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महराजगंज के समीप स्थित खंडहर में तब्दील मंदिर और महल इस स्थान की एक अलग ही कहानी बयाँ करते हैं। जौनपुर में शर्की, तुगलक, सिंगरामऊ राज्य, जौनपुर रियासत आदि ने राज किया परन्तु उनके अलावा कौन था जिसने यहाँ पर यह महल बनवाया? 18वीं शताब्दी में पूरे भारत में कई बदलाव हो रहे थे, उसी दौरान जौनपुर में भर जाति भी शक्ति में आयी। अब यह प्रश्न उठता है कि भर हैं कौन? भर को भरार, राजभर, भरत और भरपतवा के नाम से भी जाना जाता है। पूरे उत्तर प्रदेश में इनकी वर्तमान आबादी 17 लाख के करीब है। उत्तर प्रदेश में ये आज़मगढ, गोरखपुर, जौनपुर, गाज़ीपुर, गोंडा, बनारस, बलिया, फैजाबाद, बस्ती आदि में बसे हुए हैं। भरों का शासन प्रतापगढ़ के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर था। वहाँ आज भी इनके द्वारा बनवाया गया मंदिर आदि दिखाई दे जाता है। लोहिंदा के पास प्रतापगढ़ में एक नागर शैली का मंदिर स्थित है जो इनके काल की कला को प्रदर्शित करता है।
महराजगंज प्रातापगढ़ के नज़दीक पड़ता है, जहाँ पर भरों का शासन स्थापित था। जैसा कि भर शिव भक्त हुआ करते थे तो यह एक कारण था कि इन्होने शिव मंदिरों की स्थापना बड़े पैमाने पर करवाई। महराजगंज, जौनपुर में भी हम प्रमुख चार मंदिर पाते हैं जो कि एक दूसरे से अत्यन्त नज़दीक स्थित हैं। इन मंदिरों में तीन मंदिर इंट और चूने के बनाये गये हैं तथा एक मंदिर चुनार के बलुये पत्थर का बनाया गया है। इन मंदिरों के समीप ही एक तालाब का निर्माण करवाया गया है जिसमें सीढियाँ भी बनवायी गयी हैं। मंदिरों के पास ही एक महल का भी निर्माण करवाया गया है जो कि अब जीर्ण अवस्था में उपस्थित है। चित्र में दर्शाया गया मंदिर पत्थर का बनाया गया है जिसका निर्माण काल 18वीं शताब्दी है। यह मंदिर शिव को समर्पित है तथा यहाँ उपस्थित सभी मंदिरों में यही एक मंदिर है जो कि सबसे ज्यादा अलंकृत है। इस मंदिर के अराध्य देव शिव हैं तथा आंतरिक गर्भगृह में नव ग्रहों का भी अलंक्रण इस मंदिर में किया गया है। इस मंदिर का शिखर नागर शैली में है जिसके चारों ओर देवताओं की मूर्तियाँ बनायी गयी हैं। शिखर के शुरुआती छोर पर शेरों की भी मूर्तियाँ लगायी गयी हैं। वर्तमान काल में ये मंदिर व महल अपनी महत्ता खोते जा रहे हैं।
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