आइए जानें, आज भारत में कितनी महिलाओं के पास मोबाइल फ़ोन है

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29-10-2024 09:21 AM
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आइए जानें, आज भारत में कितनी महिलाओं के पास मोबाइल फ़ोन है
भारत में महिलाओं के अधिकारों को बुनियादी मानवाधिकारों में गिना जाता है। इन अधिकारों के बिना एक स्वतंत्र और निष्पक्ष समाज के अस्तित्व की कल्पना भी नहीं की जा सकती। संयुक्त राष्ट्र (United Nations) भी यह मानता है कि लैंगिक समानता के आभाव में सतत विकास, आर्थिक विकास और विश्व शांति कायम करना बहुत मुश्किल है। आज के इस महत्वपूर्ण लेख में, हम भारत में महिलाओं के कुछ महत्वपूर्ण अधिकारों के बारे में बात करेंगे। इसके बाद, हम देखेंगे कि हमारे देश में कितनी महिलाओं के पास मोबाइल फ़ोन है। साथ ही, हम उन कारकों को भी जानेंगे जो महिलाओं को मोबाइल फ़ोन रखने से रोक रहे हैं। अंत में, हम भारत में महिला अधिकारों के प्रति जागरूकता फ़ैलाने वाले कुछ महत्वपूर्ण संगठनों से भी रूबरू होंगे।
भारत में महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और सम्मान सुनिश्चित करने के लिए कई महत्वपूर्ण प्रावधान हैं। आइए, इनमें से उन पांच प्रमुख अधिकारों के बारे में जानते हैं, जिनकी जानकारी हर भारतीय महिला को होनी ही चाहिए:
1. समानता का अधिकार: समानता के अधिकार को भारतीय संविधान का स्तंभ माना जाता है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी महिला के साथ उसके लिंग, जाति, धर्म या नस्ल के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाएगा। इस अधिकार के तहत महिलाएं, सम्मान के साथ जीने और सभी क्षेत्रों में समान अवसर पाने की हकदार हैं। यह अधिकार, उन्हें बिना किसी बाधा के आगे बढ़ने की शक्ति देता है।
2. गरिमा और शालीनता का अधिकार: हर महिला के साथ सम्मान से पेश आना इस अधिकार का मुख्य उद्देश्य है। यह अधिकार उत्पीड़न, दुर्व्यवहार या हिंसा जैसी घटनाओं से महिलाओं की रक्षा करता है। इस अधिकार का लक्ष्य, एक ऐसे समाज का निर्माण करना है, जहां महिलाएं बिना किसी भेदभाव और अपमान के डर के सम्मान के साथ जी सकें और काम कर सकें।
3. शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और राजनीतिक भागीदारी का अधिकार: यह अधिकार महिलाओं के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और राजनीतिक भागीदारी के महत्व को उजागर करता है। हर महिला को शिक्षा प्राप्त करने के समान अधिकार है, जिससे वह ज्ञान और कौशल प्राप्त कर सके। इसके साथ ही, गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य देखभाल और राजनीतिक प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदारी भी इस अधिकार का हिस्सा है।
4. घरेलू हिंसा के खिलाफ़ अधिकार: यह अधिकार, उन महिलाओं को महत्वपूर्ण कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है, जो अपने घरों में दुर्व्यवहार एवं उत्पीड़न का सामना कर रही हैं। यह उन्हें अपने ही परिवार के सदस्यों द्वारा शारीरिक, भावनात्मक या आर्थिक शोषण की स्थिति में कानूनी मदद लेने का अधिकार देता है। किसी भी महिला को घरेलू हिंसा सहन नहीं करनी चाहिए। यह अधिकार, उन्हें ऐसी स्थितियों से बाहर निकालने के लिए आवश्यक सहायता प्रदान करता है।
