हमारे महासागरों पर, ज्वार और बढ़ते तापमान का क्या प्रभाव पड़ रहा है?

समुद्री संसाधन
16-08-2024 09:26 AM
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हमारे महासागरों पर, ज्वार और बढ़ते तापमान का क्या प्रभाव पड़ रहा है?
छोटी उम्र से ही, हममें से कई लोगों को यही सिखाया गया है कि, ज्वार, चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव से प्रभावित होते हैं। लेकिन, क्या आपने कभी यह सोचा है कि ज्वार वास्तव में क्या हैं और वे क्यों आते हैं? इस लेख में, हम महासागरीय ज्वार के पीछे के विज्ञान में गहराई से उतरेंगे और उनके महत्व की खोज करेंगे! साथ ही, आज हम, यह भी जानने की कोशिश करेंगे कि ज्वार, महासागरीय वार्मिंग से कैसे संबंधित हैं?
ज्वार, समुद्र में चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण खिंचाव के कारण उत्पन्न होते हैं। इस खिंचाव से विशाल लहरों का निर्माण होता है, जो समुद्र के पार तटों की ओर बढ़ती हैं। जब लहर का सबसे ऊँचा हिस्सा (शिखा) तट पर पहुँचता है, तो यह उच्च ज्वार (High Tide) का कारण बनता है। जब लहर का सबसे निचला हिस्सा (गर्त) तट पर पहुँचता है, तो यह निम्न ज्वार (Low Tide) का कारण बनता है। उच्च ज्वार और निम्न ज्वार के बीच ऊँचाई के अंतर को ज्वारीय सीमा (Tidal Range) कहा जाता है।
महासागरीय ज्वार, हमारी पृथ्वी पर जीवन को सुचारू रखने में बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं:
1. समुद्री जीवन: ज्वार, समुद्री जीवों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई जलीय प्रजातियाँ भोजन, प्रजनन और प्रवास के लिए ज्वार पर निर्भर करती हैं। ज्वार के पैटर्न में थोड़ा सा बदलाव भी इन गतिविधियों को बाधित कर सकता है और समुद्री जैव विविधता को नुकसान पहुँचा सकता है।
2. तटीय कटाव: ज्वार तटीय कटाव और बाढ़ के जोखिम को भी प्रभावित करते हैं। ज्वार के पैटर्न में बदलाव इन मुद्दों को और अधिक प्रभावित कर सकते हैं, जिससे तटीय क्षेत्रों और बुनियादी ढांचे को और अधिक नुकसान हो सकता है। तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा और योजना बनाने के लिए इन परिवर्तनों को समझना महत्वपूर्ण है।
3. मछली पकड़ने की प्रथाएँ: सुरक्षित नैविगेशन और बड़े स्तर पर मछली पकड़ने के लिए ज्वार की सटीक भविष्यवाणी आवश्यक है। ज्वार में परिवर्तन से मछली की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है और पारंपरिक मछली पकड़ने के क्षेत्र बदल सकते हैं।
4. जलवायु परिवर्तन संकेतक: ज्वार के पैटर्न में बदलाव, जलवायु परिवर्तन का संकेत दे सकते हैं। इन बदलावों का अध्ययन करके, वैज्ञानिक बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि जलवायु परिवर्तन महासागर के व्यवहार और मौसम के पैटर्न को कैसे प्रभावित कर रहा है, जो इन मुद्दों को संबोधित करने के लिए रणनीति विकसित करने के लिए महत्वपूर्ण है।
5. नवीकरणीय ऊर्जा और तटीय अर्थव्यवस्थाएँ: ज्वारीय ऊर्जा परियोजनाएँ, अपनी दक्षता के लिए पूर्वानुमानित ज्वार पैटर्न पर निर्भर करती हैं। ज्वार में कोई भी महत्वपूर्ण परिवर्तन, इन नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों की व्यवहार्यता को प्रभावित कर सकता है। इसके अतिरिक्त, स्थिर ज्वार पैटर्न पर्यटन, शिपिंग और अन्य तटीय आर्थिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
महासागर, ग्रीनहाउस गैसों से बहुत अधिक अतिरिक्त गर्मी को अवशोषित करता है। लेकिन इसकी वजह से महासागर का तापमान बढ़ रहा है।
महासागरों के गर्म होने से पर्यावरण पर भी कुछ बुरे प्रभाव पड़ रहे हैं!
इन प्रभावों में शामिल हैं:
1. महासागर का उच्च तापमान समुद्री जीवों और उनके आवासों को नुकसान पहुँचा रहा है। इसकी वजह से प्रवाल भित्तियाँ (Coral Reefs) विरंजित हो रही हैं और मर रही हैं। मछलियाँ और समुद्री स्तनधारी अपने प्रजनन स्थल खो रहे हैं।
2. गर्म महासागर मनुष्यों के लिए भी हानिकारक हैं। इससे समुद्र से भोजन प्राप्त करना कठिन हो रहा है। समुद्र में अधिक बीमारियाँ फैल रही हैं, और तटरेखाएँ नष्ट हो रही हैं।
3. महासागर के गर्म होने से पानी में ऑक्सीजन की कमी हो रही है। इससे समुद्र का स्तर भी बढ़ रहा है, क्योंकि पानी फैल रहा है और बर्फ़ पिघल रही है।
4. उच्च तापमान, जलीय पौधों और जीवों को नुकसान पहुँचाता है, जो प्रवाल और मैंग्रोव (Mangroves) जैसी चट्टानों का निर्माण करते हैं।
5. समुद्र का बढ़ता स्तर और कटाव प्रशांत महासागर में निचले द्वीपों के लिए एक बड़ा खतरा बन गया है। लोगों के घर और बुनियादी ढाँचे नष्ट हो रहे हैं , जिससे लोगों को पलायन करने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।
