Post Viewership from Post Date to 21- Oct-2024 (31st) Day | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2113 | 86 | 2199 |
हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए कई आंदोलन किए गए, जिनमें कई महान स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने संपूर्ण जीवन, संघर्ष किया और अपने प्राणों की आहुति तक दे दी थी। ऐसा ही एक आंदोलन 'सविनय अवज्ञा आंदोलन' (Civil Disobedience Movement) था, जो 1930 में शुरू हुआ और इसका नेतृत्व महात्मा गांधी ने किया था। यह आंदोलन ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन और उनके दमनकारी शासन के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर असंतोष व्यक्त करने के लिए शुरू किया गया था। इसकी शुरुआत दांडी मार्च से हुई थी, जहां लोगों द्वारा अनुचित नमक कानून को तोड़ने के लिए नमक बनाया गया था। सविनय अवज्ञा आंदोलन, 'असहयोग आंदोलन' (Non Cooperation Movement) के बाद दूसरा ऐसा प्रमुख जन आंदोलन था, जिसने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष की सामाजिक पहुंच को व्यापक बना दिया था। हमारा जौनपुर ज़िला भी असंख्य स्वतंत्रता सेनानियों की कर्मस्थली रहा है। दीप नारायण वर्मा जौनपुर के एक ऐसे नेता थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया, विशेषकर 1930 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान। इसके अलावा, 1857 के विद्रोह के दौरान, पंडित बद्रीनाथ तिवारी के नेतृत्व में सिख सैनिकों ने जौनपुर में स्वतंत्रता के लिए संघर्ष किया था। तो आइए, आज सविनय अवज्ञा आंदोलन, इसके कारणों, विरोध के रूपों , और भारत में स्वतंत्रता संग्राम के प्रभावों के बारे में विस्तार से जानते हैं। इसके साथ ही, जौनपुर के दीप नारायण वर्मा और इस आंदोलन में उनकी भूमिका के बारे में समझते हैं एवं देश के स्वतंत्रता संग्राम में पंडित बदीनाथ तिवारी के योगदान पर भी प्रकाश डालते हैं।
सविनय अवज्ञा आंदोलन पृष्ठभूमि: इस आंदोलन को ‘नमक सत्याग्रह’ के रूप में भी जाना जाता है। यह पहली बार था, जब कांग्रेस ने ब्रिटिश सत्ता के साथ-साथ भारतीय जनता के सामने पूर्ण स्वतंत्रता का लक्ष्य रखा था। महात्मा गांधी द्वारा सविनय अवज्ञा आंदोलन, औपचारिक रूप से, 6 अप्रैल 1930 को ऐतिहासिक दांडी मार्च के बाद नमक कानून तोड़कर शुरू किया गया था। इसके बाद, पूरे देश में राष्ट्रीय नेताओं की व्यापक गिरफ़्तारी हुई। क्रांतिकारी नेताओं की गिरफ़्तारी के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन, भारतीयों द्वारा अपने स्वयं के संविधान की आवश्यकता पर ज़ोर, और नेहरू रिपोर्ट में प्रस्तावित उपनिवेश के दर्जे की अस्वीकृति के बाद पूर्ण स्वतंत्रता की बढ़ती मांग, जैसे कारकों ने सविनय अवज्ञा आंदोलन की पृष्ठभूमि तैयार की। इसके कुछ महत्वपूर्ण बिंदु निम्न प्रकार हैं:
कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन (1928): इस सत्र की अध्यक्षता मोतीलाल नेहरू ने की, जिसमें नेहरू रिपोर्ट का समर्थन और उपनिवेश के दर्जे की मांग की गई थी।
