विभिन्न स्थानीय शैलियों के संगम से समृद्ध होती है, भारतीय चित्रकला

द्रिश्य 3 कला व सौन्दर्य
11-12-2024 09:22 AM
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 विभिन्न स्थानीय शैलियों के संगम से समृद्ध होती है, भारतीय चित्रकला
जौनपुर शहर, लंबे समय से भारतीय चित्रकला का केंद्र रहा है। शर्की सल्तनत के शासनकाल के दौरान, जौनपुर एक ऐसा स्थान बन गया जहाँ पर इस्लामी कला, स्थानीय प्रभावों के साथ मिश्रित हुई। इस मिश्रण से चित्रकला की एक अनूठी शैली का उदय हुआ। इस शैली को अपने नाज़ुक विवरण, चमकीले रंगों और प्रतीकात्मक डिज़ाइनों के लिए जाना जाता है। जौनपुर की कलाकृतियाँ शहर की विविध सांस्कृतिक विरासत और विभिन्न कलात्मक परंपराओं के मिलन बिंदु के रूप में इसकी अहम् भूमिका को दर्शाती हैं।
आज के इस कलात्मक लेख में, हम भारतीय चित्रकला की विभिन्न शैलियों के बारे में जानेंगे। इसकी शुरुआत, हम देश भर में विभिन्न कलात्मक परंपराओं के साथ करेंगे। इसके बाद, हम सल्तनत चित्रकला और जौनपुर चित्रकला स्कूल पर ध्यान केंद्रित करेंगे। अंत में, हम भारतीय चित्रकला में उपयोग किए जाने वाले विभिन्न माध्यमों और भारतीय चित्रकला को अद्वितीय बनाने वाले तत्वों के बारे में जानेंगे।
भारतीय चित्रकला का इतिहास 7,000 साल पुराना माना जाता है। ये चित्रकला देश की सांस्कृतिक विविधता को दर्शाती है। देश के हर क्षेत्र की कला अपनी अनूठी शैली और विषयों के साथ अलग पहचान बनाती है। कई भारतीय चित्रकला शैलियाँ रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों पर आधारित हैं। इन चित्रों में पौराणिक कहानियाँ और आध्यात्मिकता झलकती है। साथ ही, ये धर्म, कर्म, रिश्ते और राजनीति जैसे मूल्यों को भी सिखाती हैं।
देश के हर राज्य की अपनी विशेष चित्रकला शैली है। राजस्थान की जीवंत और रंगीन पेंटिंग्स, मैसूर के जटिल डिज़ाइन और अन्य राज्यों की विशिष्ट कलाएँ, भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का प्रतीक हैं। चमकीले रंग और विस्तृत डिज़ाइन भारतीय चित्रकला को अनोखा बनाते हैं। भारतीय चित्रकला में सांस्कृतिक परंपराओं, पौराणिक कहानियों और धार्मिक मान्यताओं का अद्भुत मेल देखने को मिलता है। ये चित्र इतिहास और प्रतीकों से भरपूर हैं। इनका प्रभाव, न केवल भारतीय समाज बल्कि दुनिया भर के कलाकारों पर भी नज़र आता है। भारत में चित्रकला की कई अनोखी शैलियाँ प्रचलित हैं। इनमें से हर शैली की अपनी विशेष तकनीक और पहचान है।
भारत में प्रचलित चित्रकला की कुछ प्रमुख शैलियों में शामिल हैं:
मधुबनी: मधुबनी चित्रकला को अपनी जटिल ज्यामितीय पैटर्न और चमकीले रंगों के प्रयोग के लिए जाना जाता है। इस कला में हल्दी, पत्तियाँ और चारकोल जैसे प्राकृतिक रंगों का उपयोग होता है। यह कला अक्सर अनुष्ठानों और त्योहारों से जुड़ी होती है। परंपरागत रूप से इस चित्रकला को मिथिला क्षेत्र की महिलाएँ बनाती थीं। लेकिन आज, मधुबनी कला दुनियाभर में लोकप्रिय हो गई है और कई उत्पादों पर देखी जाती है।
वारली: वारली कला, महाराष्ट्र की आदिवासी चित्रकला शैली है। इसमें चावल के पेस्ट और बांस की छड़ियों का प्रयोग करके चित्र बनाए जाते हैं। इस कला को सरल लेकिन गहरी कहानियाँ बताने के लिए जाना जाता है। इस शैली के चित्रों में जानवर, लोग और ज्यामितीय आकृतियाँ होती हैं। पारंपरिक रूप से इसे मिट्टी की दीवारों पर बनाया जाता है।
कालीघाट: कालीघाट, पश्चिम बंगाल की प्रसिद्ध चित्रकला शैली है। यह शैली बोल्ड और रंगीन चित्रों के लिए प्रसिद्ध है। इसमें पौराणिक कथाएँ और सामाजिक विषय शामिल होते हैं। पहले यह कला मंदिर आने वाले लोगों के लिए स्मृति चिन्ह के रूप में बनाई जाती थी। बाद में इसमें सामाजिक और राजनीतिक संदेश जोड़े गए। यह शैली चमकीले रंगों और अतिरंजित आकृतियों के लिए पहचानी जाती है।
फड़: फड़ चित्रकला, राजस्थान की धार्मिक स्क्रॉल पेंटिंग (Scroll Paintings) है। यह कपड़े पर बनाई जाती है। इसे बनाने में वनस्पति रंगों का उपयोग होता है। ये पेंटिंग देवताओं (खासकर लोक देवता देवनारायण) की कहानियाँ बताती हैं। बड़े फड़ स्क्रॉल मंदिरों के अनुष्ठानों में उपयोग किए जाते हैं ।
