आइए, जानते हैं एक ऐसी मुहिम के बारे में, जो भारत की आज़ादी का एक महत्वपूर्ण कारण बनी

उपनिवेश व विश्वयुद्ध 1780 ईस्वी से 1947 ईस्वी तक
28-11-2024 09:23 AM
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आइए, जानते हैं एक ऐसी मुहिम के बारे में, जो भारत की आज़ादी का एक महत्वपूर्ण कारण बनी
ब्रिटिश राज के दौरान, अंग्रेज़ भारत की अनमोल संपत्ति को जोंक की तरह चूसते रहे और इसे पश्चिमी देशों में भेजते रहे। लेकिन भारत का एक बड़ा तबका, अंग्रेज़ों की नियत को समझ चुका था और उसने अंग्रेज़ों के खिलाफ़ विद्रोह का बिगुल फूंक दिया। इस संघर्ष की अगुवाई कर रहे थे, महात्मा गांधी। 1942 में गांधीजी के नेतृत्व में शुरू हुए "अंग्रेज़ों भारत छोड़ो आंदोलन" को आज़ादी की लड़ाई में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर माना जाता है। यह अंग्रेज़ों से भारत छोड़ने का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण आह्वान था।
जौनपुर के कई स्वतंत्रता सेनानियों ने भी इस आंदोलन में अहम भूमिका निभाई। यहाँ के स्थानीय लोगों ने ब्रिटिश शासन से तत्काल भारत छोड़ने की मांग करते हुए इस विरोध प्रदर्शन में भाग लिया। इस दौरान कई प्रदर्शन हुए और कई प्रतिभागियों को गिरफ्तार भी किया गया। हालांकि, अंग्रेज़ों ने इस आंदोलन को दबाने की कोशिश की, लेकिन उनकी इस कोशिश ने भारतीयों को ही एकजुट करने का काम किया और स्वतंत्रता के लिए राष्ट्रीय प्रयास को और मज़बूती दी। आज के इस लेख में, हम 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement) के बारे में विस्तार से जानेंगे। हम देखेंगे कि देश के विभिन्न हिस्सों ने, इस संघर्ष में कैसे भाग लिया। अंत में, हम इस आंदोलन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों को भी साझा करेंगे।
भारत छोड़ो आंदोलन को अगस्त आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है। इसका आरंभ, 8 अगस्त 1942 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान हुआ था। इस आंदोलन की नींव महात्मा गांधी ने अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के बॉम्बे सत्र में रखी थी। इसका मुख्य उद्देश्य भारत से ब्रिटिश सत्ता को जड़ से उखाड़ फेंकना था।
मार्च 1942 में, ब्रिटिश सरकार ने क्रिप्स मिशन शुरू किया, जिसका लक्ष्य भारत का सहयोग प्राप्त करना था, लेकिन यह प्रयास असफल रहा। इसके बाद, गांधी जी ने 8 अगस्त 1942 को बॉम्बे के गोवालिया टैंक मैदान में अपने प्रसिद्ध "करो या मरो" के नारे के साथ आंदोलन की शुरुआत की।
आंदोलन की शुरुआत के तुरंत बाद, अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिए। गांधी जी ने ब्रिटिश सरकार से "एक व्यवस्थित वापसी" की मांग की। हालांकि उस समय, ब्रिटेन विश्व युद्ध में उलझा हुआ था। लेकिन इसके बावजूद, ब्रिटिश शासन ने इस आंदोलन के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की। गांधी जी के भाषण के कुछ घंटों के भीतर ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अधिकांश नेताओं को बिना किसी मुकदमे के गिरफ़्तार कर लिया गया। इस दौरान, कई नेता जेल में रहे और जनता से संपर्क नहीं कर पाए।
अंग्रेज़ो को वायसराय की परिषद का समर्थन प्राप्त था, जिसमें कई भारतीय, अखिल भारतीय मुस्लिम लीग, हिंदू महासभा, रियासतें, भारतीय शाही पुलिस, ब्रिटिश भारतीय सेना और भारतीय सिविल सेवा शामिल थे। इस दौरान कई भारतीय व्यवसायी, युद्ध के दौरान लाभ कमा रहे थे। उन्होंने भी इस आंदोलन का समर्थन नहीं किया। कुछ छात्र सुभाष चंद्र बोस के प्रति अधिक आकर्षित थे, जो निर्वासन में थे और धुरी शक्तियों का समर्थन करते थे।
अंग्रेज़ों ने भारत को तत्काल स्वतंत्रता देने से इनकार कर दिया। उनका कहना था कि भारत को आज़ादी केवल युद्ध समाप्त होने के बाद ही मिल सकती है। फिर भी, भारत छोड़ो आंदोलन ने स्वतंत्रता की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए। इस आंदोलन के शुरू होने के पांच साल बाद, 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता मिल गई थी।
भारत छोड़ो आंदोलन के दो मुख्य चरण थे। पहला चरण अगस्त से सितंबर 1942 तक एक जन आंदोलन के रूप में चला, जबकि दूसरा चरण अर्ध-गुरिल्ला विद्रोह के रूप में उभरा। इस दौरान, लोगों ने ब्रिटिश सत्ता का प्रतीक माने जाने वाली हर चीज़ को जलाना और नष्ट करना शुरू कर दिया, जिसमें डाकघर, पुलिस स्टेशन, सरकारी इमारतें, रेलवे और टेलीग्राफ़ लाइनें शामिल थीं। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में इस विद्रोह का स्तर विशेष रूप से देखने लायक था।
