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आर्कियन चट्टानें(Archean rocks), जिन्हें प्री-कैंब्रियन चट्टानें(Pre-Cambrian)भी कहा जाता है, पृथ्वी की सतह पर पाई जाने वाली सबसे पुरानी चट्टानें हैं। पृथ्वी के कुल भूवैज्ञानिक इतिहास का 86.7% कालखंड, आर्कियन काल में ही आता है, और इसलिए यह बहुत महत्वपूर्ण है। यह अवधि प्रथम प्रकाश संश्लेषण एवं जीवन समर्थन वातावरण के विकास का भी प्रतीक है।
इन चट्टानों में प्रचुर मात्रा में धातु और गैर-धातु खनिज जैसे लोहा, तांबा, मैंगनीज, बॉक्साइट, सीसा, जस्ता, सोना, चांदी, टिन, टंगस्टन, अभ्रक, एस्बेस्टस, ग्रेफाइट आदि मौजूद हैं। इस चट्टान प्रणाली को ‘धारवाड़ प्रणाली’ भी कहा जाता है, क्योंकि, इनका अध्ययन सबसे पहले कर्नाटक के धारवाड़ क्षेत्र में किया गया था। लेकिन वे अरावली, तमिलनाडु, छोटानागपुर पठार, मेघालय, दिल्ली और हिमालय क्षेत्र में भी पाए जाते हैं। इसके अलावा हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में भी हम सोनभद्र और ललितपुर में आर्कियन चट्टानें पा सकते हैं। तो आइए, आज हम आर्कियन चट्टानों और भारत की चट्टान प्रणाली के बारे में जानते हैं। तथा, उनके आर्थिक महत्व एवं उपयोग को भी समझें।
आर्कियन चट्टानें अधिकतर सैकड़ों से हजारों किलोमीटर के बड़े खंडों में पाई जाती हैं। चट्टानों के विनाश के विभिन्न चरणों में, आर्कियन चट्टानों के छोटे अवशेष कई युवा प्रोटेरोज़ोइक(Proterozoic) और फ़ैनरोज़ोइक ऑरोजेनिक(Phanerozoic orogenic)क्षेत्र में पाए जाते हैं। कुछ आर्कियन चट्टानें जो ग्रीनस्टोन-ग्रेनाइट बेल्ट(Greenstone-granite belt) में पाई जाती हैं, पृथ्वी की सतह पर या उसके निकट बनती हैं। और इस प्रकार, वे प्रारंभिक वायुमंडल, महासागरों और जीवन-रूपों के साक्ष्य को संरक्षित करती हैं। अन्य चट्टानें जो ग्रैनुलाइट–नाइस बेल्ट(Granulite-gneiss belt) में पाई जाती हैं, आर्कियन महाद्वीपों के निचले हिस्सों के खोदे गए अवशेष हैं। और इस प्रकार, वे उस समय चल रही गहन सतह प्रक्रियाओं के साक्ष्य संरक्षित करती हैं।
ग्रीनस्टोन-ग्रेनाइट बेल्ट में कई समुद्री लावा, द्वीपों के ज्वालामुखीय किनारे और समुद्री पठार हैं। इसलिए, उनमें आमतौर पर बेसाल्ट, एंडीसाइट्स(andesites), रयोलाइट्स(rhyolites), ग्रेनाइटिक प्लूटन(granitic plutons), ओशनिक चेर्ट्स(oceanic cherts) और अल्ट्रामैफिक कोमाटाइट्स(ultramafic komatiites) जैसे चट्टान प्रकार होते हैं।ये आग्नेय चट्टानें सोने, चांदी, क्रोमियम, निकल, तांबा और जस्ता जैसे आर्थिक खनिज भंडारों से पूर्ण हैं।
जबकि, ग्रैनुलाइट-नाइस बेल्ट में कई एंडियन-प्रकार(Andean-type) के सक्रिय महाद्वीपीय सीमा के साक्ष्य मिलते हैं। इसकी सामान्य चट्टानें टोनलाइट्स(tonalites) हैं। कुछ खनिज भंडार भी ग्रैनुलाइट-नाइस बेल्ट में पाए जाते हैं। हालांकि, उनमें अयस्क सांद्रता अपेक्षाकृत कम होती हैं।
इसी तरह, भारत के विविध भूभागों को सुशोभित करने वाली असंख्य चट्टान संरचनाओं में से हर एक, लाखों वर्षों में अवसादन, विवर्तनिक गतिविधि और चट्टानों के कायापलट की एक अनूठी कहानी कहती है।
उचित ज्ञान के लिए, भारत की चट्टान प्रणाली को निम्नलिखित श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
१.आर्कियन चट्टान प्रणाली:
आर्कियन चट्टान प्रणाली विशिष्ट विशेषताओं से युक्त है, और महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक और आर्थिक महत्व रखती है।