5. कार्यस्थल पर अधिकार: कार्यस्थल पर महिलाओं के अधिकार, उन्हें काम के दौरान कड़ी सुरक्षा प्रदान करते हैं। ये अधिकार, किसी भी कार्यालय में एक सुरक्षित और उत्पीड़न-मुक्त कार्य वातावरण को बनाए रखते हैं। सभी महिलाओं को समान वेतन का अधिकार है। इसके तहत, महिलाओं को समान काम के लिए पुरुषों के समान ही वेतन मिलना चाहिए। इसके अलावा, उन्हें अपने करियर में विकास और उन्नति के भी समान अवसर मिलने चाहिए।
हालांकि इन सभी अधिकारों की पर्याप्त जानकारी नहीं होने कारण, महिलाओं को मोबाइल जैसी सुविधाओं का इस्तेमाल करने में भी झिझक होती है। आपको जानकर हैरानी होगी कि भारत में 32 प्रतिशत से भी कम महिलाओं के पास मोबाइल फ़ोन हैं। यह जानकारी, 2022 में ऑक्सफ़ैम (Oxfam) द्वारा जारी एक रिपोर्ट से प्राप्त हुई है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि महिलाओं के मुकाबले, 60 प्रतिशत से अधिक पुरुषों के पास मोबाइल फ़ोन हैं। यह रिपोर्ट, 2021 के अंत तक के आंकड़ों पर आधारित है और 'भारत असमानता रिपोर्ट 2022: डिजिटल डिवाइड (India Inequality Report 2022: Digital Divide)' के नाम से प्रकाशित हुई है। यह रिपोर्ट, हमारे समाज में फैली लैंगिक असमानता को उजागर करती है। इस पता चलता है कि हमारे समाज में पुरुषों और महिलाओं के बीच, डिजिटल विभाजन कितना बड़ा है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि महिलाओं के पास, आमतौर पर सस्ते हैंडसेट होते हैं। ये हैंडसेट, पुरुषों द्वारा उपयोग किए जाने वाले हैंडसेट की तुलना में कम आधुनिक होते हैं। महिलाएं, डिजिटल सेवाओं के उपयोग को केवल फ़ोन कॉल और टेक्स्ट संदेशों तक सीमित रखती हैं। दुनिया के सभी इंटरनेट उपयोगकर्ताओं में से केवल एक तिहाई महिलाएं हैं। इस तरह, भारत दुनिया में लिंग आधारित डिजिटल विभाजन का एक बड़ा हिस्सा है।
भारत में इतने बड़े पैमाने पर महिलाओं के पास फ़ोन न होने के कुछ प्रमुख कारण नीचे दिए गए हैं:
सांस्कृतिक मानदंड और प्रतिबंध: कई समुदायों में यह मान्यता चली आ रही है कि मोबाइल फ़ोन रखने से लड़कियों पर बुरा असर पड़ सकता है। इसी कारण, कई परिवार, लड़कियों को फ़ोन रखने से रोकते हैं। इस तरह, लड़कियों की शिक्षा और डिजिटल संसाधनों तक पहुंच बाधित होती है।
लैंगिक असमानता: भारत के कई हिस्सों में लैंगिक असमानता, एक बड़ी समस्या है। इस असमानता के कारण लड़कियों की शिक्षा और तकनीक तक पहुंच भी प्रभावित होती है। हमारे समाज में अक्सर लड़कों की शिक्षा को प्राथमिकता दी जाती है, जिस कारण, लड़कियों के लिए, फ़ोन जैसे उपकरणों में निवेश नहीं हो पाता है।
सामाजिक-आर्थिक बाधाएं: गरीबी में जीवन यापन कर रहे कई भारतीय परिवार, आर्थिक समस्याओं का सामना कर रहे हैं। वे अपनी बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में भी संघर्ष करते हैं। इसलिए स्मार्टफ़ोन खरीदना उनके लिए संभव नहीं होता। सीमित वित्तीय संसाधनों के कारण, कई परिवार, अक्सर गैर- ज़रूरी चीज़ों को छोड़कर रोटी-कपड़ा और मकान जैसी आवश्यक चीज़ों पर ध्यान देते हैं। इस स्थिति में, लड़कियों को अक्सर अनदेखा किया जाता है।
उच्च लागत: मोबाइल फोन, लैपटॉप, और इंटरनेट की उच्च लागत भी इस संदर्भ में एक बड़ी बाधा है। एक अध्ययन के अनुसार, 2021 के अंत तक, 61% पुरुषों और केवल 31% महिलाओं के पास मोबाइल फ़ोन था।
लड़कियों में अशिक्षा: डिजिटल साक्षरता की कमी भी एक बड़ी समस्या है। अशिक्षित लड़कियों के लिए, तकनीक का उपयोग करना और समझना मुश्किल होता है।
एजेंसी की कमी: कई जगहों पर लड़कियां अपने जीवन के फ़ैसले खुद नहीं ले पातीं। उन्हें डिजिटल मीडिया का उपयोग करने की स्वतंत्रता नहीं मिलती। समाज और परिवार के नियम उनके लिए बाधा बनते हैं!