आइए देखते हैं कि भारत के अलग-अलग क्षेत्रों ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' में कितनी बड़ी भूमिका निभाई:
बिहार:
बिहार में छात्रों, किसानों और श्रमिकों ने भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया। यहां अधिकांश गतिविधियाँ भूमिगत हो रही थीं, जिससे कानून और व्यवस्था में बाधा उत्पन्न हुई। इस आंदोलन में कुछ गंभीर संगठन और डकैत गिरोह भी सक्रिय थे। इन गिरोहों के संबंध जयप्रकाश नारायण और कांग्रेस समाजवादी पार्टी के अन्य सदस्यों से थे। जेपी नारायण और राममनोहर लोहिया ने 1944 तक नेपाल सीमा के पास एक समानांतर सरकार भी स्थापित की। इसके अलावा, आज़ाद दस्ता नामक समाजवादी समूह ने भी बिहार में भूमिगत गतिविधियाँ कीं।
उत्तर प्रदेश (यूपी): उत्तर प्रदेश में हथियारबंद ग्रामीणों ने पुलिस चौकियों और स्थानीय अदालतों पर हमले किए। इसके साथ ही, वे लूटपाट भी कर रहे थे। कानपुर, लखनऊ और नागपुर में हड़तालें हुईं। इन हड़तालों के कारण दिल्ली में हड़ताली मिल मज़दूरों के साथ हिंसक झड़पें भी हुईं।
बंगाल: बंगाल में, भारत छोड़ो आंदोलन, मुख्य रूप से कस्बों और शहरों में देखा गया। इस दौरान, लोगों ने विरोध प्रदर्शन किए, तोड़फोड़ की और आवश्यक सेवाओं को नुकसान पहुंचाया। कई क्षेत्रों में, मज़दूरों, आदिवासियों और किसानों ने भी इस आंदोलन को ताकत दी।
पश्चिमी भारत: पूर्वी खानदेश, सतारा, भड़ौच और सूरत जैसे जिलों में, कई किसानों ने सरकारी संपत्ति और संचार लाइनों पर गुरिल्ला शैली के हमलों में भाग लिया। उन्होंने ब्रिटिश शासन का समर्थन करने वाले लोगों को भी निशाना बनाया। गुजरात के अहमदाबाद में " आज़ाद सरकार" नामक एक समानांतर सरकार स्थापित की गई, जो मौजूदा प्रशासनिक ढांचे को दर्शाती थी। बॉम्बे में, कई भूमिगत प्रकाशनों ने लोगों को प्रेरित किया। इनमें बॉम्बे प्रांतीय बुलेटिन (Bombay Provincial Bulletin), डू ऑर डाई न्यूज़ -शीट (Do or Die News-sheet), फ़्री इंडिया (Free India), वॉर ऑफ़ इंडिया बुलेटिन (War of India Bulletin), फ़्री स्टेट ऑफ इंडिया गज़ेट और कांग्रेस गज़ेट (Free State of India Gazette and Congress Gazette) शामिल थे।
दक्षिण भारत: दक्षिण भारत में, के.टी. बंगलौर के कांग्रेस नेता भाष्यम ट्रेड यूनियनों में सक्रिय थे। उन्होंने हड़तालों को हवा दी और आंदोलन को आगे बढ़ाया।
आइए अब चलते-चलते आपको भारत छोड़ो आंदोलन से जुड़े कुछ रोचक तथ्यों से रूबरू कराते हैं:
- भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान, महात्मा गांधी ने अपने भाषण में प्रसिद्ध नारा "करो या मरो" दिया था।
- "भारत छोड़ो" वाक्यांश यूसुफ़ मेहर अली द्वारा गढ़ा गया था। वे एक स्वतंत्रता सेनानी थे और मुंबई के मेयर भी रहे थे।
- इस आंदोलन के दौरान, लोगों ने उत्तर प्रदेश के बलिया, महाराष्ट्र के सतारा, पश्चिम बंगाल के तामलुक और ओडिशा के तालचेर जैसी जगहों पर समानांतर सरकारें स्थापित कीं। - प्रदर्शनकारियों ने कई इलाकों में सरकारी इमारतों को नष्ट किया और रेलवे पटरियों को नुकसान पहुंचाया।
- विरोध प्रदर्शन के बाद कई लोगों को गिरफ़्तार कर लिया गया। यहाँ तक कि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सरदार वल्लभभाई पटेल जैसे कांग्रेस पार्टी के शीर्ष नेता भी गिरफ़्तार किए गए। 1942 के अंत तक, 60,000 से अधिक लोगों को कैद किया गया और सैकड़ों लोगों की जान भी चली गई थी।

संदर्भ
https://tinyurl.com/2bh4ozw2
https://tinyurl.com/25msrx6k
https://tinyurl.com/23v597ab

चित्र संदर्भ
1. पटना में शहीद स्मारक को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. पूर्व मेदिनीपुर (East Medinipur), पश्चिम बंगाल में मेडिकल स्कूल के सामने धरने को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. दिल्ली में गांधीजी और जमनालाल बजाज को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
4. ब्रिटिश निर्मित कपड़ों का बहिष्कार करने के लिए रैली को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
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