एक उपन्यास और कई फिल्मों ने कथक करती एक अभागी तवायफ 'उमराव जान' को अमर कर दिया!

द्रिश्य 2- अभिनय कला
16-07-2024 09:30 AM
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एक उपन्यास और कई फिल्मों ने कथक करती एक अभागी तवायफ 'उमराव जान' को अमर कर दिया!

2 जनवरी 1981 के दिन भारतीय सिनेमाघरों में एक तवायफ के संघर्षों को दर्शाती एक फिल्म रिलीज होती है। इस फ़िल्म में मुख्य किरदार की भूमिका निभाने वाली "अभिनेत्री रेखा को 29वें राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कारों में से सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री सहित 4 अन्य पुरस्कारों से भी नवाज़ा गया।" इस फिल्म का नाम था "उमराव जान।" यह फिल्म मिर्ज़ा मोहम्मद हादी रुसवा द्वारा 1899 में लिखे गए एक उपन्यास “उमराव जान अदा” पर आधारित थी।


उमराव जान अदा, मिर्ज़ा हादी रुसवा द्वारा लिखित और 1899 में प्रकाशित एक प्रसिद्ध उर्दू उपन्यास है। उपन्यासकार मिर्ज़ा मोहम्मद हादी रुसवा (1857 - 1931)  विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। 1858 में जन्मे मोहम्मद हादी ने अपनी कविताओं के लिए रुसवा और अपने उपन्यासों के लिए मिर्ज़ा रुसवा उपनाम का इस्तेमाल किया। उन्होंने रुड़की इंजीनियरिंग कॉलेज से स्नातक किया और क्वेटा में 70 रुपये मासिक वेतन पर काम किया। रसायन विज्ञान में रुचि बढ़ी तो उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी। जब उनके पास पैसे खत्म हो गए, तो उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए पूरा करने के दौरान लखनऊ क्रिश्चियन कॉलेज स्कूल (Lucknow Christian College School) में फ़ारसी भी सिखाई। शुरुआत में, उन्होंने मिर्ज़ा दबीर के मार्गदर्शन में कविताएं लिखीं और दबीर की मृत्यु के बाद, उन्होंने दबीर के बेटे, मिर्ज़ा जाफ़र औज के अधीन काम करना जारी रखा। अपनी आय बढ़ाने के लिए, मिर्ज़ा ने अनुवाद और उपन्यास लेखन की ओर रुख किया। 1902 में, ज्योतिष में उनकी रुचि बढ़ने लगी। कविता और रचनाओं सहित उनका साहित्यिक कार्य 1920 के अंत तक लखनऊ में जारी रहा। 1917 में रुसवा, लखनऊ छोड़कर हैदराबाद चले गए, जहाँ उन्होंने 1931 में अपनी मृत्यु तक उस्मानिया विश्वविद्यालय में काम किया। उनकी विलक्षणता और प्रतिभा ने उर्दू साहित्य में उनकी विरासत को मजबूत किया है, जिसमें "उमराव जान अदा" उनकी सबसे प्रसिद्ध और रहस्यमय कृति बनी हुई है। उन्होंने उर्दू गद्य में महारत हासिल की और लोकप्रिय उपन्यास भी लिखे। हालाँकि 19वीं सदी के उत्तरार्ध में उनकी हल्की-फुल्की रचनाएँ बहुत लोकप्रिय थीं, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा "उमराव जान अदा" लिखने के लिए याद किया जाता है। इसे उर्दू का पहला उपन्यास माना जाता है।  उनके उपन्यास में उत्तर प्रदेश की एक तवायफ 'उमराव जान' और भारत के प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य 'कथक' की कहानी को आपस में जोड़ा गया है। मूल उपन्यास, "उमराव जान अदा", को पहली बार 1899 में लखनऊ में गुलाब मुंशी एंड संस प्रेस द्वारा प्रकाशित किया गया था, और इसे भारत के पहले आधुनिक उपन्यासों में से एक माना जाता है। इसे एक अनूठी और भावपूर्ण शैली में लिखा गया, यह उमराव जान का प्रथम-व्यक्ति वृत्तांत है।


उमराव का जन्म अमीरन के रूप में हुआ था। लेकिन उस बेचारी की बदकिस्मती देखिए कि महज 12 वर्ष की आयु में उसके पिता के दुश्मनों (दिलावर खान) द्वारा उसका अपहरण कर लिया जाता है और लखनऊ के एक वेश्यालय में उसे बेच दिया जाता है। वहाँ, उसे शास्त्रीय संगीत और नृत्य का प्रशिक्षण दिया जाता है। बड़ी होने पर वह प्रसिद्ध तवायफ और कवियत्री बन जाती हैं।

