ग्रहण से जुड़ी प्राचीन परम्पराएं और विज्ञान

विचार I - धर्म (मिथक / अनुष्ठान)
14-04-2018 11:17 AM
ग्रहण से जुड़ी प्राचीन परम्पराएं और विज्ञान

ग्रहण तब होता है जब सूर्य चंद्रमा से छिप जाता है या चंद्रमा पृथ्वी की छाया में आता है। जब सूर्य की किरणों के कारण धरती की छाया चाँद पर पड़ती है और चाँद छिप जाता है तब उसे चन्द्र ग्रहण कहा जाता है और जब सूर्य और धरती के बीच चाँद के होने के कारण सूर्य छिप जाता है तब उसे सूर्य ग्रहण कहा जाता है। हर वर्ष करीब पांच से छः ग्रहण देखने को मिलते हैं। ग्रहण का विवरण ग्रंथों और मंदिर शिलालेखों में भी पाया गया है।

वेदों में ग्रहण की व्याख्या
वेद को आज मानव जाति का सबसे पुराना साहित्य माना जाता है। 4 वेदों में से एक ऋग्वेद है जिसमें सूर्य ग्रहण का कारण बताया गया है असुर स्वरभानु को। ऋषि अत्री, सूर्य ग्रहण के पहले प्रेक्षक और उसे समझने वाले व्यक्ति थे जो इस घटना को वैदिक छंदों के मध्यम से दुनिया को समझाते हैं। इसके अनुसार ऋषि अत्री सूर्य ग्रहण की व्याख्या करने वाले सबसे पहले खगोल विज्ञानी कहलाये जा सकते हैं।

रामायण में ग्रहण की व्याख्या
रामायण में उल्लेखित खगोलीय घटनाओं में उल्लेखनीय रूप से सूर्य ग्रहण का वर्णन है जो राम और दो राक्षसों खर और दूषण, के बीच लड़ाई के दिन पड़ता है।
जब खर युद्ध के लिए अपनी सेना के साथ राम की ओर बढ़ने लगा तो एक लाल रंग की संध्या हर ओर छाने लगी – रामायण: 3.23.1
सूर्य एक गहरे रंग के चक्र से छिप गया था जिसके किनारे लाल रंग के थे – रामायण: 3.23.3
हालाँकि दिन का समय था परन्तु आकाश शाम ढलने के वक्त जैसा हो गया था – रामायण: 3.23.5
सूर्य को राहू ने पकड़ लिया था जिसके कारण सूर्य अपनी चमक और प्रकाश खो बैठा था। विभिन्न जानवर और पक्षियों ने शोर करना शुरू कर दिया था जैसा शाम के वक़्त करते हैं – रामायण 3.23.12

आखिर क्यों हमारे पूर्वजों की रूचि ग्रहण को समझने में थी और क्यों उन्होंने इनकी भविष्यवाणी करना सीखा?
ग्रहण से जुड़े ऐसे कई कार्य हैं जो वर्षों से हमारी सभ्यता का एक अटूट हिस्सा बने हुए हैं। इनमें से कुछ हैं –
ग्रहण से करीब 4-6 घंटे पहले भोजन कर लेना और ग्रहण से पहले बने भोजन को बाद में न उपयोग करना -
वैज्ञानिकों के अनुसार सूर्य ग्रहण के दौरान पृथ्वी पर पहुंचने वाली अल्ट्रा वायलेट और अन्य ब्रह्मांडीय किरणों की मात्रा अधिक होती है। इस तरह के किरणों के बढ़ते जोखिम से भोजन भी दूषित होता है। ग्रहण से पहले पका भोजन इसलिए बाद में उपयोग नहीं करना चाहिए।
खाद्य वस्तुओं और अन्य ख़राब होने वाले भोजन की रक्षा के लिए दूब घास का उपयोग -
भोजन को ग्रहण की हानिकारक किरणों से बचाने के लिए हम दूब घास का प्रयोग करते हैं। इससे पता चलता है कि हमारे पूर्वज इसे किरणों के विरुद्ध एक ढाल की तरह प्रयोग करते थे। दूब घास पर हुए अनुसन्धान से यह पता चला है कि यह एक्स-रे को सोखने की क्षमता रखती है।
ग्रहण से गर्भवती महिलाओं की सुरक्षा -
ग्रहण के दौरान उत्पन्न होने वाली किरणें गर्भवती महिलाओं के गर्भ के लिए भी हानिकारक होती हैं।
ग्रहण के समय दान करना- ‘दे दान छूटे ग्रहण’ -
ऐसा माना जाता है कि ग्रहण के समय दान करने से दान देने वाला ऐसी बुरी ताकतों से बच जाएगा जो सूर्य और चंद्रमा से भी शक्तिशाली हैं। परन्तु साहित्यों से यह ज्ञात होता है कि हमारे पूर्वज इन ब्रम्हांड सम्बन्धी घटनाओं की वैज्ञानिक प्रकृति को अच्छी तरह समझते थे। गणित में उनकी प्रवीणता और विभिन्न ग्रहों की गति की समझ के कारण वे ग्रहण का पूर्वानुमान लगा सकते थे। असल में ग्रहण के समय दान इसलिए किया जाता था क्योंकि ग्रहण का दिन आसानी से याद रखा जा सकता था और दान करने का नियम बनाया जा सकता था।

आज भी ग्रहण होते हैं परन्तु उन्हें अनदेखा कर दिया जाता है। मंदिरों में मौजूद शिलालेख बीते हुए ग्रहणों की कहानियां बताते हैं परन्तु इनके बारे में या तो लोग जानते नहीं हैं या जानने की रूचि ही नहीं रखते हैं। हमारी सभ्यता से जुड़ी कई परम्पराएं हम आज भी निभा रहे हैं परन्तु उन परम्पराओं से जुड़े वैज्ञानिक अर्थ हम भूलते जा रहे हैं।

1. https://bharathgyanblog.wordpress.com/2018/01/31/eclipse-an-ancient-indian-perspective/

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