स्वतंत्र उपनिवेश दर्जे की मांग: प्रारंभ में, दो वर्षों तक कांग्रेस द्वारा उपनिवेश दर्ज़ा प्राप्त करने का प्रस्ताव रखा गया। लेकिन, कांग्रेस के पुराने समर्थकों और युवा वर्ग (जिनमें जवाहरलाल नेहरू और सुभाष बोस शामिल थे, जिन्होंने पूर्ण स्वतंत्रता का प्रस्ताव रखा था) के बीच टकराव हुआ। जिसके चलते सर्वसम्मति के रूप में, अंग्रेज़ों को 31 दिसंबर, 1929 तक भारत को प्रभुत्व का दर्जा देने के लिए, एक वर्ष की छूट अवधि दी गई, और अल्टीमेटम दिया गया, कि यदि अंग्रेज़ ऐसा नहीं करते हैं, तो कांग्रेस, सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करेगी।
इरविन की घोषणा (अक्टूबर 1929): भारतीय राष्ट्रवादियों को संतुष्ट करने के लिए, भारत के तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन (Lord Irwin) ने भारत को प्रभुत्व का दर्जा देने के लिए एक गैर-कानूनी घोषणा की। और साइमन कमीशन की रिपोर्ट प्रस्तुत करने के बाद, एक गोलमेज़ सम्मेलन का वादा किया। हालाँकि, इन घोषणाओं में प्रभुत्व की स्थिति के लिए, कोई समयसीमा निश्चित नहीं की गई थी, जिसके कारण कांग्रेस ने निराश होकर लाहौर सत्र में पूर्ण स्वराज के प्रस्ताव की घोषणा कर दी।
दिल्ली घोषणापत्र (2 नवंबर, 1929): 2 नवंबर, 1929 को प्रमुख राष्ट्रीय नेताओं के एक सम्मेलन ने "दिल्ली घोषणापत्र" प्रकाशित किया, जिसमें गोलमेज़ सम्मेलन (Round Table Conference) में भाग लेने के लिए निम्नलिखित शर्तें रखीं:
⦾ उपनिवेश के मूल सिद्धांत को तत्काल अपनाना।
⦾ गोलमेज़ सम्मेलन में कांग्रेस का बहुमत प्रतिनिधित्व।
⦾ राजनीतिक कैदियों के लिए, एक सर्वव्यापी क्षमा और एक समझौता रणनीति।
लाहौर अधिवेशन (1929) और पूर्ण स्वराज: दिल्ली घोषणापत्र में रखी गई, इन मांगों को इरविन ने खारिज कर दिया। इसके बाद, जवाहरलाल नेहरू को कांग्रेस के लाहौर सत्र के लिए अध्यक्ष चुना गया। लाहौर अधिवेशन के दौरान निम्नलिखित प्रमुख निर्णय लिए गए:
पूर्ण स्वराज:
⦿ अधिवेशन में पूर्ण स्वराज की मांग रखी गई और पूर्ण स्वतंत्रता को कांग्रेस का लक्ष्य बताया गया।
⦿ 31 दिसंबर 1929 को लाहौर में तिरंगा झंडा फहराया गया।
⦿ कांग्रेस द्वारा गोलमेज़ सम्मेलन का बहिष्कार करने का निश्चय किया गया।
⦿ स्वतंत्रता दिवस की प्रतिज्ञा: 26 जनवरी 1930 को प्रतिज्ञा लेने का निर्णय लिया गया और यह तय किया गया, कि 26 जनवरी को हर साल गड़तंत्र दिवस के रूप में मनाया जाएगा।
⦿ सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत: यह घोषणा की गई कि गांधीजी के नेतृत्व में आंदोलन शुरू किया जाएगा।
गांधीजी की ग्यारह मांगें:
गांधीजी ने अंग्रेज़ों के सामने निम्नलिखित 11 मांगों का प्रस्ताव रखा और उन्हें स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए 31 जनवरी, 1930 तक का समय दिया:
⦿ रुपया-स्टर्लिंग अनुपात को घटाकर 1:4 किया जाए।
⦾ कृषि कर को 50% कम किया जाए और इसे विधायी नियंत्रण का विषय बनाया जाए।