छोटी सी उम्र में न जाने कितने ही लोग बेचारी उमराव का दिल तोड़ देते है। लोग उसके पास केवल उसके शोषण की चाहत में आते हैं।  जीवन के कई दुखद और भेदभावपूर्ण अनुभवों के बाद, जब उमराव आखिरकार अपने घर लौटती हैं, तो उनके परिवार वाले भी यह कहकर उसे अपनाने से मना कर देते हैं कि उसने अपना अतीत एक वेश्या के रूप में बिताया है। उपन्यास के आखिर में कुख्यात दिलावर खान, (जिसने सालों पहले उसका अपहरण किया था।) को आखिरकार गिरफ्तार कर लिया जाता है और डकैती के अपराध के लिए उसे फांसी पर लटका दिया गया। अपने जीवन के इस दुखद अध्याय के समाप्त होने के साथ ही उमराव अपने द्वारा अर्जित की गई संपत्ति  (अपनी खुद की कमाई और फैज अली नामक उसके एक दीवाने द्वारा उसे उपहार में दिए गए सोने) के साथ अपने आगे के दिन बिताती है।  


मिर्ज़ा हादी रुसवा द्वारा लिखित इस उपन्यास को कई फिल्म रूपांतरणों एवं धारावाहिकों के रूप में भी प्रदर्शित किया गया है। मुज़फ़्फ़र अली द्वारा निर्देशित और रेखा द्वारा अभिनीत 1981 की हिंदी फ़िल्म "उमराव जान" ने एक खूबसूरत तवायफ की दुखद कहानी और लखनवी संस्कृति के चित्रण से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इस कहानी को कई अन्य रूपों में भी रूपांतरित किया गया है, जिसमें एस एम यूसुफ़ की 1958 की फ़िल्म "मेहंदी" और जे पी दत्ता की 2006 की फ़िल्म "उमराव जान" सहित हसन तारिक की 1972 की पाकिस्तानी फ़िल्म "उमराव जान अदा" भी शामिल हैं। इसे भारत और पाकिस्तान दोनों में टेलीविज़न धारावाहिकों में भी दिखाया गया है।


जे. पी. दत्ता द्वारा निर्देशित 2006 की भारतीय पीरियड म्यूजिकल रोमांटिक ड्रामा फिल्म (Indian period musical romantic drama film) "उमराव जान" भी प्रसिद्ध उर्दू उपन्यास "उमराव जान अदा" के किरदार को जीवंत करती है। इस फिल्म में ऐश्वर्या राय मुख्य भूमिका में हैं, जबकि अभिषेक बच्चन, शबाना आज़मी, सुनील शेट्टी, दिव्या दत्ता, हिमानी शिवपुरी और कुलभूषण खरबंदा ने उनका साथ दिया है। 150 मिलियन रुपये के प्रोडक्शन बजट (production budget) के साथ, "उमराव जान" ने 3 नवंबर 2006 को दुनिया भर में 600-700 स्क्रीन पर धूम मचाई, और 195.2 मिलियन रुपये की कमाई की। इसका फिल्मांकन जयपुर के आसपास के विभिन्न महलों में हुआ।


फिल्म देख चुके और उपन्यास पढ़ चुके कई लोगों के मन में आज भी यह सवाल कायम है कि उमराव जान वास्तविक थी या काल्पनिक? ज़्यादातर विशेषज्ञ मानते हैं कि उमराव जान काल्पनिक थी, हालाँकि कुछ लोग रुसवा के अप्रकाशित उपन्यास "अफ़शाई राज़" में उनके दावे की ओर इशारा करते हैं कि उन्होंने वास्तविक लोगों को चित्रित किया है। 1981 की फ़िल्म "उमराव जान" के लेखक का दावा है कि वह कभी अस्तित्व में ही नहीं थी, और उसके जीवन का कोई ऐतिहासिक प्रमाण नहीं है।


संदर्भ 

https://tinyurl.com/2p5ajfsz

https://tinyurl.com/2onhh48r

https://tinyurl.com/2r34ntao

https://tinyurl.com/2kmj6y5f

https://tinyurl.com/2fddvu2g


चित्र संदर्भ

1. उमराव जान अदा पुस्तक के प्रथम पृष्ठ को दर्शाता चित्रण (amazon)

2. उमराव जान अदा पुस्तक के प्रथम पृष्ठ को दर्शाता चित्रण (flipkart)

3. लखनऊ के प्रसिद्द लेखक मिर्जा हादी रुसवा का एक चित्रण (wikimedia)

4. तवायफों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

5. 1981 की फ़िल्म उमराव जान के पोस्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)

6. जे पी दत्ता की 2006 की फ़िल्म "उमराव जान" के पोस्टर को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)



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