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सुबह उठने पर खिड़की खोलने से लेकर नहाने के बाद तैयार होने में दर्पण के उपयोग तक, या मोबाइल से लेकर कार तक, एक चीज़ सब में आम है वह है कांच। कांच एक ऐसी सामग्री है, जिसका प्रयोग दैनिक कार्यों में प्रयोग आने वाली अधिकांश वस्तुओं एवं उपकरणों में होता है, फिर भी इसके महत्व पर अक्सर किसी का ध्यान नहीं जाता है। कांच हमारे जीवन में एक आवश्यक भूमिका निभाता है। चूँकि हम और आप सदैव कांच शब्द सुनते तो हैं, लेकिन क्या आप जानते हैं कि वास्तव में कांच क्या है और यह कैसे बनता है। तो आइए आज इस लेख में इसके विषय में जानते हैं और देखते हैं कि कांच बनाने में सिलिका की क्या भूमिका होती है और फ्लोट कांच क्या है? और देखते हैं कि इससे, जिस कांच के गिलास में आप पानी पीते हैं, वह कैसे बनता है।
कांच सिलिका से बना एक गैर-क्रिस्टलीय (non-crystalline) आकारहीन ठोस सामग्री है जिसका उपयोग लम्बे समय से खिड़कियां, टेबलवेयर और घरेलू उपकरणों जैसे सजावटी अनुप्रयोगों में किया जा रहा है। कांच प्रकाश को संचारित, परावर्तित और अपवर्तित करता है, और कांच के इन सभी गुणों को प्रकाश का उपयोग करने वाले ऑप्टिकल लेंस (optical lens), प्रिज्म (prism), उत्तम गुणवत्ता वाले कांच के बर्तन और ऑप्टिकल फाइबर (optical Fibre) में उपयोग के लिए काटने और पॉलिश करने के माध्यम से बढ़ाया जा सकता है। सबसे सामान्य चमकदार और बर्तनों में प्रयुक्त कांच सोडा-लाइम (soda lime) कांच है, जिसे सोडा-लाइम-सिलिका कांच भी कहा जाता है। हालांकि, आज सिलिका-आधारित कांच के विभिन्न प्रकारों की एक विस्तृत श्रृंखला मौजूद है। सभी निर्मित कांच उत्पादों में से लगभग ९० % के निर्माण में सोडा-लाइम-सिलिका कांच का उपयोग किया जाता है। कांच के इस प्रकार को दो समूहों में वर्गीकृत किया जाता है: सपाट कांच (खिड़कियाँ) और कंटेनर कांच। इन दोनों प्रकार के कांच को बनाने के लिए अलग-अलग तकनीक का उपयोग किया जाता है। सपाट कांच बनाने के लिए फ़्लोट (Float) तकनीक का उपयोग किया जाता है; और कंटेनर कांच के निर्माण के लिए ब्लो और प्रेस (Blow & Press) तकनीक का उपयोग किया जाता है। इन तकनीकों के दौरान विद्युत आवेशित आयनों को जोड़कर और समान रूप से वितरित करके या पिघली हुई अवस्था में कांच में बारीक बिखरे हुए कणों को उत्सर्जित करके कांच को रंगा भी जा सकता है। जबकि साधारण सोडा-लाइम ग्लास पतला होने पर नग्न आंखों से देखने पर रंगहीन दिखाई देता है, इसमें आयरन ऑक्साइड (iron oxide) की अशुद्धियों के निशान होते हैं जो हरे रंग की टिंट पैदा करते हैं। आयरन ऑक्साइड युक्त कच्चे माल से हरी और भूरे रंग की बोतलें बनाई जाती हैं।