⦿ नमक पर सरकार का एकाधिकार ख़त्म हो और नमक कर समाप्त किया जाए।
⦾ उच्चतम श्रेणी की सेवाओं के सैन्य व्यय और वेतन को कम किया जाए।
⦿ सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा किया जाए।
⦾ आपराधिक जांच विभाग में सुधार किया जाए।
⦿ डाक आरक्षण बिल स्वीकार हो।
⦾ भारतीय वस्त्र उद्योग की रक्षा की जाए।
⦿ नशीले पदार्थों का निषेध
⦾ भारतियों के लिए तटीय शिपिंग आरक्षित हो।
⦿ आग्नेयास्त्र लाइसेंस के मुद्दे पर लोकप्रिय नियंत्रण की अनुमति दी जाए।
सविनय अवज्ञा आंदोलन 1930: 11 मांगों के संबंध में सरकार की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिलने पर, गांधीजी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का फ़ैसला किया। उपरोक्त सभी मांगों में से, उन्होंने नमक कानून का उल्लंघन करना, चुना, क्योंकि अंग्रेज़ इस बुनियादी आवश्यक वस्तु पर अमानवीय रूप से कर लगा रहे थे और इस पर उनका लगभग एकाधिकार था।
दांडी मार्च: गांधीजी ने 'दांडी मार्च' की घोषणा की और इरविन को इसके बारे में पहले से सूचित कर दिया कि वह नमक कानून तोड़ने जा रहे हैं। गांधीजी और उनके 78 समर्थकों ने, 12 मार्च, 1930 को अहमदाबाद से दांडी तट तक मार्च शुरू की और 5 अप्रैल, 1930 को वहां पहुंचे। उन्होंने 6 अप्रैल को नमक बनाकर, नमक नियमों को तोड़ा और इस प्रकार, आधिकारिक तौर पर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू किया।
विरोध का स्वरूप:
⦾ नमक कानून तोड़ना।
⦾ शराब एवं विदेशी वस्त्रों की दुकानों पर धरना।
⦿ करों का भुगतान करने से इंकार करना।
⦾ वक़ालत छोड़ना।
⦾ मुकदमेबाज़ी से अलग रहकर अदालतों का बहिष्कार करना।
⦿ सरकारी सेवकों द्वारा अपने पद से त्यागपत्र देना।
⦾ स्वराज प्राप्ति के साधन के रूप में सत्य और अहिंसा का पालन करना।
⦾ गांधी जी की गिरफ़्तारी के बाद स्थानीय नेताओं की आज्ञा का पालन करना।
सविनय अवज्ञा आन्दोलन का प्रसार और प्रभाव:
इस आंदोलन के दौरान, असहयोग आंदोलन की गलतियों को नहीं दोहराया गया और पूर्ण रूप से अहिंसक साधनों का उपयोग किया गया, जैसे ब्रिटिश वस्तुओं का बहिष्कार करों का भुगतान करने से इंकार करना, शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन, कानून अदालतों का बहिष्कार, विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार, सरकारी सेवाओं से इस्तीफ़ा, विधान सभाओं का बहिष्कार आदि। पूरे भारत में, किसानों ने घृणित औपनिवेशिक वन कानूनों को तोड़ दिया, जो उन्हें और उनके मवेशियों को जंगलों में जाने से रोकते थे। गांधीजी ने लोगों से अपने भाषण में आह्वान किया कि सच्चा स्वराज अछूतों के कल्याण और विभिन्न धर्मों के सभी लोगों की एकता से प्राप्त होगा। इस प्रकार उन्होंने लोगों को एक साथ आने के लिए प्रोत्साहित किया। इस आंदोलन में, महिलाओं, छात्रों, व्यापारियों, आदिवासियों, श्रमिकों और किसानों की बड़े पैमाने पर भागीदारी थी। हालाँकि, मुस्लिम भागीदारी कम थी, क्योंकि मुस्लिम नेताओं को ब्रिटिश सरकार द्वारा लालच दिया जा रहा था। फिर भी, उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत में मुस्लिम और ढाका में मुस्लिम बुनकर सक्रिय थे।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सविनय अवज्ञा आंदोलन की भूमिका:
सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्व इस तथ्य से स्पष्ट होता है, कि इसके मात्र 17 वर्ष बाद भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई। इसने भारत में जन संघर्ष के लिए मंच तैयार किया और लोगों में अहिंसा को आत्मसात करने के लिए प्रेरित किया। इससे ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार को बड़ा झटका लगा और उन्हें बड़े पैमाने पर नुकसान उठाना पड़ा। विदेशी कपड़ों का आयात गिर गया और करों तथा भू-राजस्व का भुगतान न करने के कारण सरकार को घाटा उठाना पड़ा। विधान सभाओं का बहिष्कार किए जाने पर, सरकार की शक्ति का ह्रास हुआ और शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज और गोलीबारी के कारण भी सरकार को बदनामी झेलनी पड़ी। नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगाने के लिए अध्यादेशों का इस्तेमाल किया गया और प्रेस पर सेंसर लगा दिया गया।
गोलमेज़ सम्मेलन: आंदोलन की बढ़ते प्रभाव के चलते, अंग्रेज़ों को एहसास हुआ, कि सविनय अवज्ञा आंदोलन को रोकने का एकमात्र प्रभावी तरीका भारतीयों को कुछ शक्तियां देने पर सहमत होना था। इसके लिए पहला "गोलमेज़ सम्मेलन" नवंबर 1930 में लंदन में आयोजित किया गया, लेकिन इसमें आंदोलन में भाग लेने वाले अधिकांश भारतीय नेताओं ने भाग नहीं लिया था।
गांधी इरविन समझौता: जनवरी 1931 में गांधीजी को रिहा कर दिया गया और उन्होंने वायसराय इरविन के साथ लंबी चर्चा की। मार्च 1931 में, गांधी-इरविन समझौता, जिसे दिल्ली समझौते के नाम से भी जाना जाता है, पर हस्ताक्षर किए गए। यह समझौता अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हुआ, क्योंकि इसने कांग्रेस को सरकार के साथ बराबरी पर खड़ा कर दिया।
ब्रिटिश गवर्नर द्वारा निम्नलिखित बिंदुओं पर सहमति व्यक्त की गई:
⦿ केवल हिंसा के दोषियों को छोड़कर, सभी राजनीतिक कैदियों की तत्काल रिहाई।
⦿ नहीं वसूले गए सभी जुर्माने की माफ़ी।
⦿ सरकार द्वारा ज़ब्त की गई और अभी तक किसी तीसरे पक्ष को नहीं बेची गई सभी भूमि की वापसी।
⦿ इस्तीफ़ा देने वाले सरकारी कर्मचारियों के प्रति नरमी।
⦿ उपभोग के लिए नमक बनाने का अधिकार।
⦿ शांतिपूर्ण धरना उचित ठहराया गया।
⦿ आपातकालीन अध्यादेशों को वापस लिया गया।
⦿ कांग्रेस भी सविनय अवज्ञा आंदोलन को स्थगित करने और गोलमेज़ सम्मेलन में भाग लेने पर सहमत हो गई।
द्वितीय गोलमेज़ सम्मेलन: दूसरा गोलमेज़ सम्मेलन अनिर्णायक रहा। गांधीजी भारत लौट आए और सविनय अवज्ञा आंदोलन फिर से शुरू किया गया। अंततः, भारत सरकार अधिनियम, 1935 पारित किया गया, जिसके द्वारा सरकार के प्रतिनिधि स्वरूप को मंजूरी दी गई। इसके तहत, 1937 में चुनाव कराए गए, जिसमें कुछ लोगों को वोट देने का अधिकार दिया गया और ब्रिटिश भारत के 11 प्रांतों में से 8 में कांग्रेस की जीत हुई।
