स्थापित थी।

7. ग्नज्हर कोइल: ग्नज्हर मतलब बड़े पेड़ जैसे कोंड़ई, कोंगु और थेक्कु जो निर्माण काम में इस्तेमाल किये जाते हैं। एक प्राचीन अभिलेख के अनुसार कडलूर, तमिलनाडु का शिव मंदिर तिरुक्कादै ग्नज्हर पेरुमन के नाम से जाना जाता था। कुछ अभ्यासकों के मुताबिक इन पेड़ के नीचे स्थापित मंदिरों को ग्नज्हर कोइल कहा जात है तो कुछ के हिसाब से इन पेड़ों का इस्तेमाल कर बनाए मंदिर को। दक्षिण के कई मंदिरों के निर्माण में इन पेड़ों की लकड़ियों का प्रमुखता से इस्तेमाल होता है।

1. आलयम: द हिन्दू टेम्पल एन एपिटोम ऑफ़ हिन्दू कल्चर- जी वेंकटरमण रेड्डी

पिछला / Previous अगला / Next

Definitions of the Post Viewership Metrics

A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.

B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.

C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.

D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.