•निर्माण की अवधि: आर्कियन चट्टानें पृथ्वी की ऊपरी परत में पिघले हुए मैग्मा के ठंडा होने और जमने के दौरान, लगभग 4 अरब साल पहले बनी है।
•स्थान: आर्कियन चट्टानें भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पाई जाती हैं, जिनमें हिमालय, भारतीय प्रायद्वीप के मध्य और दक्षिणी भाग, उड़ीसा, मेघालय, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड का छोटानागपुर पठार जैसे राज्य, बुन्देलखण्ड क्षेत्र आदि शामिल हैं।
२.धारवाड़ चट्टान प्रणाली:
धारवाड़ प्रणाली, जिसका नाम कर्नाटक के धारवाड़ जिले के नाम पर रखा गया है, विशिष्ट विशेषताओं और आर्थिक महत्व के साथ एक महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक संरचना का प्रतिनिधित्व करती है।
•निर्माण की अवधि: धारवाड़ प्रणाली की चट्टानें तीन प्रमुख चक्रों में निर्मित हुईं है, जो लगभग 3,100 मिलियन वर्ष पूर्व से 1,000 मिलियन वर्ष पूर्व की अवधि तक फैले हुए थे। यह समय-सीमा उन्हें पृथ्वी पर सबसे पुरानी तलछटी चट्टान प्रणालियों में रखती है।
•स्थान: धारवाड़ प्रणाली मुख्य रूप से कर्नाटक के धारवाड़-बेल्लारी-मैसूर क्षेत्र, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, ओडिशा के क्षेत्रों और यहां तक कि हिमालय क्षेत्र के कुछ हिस्सों में भी पाई जाती है।
३.पुराण चट्टान प्रणाली:
पुराण चट्टानें प्रोटेरोज़ोइक काल के दौरान निर्मित हुई थी। विशेष रूप से भारतीय संदर्भ में, ये विशिष्ट विशेषताएं और आर्थिक महत्व रखती है।
•निर्माण की अवधि: पुराण चट्टानों का निर्माण प्रोटेरोज़ोइक काल के दौरान हुआ था, जो 1400 से 600 मिलियन वर्ष पहले तक फैला था। भारतीय संदर्भ में, उन्हें “प्रोटेरोज़ोइक” के बजाय “पुराण” शब्द का उपयोग करते हुए, पुराण चट्टान प्रणाली के रूप में जाना जाता है।
•स्थान: कडप्पा प्रणाली: मुख्य रूप से आंध्र प्रदेश के कडप्पा और कुरनूल जिलों में, और छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग और अरावली पर्वतमाला की मुख्य धुरी पर पाई जाती है।
विंध्य प्रणाली: बिहार में सासाराम और रोहतास से लेकर राजस्थान में चित्तौड़गढ़ तक फैली हुई है। यह छत्तीसगढ़, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश सहित अन्य क्षेत्रों में भी पाई जाती है।
४.द्रविड़ चट्टान प्रणाली:
पुरापाषाण युग से संबंधित द्रविड़ चट्टान प्रणाली, विशिष्ट विशेषताओं और महत्वपूर्ण भूवैज्ञानिक संरचनाओं को समाहित करती है।
•निर्माण की अवधि: द्रविड़ काल 600 से 300 मिलियन वर्ष पूर्व तक फैला है, जो पुरापाषाण युग का प्रतीक है। विशेष रूप से, इस अवधि में कोयले के निर्माण की शुरुआत देखी गई। हालांकि, भारत में ऐसे कोयले के प्रचुर भंडार प्रचलित नहीं हैं।
•स्थान: द्रविड़ चट्टानें मुख्य रूप से अतिरिक्त प्रायद्वीपीय क्षेत्र में पाई जाती हैं और प्रायद्वीपीय क्षेत्र में इनकी संख्या कम होती है। इसके अलावा, इन चट्टानों के प्रमुख क्षेत्रों में कश्मीर में अनंतनाग, हिमाचल प्रदेश में स्पीति, कांगड़ा और शिमला तथा कश्मीर में हंदवाड़ा, लिडर घाटी, कुमाऊं और गढ़वाल , और पीर पंजाल आदि क्षेत्र शामिल हैं।
५.आर्यन चट्टान प्रणाली: आर्यन चट्टान प्रणाली भारत के विभिन्न क्षेत्रों में फैले हुए, कार्बोनिफेरस काल(Carboniferous period) से लेकर हाल के समय तक विविध भूवैज्ञानिक संरचनाओं को शामिल करती है।