सविनय अवज्ञा आंदोलन और जौनपुर के दीप नारायण वर्मा: आप सभी यह तो जानते होंगे कि आप हमारा जौनपुर ज़िला भी कई स्वतंत्रता सेनानियों का घर था, जिन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन में लोगों को संगठित किया और उनका नेतृत्व किया। दीप नारायण वर्मा जौनपुर के, एक ऐसे ही नेता थे, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया, विशेषकर 1930 के सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान। दीप नारायण वर्मा, नमक आंदोलन के दौरान, जौनपुर के पहले नेता और ज़िला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष थे। द्वारिका प्रसाद मौर्य, गजराज सिंह, आद्या प्रसाद सिंह जैसे अन्य नेताओं के साथ, उन्होंने नमक कानून तोड़ा और इसके लिए उन्हें गिरफ़्तार कर लिया गया। उन्हें छह महीने के लिए जेल में डाल दिया गया, जिसके बाद 24 नवंबर 1930 को उन्हें रिहा कर दिया गया। 15 फ़रवरी 1931 को 'मोतीलाल नेहरू दिवस' मनाने के लिए वर्मा की अध्यक्षता में एक सार्वजनिक बैठक आयोजित की गई। उन्होंने 5 अक्टूबर 1931 को 'गांधी सप्ताह' मनाने के लिए, आयोजित सार्वजनिक बैठक की अध्यक्षता भी की। जब पुलिस ने आंदोलन को रोकने के लिए कड़े दमनकारी कदम उठाने शुरू किये, तो कई नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया गया। 25 जनवरी 1932 को दीप नारायण वर्मा को पुनः गिरफ़्तार कर लिया गया और पुलिस ने उनके घर की तलाशी ली। उनके घर से राष्ट्रीय ध्वज, स्वयंसेवकों की वर्दी और दस्तावेज़ समेत कई वस्तु एवं प्राप्त हुईं। नमक सत्याग्रह के दौरान, दीप नारायण वर्मा की उत्साही भागीदारी उनकी देशभक्ति की भावना और भारत की स्वतंत्रता के प्रति मज़बूत प्रतिबद्धता को दर्शाती है।
पंडित बद्रीनाथ तिवारी और राष्ट्रवाद: 1857 के विद्रोह के दौरान, जब जौनपुर में सिख़ सैनिक, भारतीय विद्रोहियों में शामिल हो गये, तो अंततः नेपाल के गोरख़ा सैनिकों द्वारा ज़िले को अंग्रेज़ों के लिए पुनः जीत लिया गया। जौनपुर तब एक ज़िला प्रशासनिक केंद्र बन गया। उस समय सबसे बड़ा विद्रोह जौनपुर में तब हुआ, जब पंडित बद्रीनाथ तिवारी के नेतृत्व में स्वतंत्रता सेनानियों ने नीभापुर के रेलवे स्टेशन पर राष्ट्रीय ध्वज फहराया। इस विद्रोह के चलते, पंडित बद्रीनाथ तिवारी और उनके साथी स्वतंत्रता सेनानियों ने सरकार की दमन नीतियों और अत्याचारों के सामने झुकने से इनकार कर दिया था।
संदर्भ
https://tinyurl.com/2mheanrf
https://tinyurl.com/2jmk4u89
https://tinyurl.com/t3dhtr8s
https://tinyurl.com/2kwxn899
चित्र संदर्भ
1. जौनपुर के पुराने शाही किले और नमक सत्याग्रह को संदर्भित करता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह, wikimedia)
2. गांधीजी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. नमक सत्याग्रह के दृश्य को दर्शाती मूर्तियों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. दिल्ली में नमक मार्च की प्रतिमा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.