लघुचित्र: लघुचित्र, बेहद छोटे लेकिन अत्यंत विस्तृत चित्र होते हैं। इन्हें बनाने के लिए प्राकृतिक रंगों और कीमती धातुओं का उपयोग किया जाता है। यह शैली मुगल काल में प्रचलित हुई और राजपूत, पहाड़ी और मुगल लघुचित्रों में विकसित हुई। कलाकार दरबारी जीवन, युद्ध और धार्मिक विषयों को चित्रित करते हैं।
गोंड: गोंड, मध्य भारत की आदिवासी चित्रकला शैली है। इसमें रेखाओं, बिंदुओं और डैश का उपयोग होता है। इस शैली के चित्रों में अक्सर जानवर, पक्षी और पेड़ दर्शाए जाते हैं। यह कला, प्रकृति और आदिवासी जीवन के संबंध को दर्शाती है। चमकीले रंग और जटिल डिज़ाइन गोंड चित्रकला को जीवन और गति प्रदान करते हैं।
चित्रकला की इन सभी शैलियों में भारतीय संस्कृति और परंपरा का गहरा प्रभाव दिखता है। प्रत्येक शैली अपनी अनूठी पहचान और सुंदरता के लिए प्रसिद्ध है।
आइए, अब सल्तनत चित्रकला स्कूल के बारे में जानते हैं।
सल्तनत चित्रकला विद्यालय (Sultanate school of painting) का विकास, 12वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ था। उस समय उत्तर, पूर्व और पश्चिम भारत के अलग-अलग हिस्सों पर मध्य एशिया के सल्तनत राजवंशों का शासन था। इस कला में स्वर्णिम और अल्ट्रामरीन नीले जैसे नए रंग जोड़े गए। यह चित्रकला फ़ारस, तुर्किक क्षेत्रों और अफ़गानिस्तान की परंपराओं से प्रेरित थी।
इस शैली को मालवा, गुजरात और जौनपुर के सुल्तानों ने प्रोत्साहित किया। सल्तनत काल के दरबारों में मध्य एशियाई कलाकार, स्थानीय कलाकारों के साथ मिलकर काम करते थे। इस सहयोग से एक नई शैली बनी, जिसमें फ़ारसी और भारतीय दोनों विशेषताएँ थीं। सल्तनत चित्रकला में फ़ारसी प्रभाव प्रमुख था। इसमें रंगों का चयन, चेहरे की विशेषताएँ, सरल परिदृश्य और सजावटी डिज़ाइन शामिल थे।
जौनपुर चित्रकला स्कूल: जौनपुर चित्रकला का एक प्रसिद्ध उदाहरण, निमतनामा पांडुलिपि है। इसे नासिर शाह (1500-1510) के शासनकाल के दौरान मांडू में तैयार किया गया। इस पांडुलिपि में स्थानीय और फ़ारसी शैलियों का सुंदर मिश्रण देखने को मिलता है। हालांकि, मांडू की पांडुलिपियों में फ़ारसी शैली का प्रभाव अधिक नज़र आता है। सल्तनत काल में उत्तर भारत में एक और चित्रकला शैली उभरी, जिसे लोदी खुलदार कहा जाता है। यह कला शैली दिल्ली से लेकर जौनपुर तक फैले सल्तनत क्षेत्र में विकसित हुई।
भारत में चित्रकारी अलग-अलग रूपों और माध्यमों में की जाती है। दीवारों पर बने भित्ति चित्रों से लेकर कैनवास पर बने आधुनिक चित्र तक, इसकी शैली और स्वरूप काफ़ी विविध हैं। महलों और मंदिरों की दीवारों पर पारंपरिक भारतीय चित्रकारी देखी जा सकती है। ये चित्र, भारत की समृद्ध कलात्मक विरासत को दर्शाते हैं।
समय के साथ, भारतीय कलाकारों ने कैनवास, कागज़ और कपड़े जैसी अन्य सतहों पर भी चित्र बनाना शुरू किया। भारत के हर क्षेत्र की चित्रकला की अपनी खासियत है। इसमें विशेष तकनीक, चमकीले रंग और अनोखे विषय शामिल हैं। उदारहण के तौर पर राजस्थान अपनी जटिल लघु चित्रकलाओं के लिए मशहूर है। बिहार की मधुबनी कला बोल्ड और आकर्षक प्रतीत होती है। महाराष्ट्र की देहाती वारली कला को अपनी सादगी के लिए जाना जाता है। वहीं, तमिलनाडु की तंजौर पेंटिंग अपने भव्य स्वरूप के लिए प्रसिद्ध है। ये सभी शैलियाँ मिलकर, भारतीय संस्कृति का रंगीन प्रदर्शन करती हैं।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2246bkyw
https://tinyurl.com/26alrdcj
https://tinyurl.com/2b4g9k97
https://tinyurl.com/256fj3bh
https://tinyurl.com/256fj3bh

चित्र संदर्भ
1. जौनपुर के शाही पुल की पेंटिग को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
2. जौनपुर के दृश्य को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. मधुबनी चित्रकला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. लघुचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. गोमती नदी के तट पर जौनपुर के किले को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
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