6. गर्म समुद्र, अधिक तीव्र तूफ़ान और एल नीनो (El Niño) जैसी घटनाओं का कारण बनते हैं। इससे सूखा, बाढ़ और अन्य समस्याएँ उत्पन्न होती हैं जो लोगों के जीवन और स्वास्थ्य को प्रभावित करती हैं।
इन समस्याओं से निपटने के लिए क्या किया जा सकता है?
1. पैरिस जलवायु समझौते में सहमति के अनुसार, भविष्य में गर्मी को सीमित करने के लिए, ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती की जा सकती है।
2. अच्छी तरह से प्रबंधित संरक्षित क्षेत्र बनाकर महत्वपूर्ण समुद्री आवासों की रक्षा की जा सकती है।
3. कृत्रिम आवास बनाकर या प्रजातियों को गर्म तापमान के अनुकूल बनाने में मदद करके क्षतिग्रस्त पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल किया जा सकता है।
4. मछली पकड़ने पर सीमाएँ निर्धारित करके, तटीय बफ़र ज़ोन (Buffer Zones) बनाकर और बीमारी के प्रकोप की भविष्यवाणी तथा नियंत्रण के लिए उपकरण विकसित किये जा सकते हैं।
5. महासागरों के गर्म होने और उसके प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने तथा निगरानी करने के लिए अनुसंधान में निवेश किया जा सकता है। इससे हमें अच्छे समाधान निकालने में मदद मिलेगी।
ज्वार, सबसे अधिक चंद्रमा की गति से प्रभावित होता है, क्योंकि यह पृथ्वी के करीब होता है। लेकिन हाल ही में, वैज्ञानिकों ने ज्वार के पैटर्न में छोटे-छोटे परिवर्तन देखे हैं, जिन्हें चंद्रमा और सूर्य के सामान्य प्रभावों से नहीं समझाया जा सकता है। नए डेटा से पता चलता है कि ये परिवर्तन बढ़ते समुद्री तापमान के कारण हो सकते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग (Global Warming), महासागर और वायुमंडल की अंतःक्रिया को भी प्रभावित करती है! ग्लोबल वार्मिंग के कारण उत्पन्न गर्मी, मुख्य रूप से महासागर की गहराई में जमा हो रही है। हालाँकि, यह गर्मी समान रूप से वितरित नहीं होती है! इसके अनुसार, , महासागर की ऊपरी परतें, नीचे की परतों की तुलना में अधिक गर्म हो रही हैं। इस घटना को "स्तरीकरण" (Stratification) के रूप में जाना जाता है, जो पानी में अलग-अलग परतों के निर्माण को संदर्भित करता है। शोध से पता चलता है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यह स्तरीकरण अधिक स्पष्ट होता जा रहा है।
आमतौर पर, महासागर के ऊपर, तेज़ हवाएँ, सतह के पानी को गहरे पानी के साथ मिलाने में मदद करती हैं। हालाँकि, स्तरीकरण इस मिश्रण को रोकता है, जिससे गर्म पानी सतह पर बना रहता है। जब गर्म पानी ऊपर रहता है, तो यह महासागर से वाष्पीकरण को बढ़ाता है। वायुमंडल में इस अतिरिक्त नमी के परिणामस्वरूप वर्षा और अन्य मौसम परिवर्तन बढ़ सकते हैं। इससे पता चलता है कि ग्लोबल वार्मिंग, वायुमंडल और महासागरों के बीच के संबंध को कैसे बदल देती है।
आमतौर पर गर्म उष्णकटिबंधीय महासागरों में टाइफ़ून (Typhoon) बनते हैं, जहाँ समुद्र की सतह का उच्च तापमान, वायुमंडल को भरपूर जल वाष्प प्रदान करता है। टाइफ़ून शक्तिशाली तूफ़ान होते हैं जो हमारे समाज को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं और समुद्र और वायुमंडल के बीच की बातचीत से निकटता से जुड़े होते हैं।
ये तूफ़ान , आमतौर पर उष्णकटिबंधीय महासागरों पर बनते हैं जहाँ समुद्र की सतह का तापमान अधिक होता है। गर्म समुद्री पानी वायुमंडल को बड़ी मात्रा में जल वाष्प प्रदान करता है। जब विशिष्ट परिस्थितियाँ मिलती हैं, तो दबाव प्रणाली संगठित होती हैं और टाइफ़ून में विकसित होती हैं। जैसे-जैसे टाइफ़ून बढ़ता है, वैसे-वैसे इसका वेग और अधिक तीव्र हो जाता है, जिससे समुद्र से और भी अधिक जल वाष्प निकलता है। हालांकि, विकसित हो रहे टाइफ़ून से आने वाली तेज़ हवाएँ समुद्र को ठंडा भी करती हैं। हवाएँ पानी को हिलाती हैं, जिससे गहरी परतों से ठंडा पानी सतह पर आता है। समुद्र के तापमान में यह गिरावट समय के साथ टाइफ़ून को कमज़ोर कर सकती है। कुल मिलाकर ग्लोबल वार्मिंग, समुद्र के तापमान और वायुमंडलीय स्थितियों दोनों को प्रभावित करती है, जो बदले में टाइफ़ून जैसे मौसम के पैटर्न को प्रभावित करती है।


संदर्भ
https://tinyurl.com/2xzvozqf
https://tinyurl.com/2m6l6fzq
https://tinyurl.com/26nnr7fj
https://tinyurl.com/yayd2azp

चित्र संदर्भ
1. समुद्री ज्वार को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
2. ज्वार एवं चंद्रमा को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
3. समुद्री लहरों के प्रवाह को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
4. चाँद और समुद्र को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
5. टाइफ़ून को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
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