कांच का निर्माण सोडा, चूना पत्थर और सिलिका रेत जैसे मुख्य घटकों को मिलाकर किया जाता है। कांच निर्माण के लिए रेत में सिलिका की मात्रा और रासायनिक शुद्धता जितनी अधिक होती है, कांच की गुणवत्ता उतनी ही बेहतर होती है। सिलिका रेत, जिसे औद्योगिक रेत, सफेद रेत या क्वार्ट्ज (Quartz) रेत भी कहा जा सकता है, मुख्य रूप से ऑक्सीजन (oxygen)और सिलिका से बनी होती है। कांच निर्माण में, इसका मुख्य रूप से उपयोग किया जाता है। सिलिका रेत के रूप में वर्गीकृत होने के लिए रेत में कम से कम ९५ % सिलिकॉन डाइऑक्साइड और ०.६ % से कम आयरन ऑक्साइड होना चाहिए। यदि रेट में ये सभी आवश्यकताएं पूरी नहीं होती हैं, तो कांच बनाने की प्रक्रिया में इसका उपयोग नहीं किया जाता है। इसलिए उपलब्ध होने वाली समस्त रेत में कांच बनाने में उपयोग के लिए आवश्यक शुद्धता मानक नहीं होते हैं। सालाना निकाली जाने वाली ५० अरब टन रेत में से १ % से भी कम रेत आवश्यक मानकों को पूरा करती है। उपयोग की जाने वाली सिलिका रेत की शुद्धता की मात्रा का उत्पादित कांच के स्थायित्व, मजबूती और पारदर्शिता जैसे गुणों पर सीधा प्रभाव पड़ता है। वाहनों की विंडशील्ड (windshield) जैसे उत्पादों के लिए, केवल उच्चतम गुणवत्ता वाली सिलिका रेत का उपयोग किया जाता है।
कांच के सभी प्रकारों में से फ्लोट (Float) कांच का उपयोग अन्य कांच उत्पादों जैसे स्तरित कांच और तापीय दृढ़ीकृत कांच के डिजाइन में किया जाता है। इसका रंग प्राकृतिक हरा होता है और साथ ही यह पारभासी होता है जिसके कारण लगभग ८७% आपतित प्रकाश संचारित करता है और, सपाट कांच के विपरीत उपयोगकर्ता को एक क्रिस्टल स्पष्ट दृश्य प्रदान करता है।
इसका नाम फ्लोट कांच इसको बनाने में प्रयुक्त विनिर्माण प्रक्रिया के कारण है, जिसमें पिघले हुए कांच को पिघली हुई टिन के ऊपर डाला जाता है, जिससे कांच तैरने लगता है। घरेलू वस्तुओं से लेकर व्यावसायिक उपयोग तक, फ्लोट कांच का उपयोग विभिन्न अनुप्रयोगों में किया जाता है। अपनी क्रिस्टल स्पष्ट पारदर्शिता के कारण, फ्लोट कांच का उपयोग शोरूम डिस्प्ले केस (Showroom display case), खुदरा दुकान की खिड़कियों और काउंटरटॉप (countertop) में महंगी घड़ियों, आभूषणों आदि जैसी मूल्यवान वस्तुओं की सुंदरता को सहजता से प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है। इसके अतिरिक्त इस कांच का उपयोग ऊंची, झिलमिलाती गगनचुंबी इमारतों की खिड़कियों, घरों एवं ऑफिस (Office) में स्थान विभाजन के लिए क्रिस्टल स्पष्ट दृश्य प्राप्त करने हेतु किया जाता है।
क्या आप जानते हैं कि जिस कांच के गिलास में आप पानी पीते हैं, वह कैसे बनता है? कांच के निर्माण में मुख्य रूप से कच्चे माल के रूप में चार सामग्री शामिल होती हैं, सिलिका रेत, सोडा ऐश (soda ash), चूना पत्थर और पुनर्नवीनीकरण कांच, जिसे क्यूलेट (Culet) भी कहा जाता है। कांच उत्पादन में मिश्रण में लगभग ७५% सिलिका रेतका भाग मिलाया जाता है। इन सभी कच्चे माल को भट्टी में स्थानांतरित करने से पहले अलग-अलग डिब्बों में रखा जाता है। प्रक्रिया के पहले चरण के दौरान, पिघले हुए कांच को फीडरों से भट्टी में, जो प्राकृतिक गैस या ईंधन तेल द्वारा संचालित होती है, डाला जाता है। यहां पिघले हुए कांच को १०००-१५०० डिग्री सेल्सियस (1000°C - 1500°C) के बीच के तापमान पर गर्म किया जाता है।