हालांकि महिलाओं के बीच में, डिजिटल अपराधों और घेरलू दबाव के प्रति जागरूकता फ़ैलाने के आज कई बड़े संगठन निरंतर कार्यरत हैं। महिलाओं के अधिकारों की बात करने वाले ऐसे ही कुछ प्रमुख संगठनों में शामिल हैं:
गुड़िया इंडिया (Guria India): गुड़िया इंडिया का मुख्य लक्ष्य, महिलाओं को बचाव और कानूनी मदद देना है। यह संगठन, यौन उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को एफ़ आई आर (FIR) दर्ज करने और सबूत इकट्ठा करने में मदद करता है। गुरिया इंडिया से जुड़े वकील, पीड़ितों को अदालत में पेशी के लिए तैयार करते हैं। यह संगठन, महिलाओं को कानूनी न्याय दिलाने के साथ-साथ, परामर्श और वित्तीय सहायता भी प्रदान करता है।
मजलिस मंच (Majlis Manch): मजलिस मंच का 'राहत' कार्यक्रम, यौन शोषण की शिकार महिलाओं को कानूनी सहायता प्रदान करता है। यहां वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ताओं की पूरी टीम, महिलाओं की होती है। इस संगठन के लोग, पीड़ितों से मिलते हैं और उन्हें अदालती प्रक्रियाओं के बारे में समझाते हैं। इसके अलावा, वे उन्हें, कानूनी और सरकारी योजनाओं की जानकारी भी देते हैं। मामले के अनुसार आगे की कानूनी सहायता भी दी जाती है।
सयोध्या होम (Sayodhya Home): सयोध्या, संकट में फंसी महिलाओं और युवा लड़कियों के लिए आश्रय प्रदान करता है। यह संगठन, 24 घंटे की टेलीफ़ोन हेल्पलाइन के माध्यम से आपातकालीन सहायता भी देता है। गंभीर मामलों में, यह महिलाओं को सुरक्षा कक्षों में ले जाकर कानूनी मदद भी दिलाता है ।
शिक्षण अणे समाज कल्याण केंद्र (Shikshan Ane Samaj Kalyan Kendra): यह केंद्र, स्वास्थ्य, शिक्षा और महिला सशक्तिकरण के लिए काम करता है। यह घरेलू हिंसा के कारणों और प्रभावों पर आधारित कार्यशालाएँ आयोजित करता है। इसके अलावा, यह हिंसा के मुद्दों को ज़िला स्तर के अधिकारियों और निचली अदालतों तक पहुंचाता है।
अपराध रोकथाम एवं पीड़ित देखभाल के लिए अंतर्राष्ट्रीय फ़ाउंडेशन (International Foundation for Crime Prevention and Victim Care): एसिड हमले, महिलाओं के खिलाफ़ सबसे गंभीर अपराधों में से एक हैं। इस अपराध के पीड़ितों को कानूनी सहायता देने के लिए, गरीबों को कानूनी सहायता समिति बनाई गई है। यह समिति, हमले से पीड़ितों की मदद करती है, कानूनी कार्रवाई की निगरानी करती है, और सरकार से मुआवज़े का दावा करने में सहायता करती है।

संदर्भ
https://tinyurl.com/29s6mhke
https://tinyurl.com/29h8urn2
https://tinyurl.com/26kzkdcr
https://tinyurl.com/23tor5k8

चित्र संदर्भ
1. मोबाइल फ़ोन पर बात करती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. मज़दूरी करती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. घरेलु हिंसा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. तीन भारतीय महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
5. मुस्कुराती हुई भारतीय महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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