पाएं, हमारी कागज़ी मुद्रा के इतिहास, पुराने बैंकों व मुद्रा नोटों के मूल्यवर्ग की जानकारी

सिद्धान्त I-अवधारणा माप उपकरण (कागज/घड़ी)
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पाएं, हमारी  कागज़ी मुद्रा के इतिहास, पुराने  बैंकों व मुद्रा नोटों के मूल्यवर्ग की जानकारी
हम जौनपुर निवासी, इस बात से तो ज़रूर सहमत हैं कि, कागज़ी मुद्रा ने हमारे जीवन को बहुत सरल बना दिया है। लेकिन, क्या आप जानते हैं कि, भारत में कागज़ी मुद्रा की उत्पत्ति, 18वीं सदी के अंत में हुई थी, जब निजी बैंकों ने प्रॉमिसरी नोट(Promissory notes) जारी किए थे। ये नोट, जनता के बीच, पैसे के रूप में प्रसारित हुए। तो आइए, आज भारत में कागज़ी मुद्रा के इतिहास के बारे में विस्तार से जानें। हम बैंक ऑफ़ बंगाल (Bank of Bengal), बैंक ऑफ़ बॉम्बे (Bank of Bombay) और बैंक ऑफ़ मद्रास (Bank of Madras) जैसे संस्थानों के बारे में बात करेंगे, जिन्होंने भारत में कागज़ी नोट के पहले आधिकारिक जारीकर्ता के रूप में कार्य किया था। उसके बाद, हम, उन कारणों के बारे में बात करेंगे,  जिसके तहत, ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी, भारत में कागज़ी मुद्रा   प्रसारित करना चाहती थी। आगे, हम, ब्रिटिश शासन के दौरान मौजूद, भारतीय बैंक नोटों के मूल्यवर्ग के बारे में  भी जानेंगे। जबकि, अंत में, हम, 1920 में, हैदराबाद रियासत के निज़ाम द्वारा की गई, भारत की पहली नोटबंदी की कहानी के बारे में भी चर्चा करेंगे।
भारत में, अठारहवीं शताब्दी के अंत में, कागज़ी नोट पेश  किए गए थे । मुगल साम्राज्य के पतन और औपनिवेशिक शक्तियों के आगमन के कारण, यह तीव्र राजनीतिक उथल-पुथल और अनिश्चितता का दौर था। इस कारण, स्वदेशी बैंक प्रभावित हुए, क्योंकि, उनका काफ़ी सारा वित्त, उनके स्वामित्व से एजेंसी कार्यालयों के पास चला गया। इन कार्यालयों को राज्य का संरक्षण प्राप्त था। इसके चलते, कई एजेंसी घरानों ने बैंकों की स्थापना की।

भारत में जारी किए गए, कागज़ी नोटों के शुरुआती अंक, इस प्रकार थे:
१. नोटों के प्रारंभिक जारीकर्ताओं में, ‘जनरल बैंक ऑफ़ बंगाल एंड बहार (1773-75)’  था। यह एक राज्य प्रायोजित  बैंक था, जिसे स्थानीय विशेषज्ञता की भागीदारी के साथ स्थापित किया गया था। इसके नोटों को सरकारी संरक्षण प्राप्त था। सफ़ल और लाभदायक होते हुए भी, बाद, में यह बैंक आधिकारिक तौर पर बंद हो गया। ‘बैंक ऑफ़ हिंदोस्तान (1770-1832)’ की स्थापना अलेक्जेंडर एंड कंपनी(Alexander and Co.) के एजेंसी हाउस द्वारा की गई थी, और यह कंपनी विशेष रूप से सफ़ल रही थी। बैंक ऑफ़ हिंदोस्तान अंततः तब दिवालिया हो गया, जब इसकी मूल कंपनी, 1832 के वाणिज्यक संकट में विफल हो गई थी।
२. बैंक ऑफ़ बंगाल  द्वारा जारी किए गए नोटों को मोटे तौर पर, 3 व्यापक श्रृंखलाओं में वर्गीकृत किया जा सकता  था: यूनिफेस्ड श्रृंखला(Unifaced Series), कॉमर्स श्रृंखला(Commerce Series) और ब्रिटानिया श्रृंखला(Britannia Series)। बैंक ऑफ़ बंगाल के शुरुआती नोट एकरूपी थे। साथ ही, इन्हें, एक स्वर्ण मोहर (कलकत्ता में सोलह सिक्के रुपयों के बराबर) के रूप में,  जाना जाता था | 19वीं शताब्दी की शुरुआत में, रु 100, रु. 250, और रु. 500 के नोटों को जनता की सुविधा के लिए जारी किया गया |      
३. दूसरा प्रेसीडेंसी बैंक, 1840 में, मुंबई में स्थापित किया गया था, जो प्रमुख वाणिज्यक केंद्र के रूप में विकसित हुआ था। इस बैंक का इतिहास, उतार-चढ़ावों से भरा है। कपास के बाज़ार में तेज़ी से आई गिरावट से उत्पन्न संकट के कारण, 1868 में बैंक ऑफ़ बॉम्बे का विघटन हुआ। हालांकि, उसी वर्ष इसका पुनर्गठन भी किया गया। इस बैंक द्वारा जारी किए गए नोटों में, टाउन हॉल(Town Hall), माउंटस्टुअर्ट एलफिंस्टन(Mountstuart Elphinstone) और जॉन मैल्कम(John Malcolm) की मूर्तियों के चित्र थे।
४. 1843 में स्थापित बैंक ऑफ़ मद्रास, तीसरा प्रेसीडेंसी बैंक था। बैंक ऑफ़ मद्रास के नोटों पर मद्रास के तत्कालीन गवर्नर – सर थॉमस मुनरो(Sir Thomas Munroe) का चित्र अंकित था।
विरोधाभास के तौर पर, ब्रिटिश साम्राज्य ने, 18वीं शताब्दी के मध्य में, विनाशकारी परिणामों के साथ, मुद्रा एकाधिकार लागू करने का प्रयास किया था। तभी ब्रिटिश अमेरिका के 13 उपनिवेशों में, व्यापार घाटे के कारण, अमेरिकी व्यवसायों को नुकसान का सामना करना पड़ा था। इस वजह से, 1764 में एक मुद्रा अधिनियम से, स्थानीय बैंकों से प्राप्त धन को बेकार घोषित कर दिया गया।