•गोंडवाना प्रणाली: पर्मियन काल(Permian period) लगभग 250 मिलियन वर्ष पूर्व।
•जुरासिक प्रणाली(Jurassic System): 201.3 मिलियन से 145 मिलियन वर्ष पूर्व।
•डेक्कन ट्रैप: क्रेटेशियस(Cretaceous) के अंत से इओसीन(Eocene) की शुरुआत तक परिवर्तन।
•तृतीयक प्रणाली: 60 से 7 मिलियन वर्ष पूर्व।
•शिवालिक प्रणाली: शिवालिक पहाड़ियों की विशेष चट्टानें।
•प्लेइस्टोसिन (Pleistocene) और हाल (चतुर्थक)
लगभग दस लाख वर्षों तक फैली संक्षिप्त अवधि के दौरान निर्मित चट्टानें।
यही चट्टानें हमारी अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। आइए जानते हैं।
निर्माण सामग्री और निर्माण:
ग्रेनाइट, संगमरमर और बलुआ पत्थर जैसी चट्टानों का उनके स्थायित्व, मजबूती और सौंदर्य के कारण निर्माण में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। दूसरी ओर, विभिन्न प्रकार की चट्टानों से प्राप्त कुचला हुआ पत्थर, बजरी और रेत, निर्माण उद्योग के लिए आवश्यक हैं।
खनिज एवं अयस्क:
विनिर्माण, इलेक्ट्रॉनिक्स और बुनियादी ढांचे में उपयोग की जाने वाली धातुओं के उत्पादन के लिए लौह अयस्क, बॉक्साइट (एल्यूमीनियम), तांबा अयस्क और सोना धारण करने वाली चट्टानें महत्वपूर्ण हैं।साथ ही, चट्टानों से जिप्सम(Gypsum) जैसे गैर-धातु खनिज निकलते हैं, जिनका उपयोग प्लास्टर और ड्राईवॉल(Drywall) में किया जाता है।साथ ही, चूना पत्थर, सीमेंट का एक प्रमुख घटक होता है।
ऊर्जा संसाधन:
कोयले जैसी तलछटी चट्टानें ऊर्जा का एक प्रमुख स्रोत हैं। चट्टानों के तलछटी स्तर तेल और प्राकृतिक गैस के प्राथमिक स्रोत हैं, जो वैश्विक ऊर्जा बाजार को चलाती हैं।
रत्न और आभूषण:
हीरे, माणिक, नीलम और पन्ना ऐसे रत्नों के कुछ उदाहरण हैं, जिनका उपयोग गहनों में किया जाता है।
पर्यावरणीय अनुप्रयोग:
चट्टानें पर्यावरण संरक्षण और प्रबंधन में भी भूमिका निभाती हैं। कुछ प्रकार की चट्टानों का उपयोग जल शोधन प्रक्रियाओं, मिट्टी अनुकूलन तथा कटाव नियंत्रण में बांधों के निर्माण के लिए एक सामग्री के रूप में किया जाता है।
पर्यटन और शिक्षा पर प्रभाव:
ग्रैंड कैन्यन(Grand Canyon), जायंट्स कॉज़वे(Giant’s Causeway) और उलुरु(Uluru) जैसी भूवैज्ञानिक संरचनाएं लाखों पर्यटकों को आकर्षित करती हैं, जो पर्यटन उद्योग में योगदान देती हैं। इसके अतिरिक्त, ये क्षेत्र शैक्षिक मूल्य प्रदान करते हैं, एवं भूविज्ञान और पर्यावरण जागरूकता को बढ़ावा देते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/4zc8zmfb
https://tinyurl.com/4rbhr4y4
https://tinyurl.com/yt79achm
चित्र संदर्भ
1. आर्कियन चट्टान की कलात्मक अभिव्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. विशाल आर्कियन चट्टान को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. आर्कियन चट्टान के टुकड़े को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. आर्कियन चट्टान प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. धारवाड़ क्रेटन के स्थान मानचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. कडप्पा प्रणाली को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. पहाड़ों में बह रही नदी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. शिवालिक रेंज को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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