समयसीमा 237
मानव व उनकी इन्द्रियाँ 948
मानव व उसके आविष्कार 726
भूगोल 236
जीव - जन्तु 275
चॉकलेट का सबसे पहले मध्य और दक्षिण अमेरिका में एज़्टेक लोगों ने इस्तेमाल किया। सफ़ेद दाढ़ीवाले भगवान क़ुएत्ज़लकोटल (Quetzalcoatl) की यह उन्हें भेंट थी जिसकी वजह से वे इसे क्सोकोटल (Xocoatl) कहते थे। सिर्फ राजा-महाराजा एवं प्रतिष्ठित लोग ही इसे पी सकते थे। इसे लाल मिर्च, शिमला मिर्च और ऐसे ही अन्य मसालों को मिलाकर पिया जाता था। इसमें एक और घटक मिलाया जाता था, एक सफ़ेद द्रव जो त्लिल्क्सोकायटिल (Tlilxochitl) नामक पौधे के फूल की फली से मिलता था, त्लिल्क्सोकायटिल का मतलब है काला फूल। कोर्टेस नामक स्पेन के निवासी ने पहली बार सन 1518 के करीब एज़्टेक के राजा मोंटेजुमा को इस पेय का आस्वाद लेते हुए देखा। कोर्टेस और उसके साथियों को त्लिल्क्सोकायटिल की फली को देखकर वैनिल्ला (Vanilla) की याद आती थी जिसका मतलब है छोटा आवरण जो लैटिन शब्द वजाइना (Vagina) से आता है। एज़्टेक राज्य को लूटने और तबाह करने के बाद कोर्टेस और उसके साथी सोने चाँदी के साथ चॉकलेट (कोको- Cocoa) और वैनिल्ला की फलियाँ भी अपने साथ यूरोप ले गए। इनका नाम लेकिन वही रहा- क्सोकोटल आज चॉकलेट (Chocolate) के नाम से जाना जाता है और वैनिल्ला ‘वनिला’ के नाम से।
मोंटेजुमा और उसके सरदार लगभग 2000 कप चॉकलेट पेय विशेष अनुष्ठानों के वक़्त ही पीते थे। कोर्टेस ने जब सन 1520 के करीब स्पेन में इसे प्रस्तुत किया तो यूरोपीय सरदारों को और उच्च वर्णीय लोगों को यह विशेष तौर से पसंद आया। रोम के सम्राट ‘चार्ल्स पांचवा’ ने जब इसमें चीनी मिलायी तब चोकलेट पूरे यूरोपीय खंड में प्रसिद्ध हो गया और आज भी जग भर में चॉकलेट सबके प्रिय पेयों में से एक है। कोको का पौधा सिर्फ गरम, उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में ही बढ़ सकता है फिर भी यूरोपीय लोगों ने मेसोअमेरिका (Mesoamerica) से इसे अपनी एशिया और अफ्रीका की बस्तियों में सफलतापूर्वक प्रतिरोपित किया। आज पुरानी फ्रांस की बस्तियां जैसे आइवरी कोस्ट, कैमरोन और घाना; नाइजीरिया की ब्रितानी बस्ती और इंडोनेशिया की डच बस्ती आज मेक्सिको जैसे मेसोअमेरिकन देश से, जहाँ से यह उत्पन्न हुआ, भी ज्यादा मात्र में कोको की पैदावार करता है।
वनिला का पौधा मात्र दक्षिण अमेरिका के वर्षावन के बाहरी क्षेत्र में जड़ नहीं पकड़ रहा था। यह स्थिति तक़रीबन 300 सालों तक चली, जबकि दुर्लभ आयातित वनिला और चॉकलेट का इस्तेमाल कामोद्दीपक के तौर पे बड़े पैमाने पर हो रहा था। सन 1836 में बेल्जियन वनस्पति शास्त्री चार्ल्स मोर्रेन ने इसके प्रजनन का शोध लगाया जिसके बाद फ्रेंच लोगों ने हाथों से परागण छिड़कने का तरीका ढूंड निकाला और दक्षिण अमेरिका के बाहर इसके पहले बागानों की शुरुआत की। आज मादागास्कार, रीयूनियन, कोमोरोस आदि हिन्द महासागर के टापू, मूल स्थान से बहार के, इस प्रतिष्ठित वनिला की फलियों के उत्पादक हैं लेकिन संपूर्ण जग का 90% वनिला प्रयोगशाला में बना हुआ है।
जैसे बेल्जियन और फ़्रांसिसी लोग चॉकलेट और वनिला को अपने बस्तियों में ले गए उसी तरह डच लोग इसे इंडोनेशिया और अंग्रेज इसे भारत में लाये। शक्तिशाली ईस्ट इंडिया कंपनी ने हमारे रूढ़ि, रिवाज़, परंपरा, स्वाद और सोचने के तरीकों को इस तरह बदला कि उसका प्रभाव हम आज भी हमारी रोज़मर्रा की जिंदगी में देख सकते हैं। हमारी चार चेतनाओं को (सुनना,देखना, सूंघना और स्पर्श करना) हम अकेले में भी महसूस कर सकते हैं लेकिन चखना/स्वाद लेना यह बहुतायता से सामाजिक है। इंसान को शायद ही कभी अकेले खाना पसंद हो और हर इंसान की लार इंसान के उँगलियों की छाप की तरह अलग होती है फिर भी वह आस-पास के लोगों के खाने पीने के तरीके से प्रभावित होता है। चाय, कॉफ़ी, बियर, वाइन आदि पेय, चोकलेट, वनिला, मसाले आदि खाद्य पदार्थ और तम्बाकू तथा अफीम जैसे मादक पदार्थ इसका उदाहरण हैं। इतेरेतर भोजन सूचि यह भूमंडलीकरण और बहुराष्ट्रीय संगठन के वाणिज्य का नतीजा है जो औपनिवेशीकरण की देन है।
1. रिमार्केबल प्लांट्स दाट शेप आवर वर्ल्ड- हेलेन एंड विलियम बायनम, 206-211
2. रिमार्केबल प्लांट्स दाट शेप आवर वर्ल्ड- हेलेन एंड विलियम बायनम, 146-149
3. रिमार्केबल प्लांट्स दाट शेप आवर वर्ल्ड- हेलेन एंड विलियम बायनम, 94-95.
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.