दूसरे चरण के दौरान पिघले हुए कांच को वांछित आकार दिया जाता है। इसके लिए मुख्य रूप से निर्माण प्रक्रियाएँ दो प्रकार की होती हैं, ब्लो और ब्लो (Blow and Blow) या प्रेस और ब्लो (Press and Blow) प्रक्रिया। प्रत्येक प्रक्रिया के लिए, मशीनरी में एक निश्चित मात्रा में पिघला हुआ कांच डाला जाता है, इसे "गोब" (Gob) कहा जाता है। उत्पादन की इस प्रक्रिया में मशीनों में सांचों के द्वारा कांच को वांछित आकार दिया जाता है। मशीनें एक खंड पर पंक्तिबद्ध होती हैं जहां गॉब वितरक गर्म कांच को सांचे में वितरित करने के लिए ढलान के साथ स्वचालित होता है। गोब वितरक में एक साथ एक से चार कंटेनर हो सकते हैं।
तीसरे चरण के दौरान कांच के अंदर के रासायनिक प्रतिरोध को बेहतर बनाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाए जाते हैं। यह आमतौर पर गैस मिश्रण के साथ फ्लोरीन (fluorine) या सल्फर (Sulphur) को इंजेक्ट करके किया जाता है। इसके बाद चौथे चरण में कांच को स्तरित किया जाता है। इस प्रक्रिया के अंत में, कांच अत्यधिक गर्म होता है और उसे ठंडा करने की आवश्यकता होती है। "लेहर" (Lehr) नामक एक प्रक्रिया के दौरान कांच को एनीलिंग ओवन का उपयोग करके ठंडा किया जाता है। गर्म होने पर कांच बहुत नाजुक होता है और असमान शीतलन से बचने के लिए इसे बहुत विशिष्ट तरीके से ठंडा करने की आवश्यकता होती है। एनीलिंग ओवन ५८० डिग्री सेल्सियस (580°C) पर शुरू होता है और फिर कम तापमान तक ठंडा होता जाता है, सबसे कम तापमान कांच की मोटाई पर निर्भर करता है। यह प्रक्रिया २० से ६,००० मिनट तक चल सकती है।
इस प्रक्रिया के अंत में प्रत्येक उत्पाद पर कार्बनिक या अकार्बनिक यौगिक का उपयोग करके टिन ऑक्साइड की एक पतली परत लगाई जाती है, जो कांच उत्पाद को मजबूत करती है। इसके बाद कांच पर पानी आधारित इमल्शन (emulsion) तकनीक के माध्यम से पॉलीथीन (Polyethylene) मोम की एक पतली परत लगाई जाती है। इस प्रक्रिया का उद्देश्य कांच को चिकना बनाना है, ताकि इसे खरोंच से बचाया जा सके और कंटेनरों को एक-दूसरे से चिपकने से रोका जा सके। उपचार के परिणाम से कांच की सतह लगभग खरोंच रहित हो जाती है। इस प्रक्रिया के बाद विकृत एवं अस्वीकृत उत्पादों को नष्ट कर दिया जाता है और कच्चे माल के डिब्बों में वापस कर दिया जाता है, उन्हें नया पिघला हुआ कांच बनाने के लिए "क्यूलेट" के रूप में पुनर्नवीनीकरण किया जाता है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/bdfeejw7
https://tinyurl.com/3re4smxp
https://tinyurl.com/2bjf6wk2
https://tinyurl.com/mryuncvu
चित्र संदर्भ
1. कांच के निर्माण को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. बाथ रूम में लगे शीशे को संदर्भित करता एक चित्रण (Pexels)
3. सोडा-लाइम कांच को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. सिलिका रेत को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. फ्लोट कांच के साथ काम करते रोबोट को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
6. ग्लास ब्लो को दर्शाता एक चित्रण (Wannapik)
7. कांच की बोतल तैयार होने की प्रक्रिया को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
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