भारत में एक सदी बाद,   1857 के विद्रोह से हुए  नुकसान की भरपाई, भारत को करनी पड़ी थी। विद्रोह को दबाने के कारण, अंग्रेज़, भारी  कर्ज़ में डूब गए। जब ब्रिटेन ने, ईस्ट इंडिया कंपनी से, भारत का नियंत्रण ले लिया, तो यह कर्ज़ चुकाने पर सवाल उठा। तभी यह स्पष्ट कर दिया गया था कि, भारत अपने दमन के लिए भुगतान करेगा। सरकारी कागज़ी मुद्रा से होने वाले लाभ को, भारत के वित्त को सही करने के साधनों में से एक के रूप में देखा गया था।
इस बीच, व्यापार, तब भी बड़े पैमाने पर ईस्ट इंडिया कंपनी और रियासतों द्वारा जारी किए गए  सिक्कों में किया जाता था। चूंकि, इन सिक्कों के मूल्य व्यापक रूप से भिन्न थे, पैसे को इधर-उधर ले जाना बोझिल था, और इसका हिसाब-किताब रखना भी जटिल था।
  स्थानीय क्रेडिट-वाउचर(credit-voucher) प्रणाली – हुंडी, को इस प्रकार की बड़े पैमाने की लेनदेन बनाए रखने के लिए, संघर्ष करना पड़ा। इस कारण, 1770 से अस्तित्व में रहे स्थानीय बैंकों ने, व्यापारियों  के स्थानीय सिक्कों  को बदलने के लिए, अपने वचन पत्र जारी किए। लेकिन, इन्हें केवल बैंक के निकटवर्ती क्षेत्र में ही परिचालित किया जा सकता था, और इनका उपयोग बड़े शहरों में किया जाता था। साथ ही, उस समय, विभिन्न मूल्यों के लगभग 100 प्रकार के रुपये प्रचलन में रहे होंगे।
फिर, जैसे-जैसे कृत्रिम नोटों का कारोबार बढ़ता गया, यह नई श्रृंखला 1867 में शुरू की गई, और इसे 5, 10, 20, 50, 100, 500, 1,000 और 10,000 रुपये के नोटों में विभाजित किया गया। 1923 में, जॉर्ज V(George V) के चित्र वाली एक और श्रृंखला शुरू की गई थी। इसे 1,  25, 5, 10, 50, 100, 1,000 और 10,000 रुपये के नोटों में विभाजित किया गया था।
जनवरी 1936 में, भारतीय रिज़र्व बैंक ने पहली बार किंग जॉर्ज VI(George VI) के चित्र वाले पांच रुपये के नोट जारी किए। फिर,  फ़रवरी में 10; मार्च में 100 रुपए के नोट; और जून 1938 में, 1000 और 10000 रुपए के नोट जारी किए गए। किंग जॉर्ज VI के चित्र वाले नोट, 1948 में और बाद में 1950 तक जारी किए गए; जिसके बाद, अशोक स्तंभ की तस्वीर वाले नोट  अस्तित्व में आए ।

इसके अलावा, क्या आप जानते हैं कि, 1920 में, हैदराबाद के निज़ाम द्वारा भारत में पहला विमुद्रीकरण किया गया था। यह तब हुआ जब, निज़ाम सरकार ने, 1 रुपये की कागज़ी मुद्रा को प्रचलन से वापस ले लिया था। निज़ाम ने, 1918 में, 10 रुपये और 100 रुपये की कागज़ी मुद्रा, और 1919 में 1 रुपये की मुद्रा शुरू की थी। क्योंकि, प्रथम विश्व युद्ध के कारण, तब धातु और चांदी की भारी कमी थी। 
हालांकि, तब 1 रुपये के नोट को कोई खरीदने वाला नहीं था। क्योंकि, सरकारी गारंटी के बावजूद, इसका कोई आंतरिक मूल्य नहीं था। जबकि, उस समय, प्रचलित 1 रुपये का चांदी का सिक्का, आंतरिक मूल्य वाला था, क्योंकि, इसमें  वज़नदार चांदी थी।
इसके अलावा, 1 रुपये का नोट, काले रंग में मुद्रित किया गया था। लोगों ने इस रंग को अशुभ माना, और इसलिए, इसे स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इस कारण, निज़ाम को नोट शुरू होने के एक साल के भीतर ही, उसे वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा। और इससे ही, भारत के पहली विमुद्रीकरण की शुरुआत हुई।

संदर्भ
https://tinyurl.com/u3std6xh 
https://tinyurl.com/2s3he6f5 
https://tinyurl.com/2s3d4hnm 
https://tinyurl.com/bdhp2yra 

चित्र संदर्भ

1. मुंबई टकसाल को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2.1858 के 5 रुपए के नोट को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. 50 रुपए के नोट को संदर्भित करता एक चित्रण (pixels)




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