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वन, जनजातीय समुदायों के लिए रोज़गार के व्यापक अवसर प्रदान करते हैं। आइए, आज असम के कुछ आदिवासी समुदाय में से एक, बोडो जनजाति पर नज़र डालकर, जनजातियों के लिए वनों के महत्त्व को समझते हैं। बोडो जनजाति, असम के सबसे बड़े देशज समुदायों में से एक है, जिसकी एक समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और एक विशिष्ट पहचान है। बोडो लोगों की अपनी भाषा, संस्कृति, परंपराएं और सामाजिक-राजनीतिक संगठन हैं। लेकिन कुछ ऐसे अधिकार हैं, जो सरकार द्वारा आदिवासी समुदायों को उनकी भूमि की रक्षा के लिए दिए गए हैं। भारत में अनुसूचित जनजातियों के लिए भूमि अधिकार उनके सामाजिक,-आर्थिक विकास और सांस्कृतिक विकास के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं।
ऐतिहासिक रूप से, अनुसूचित जनजाति समुदायों को उपनिवेशीकरण, विकास परियोजनाओं और अतिक्रमण जैसे विभिन्न कारकों के कारण भूमि अलगाव, विस्थापन और हाशिए पर जाने का सामना करना पड़ा है। इन मुद्दों के समाधान के लिए, कई कानूनी प्रावधान और सरकारी पहलें लागू की गई हैं। जनजातीय समुदायों के उत्थान के लिए भारत सरकार द्वारा की गई प्रमुख पहलों में से एक, ‘वन धन योजना’ है। आइए, इसके बारे में भी जानते हैं।
असम की बोडो जनजाति – असम में सबसे पहले बसने वाले; चावल की खेती करने वाले और रेशम के कीड़ों को पालने वाले पहले समुदाय माने जाते हैं। बोडो को ब्रह्मपुत्र नदी घाटी का सबसे बड़ा जातीय और भाषाई समूह माना जाता है, और वे असम के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में रहते हैं। “बोडो-कछारी कबीले” में बोडो सबसे बड़े हैं। ‘बोडो’ शब्द की उत्पत्ति ‘बोड’ शब्द से हुई है, जिसका अर्थ – तिब्बत है। बोडो लोग ‘तिब्बती-बर्मी भाषा’ या ‘बोडो भाषा’ बोलते हैं। बोडो लोगों की अपनी एक भाषा भी है, जिसे ‘देवदाही’ कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि, वे तिब्बत के माध्यम से ब्रह्मपुत्र घाटी तक पहुंचे और पूर्वी हिमालय श्रृंखला की तलहटी में बस गए, जिसमें पूरा असम, त्रिपुरा, उत्तरी बंगाल और बांग्लादेश के कुछ हिस्से शामिल हैं।
बोडो लोगों को अपनी विरासत और संस्कृति पर बहुत गर्व है। खेती के अलावा बुनाई बोडो संस्कृति का एक और अभिन्न अंग है। कई परिवार अपने स्वयं के रेशमकीट पालते हैं। बोडो लड़कियां छोटी उम्र से ही बुनाई करना सीख जाती हैं। जबकि, ये लोग बांस उत्पादों के विशेषज्ञ कारीगर भी हैं।
अधिकांश बोडो जनजातियों के लिए, चावल मुख्य भोजन है। इसके साथ ही, सूअर या मछली से बने व्यंजन भी उनके भोजन में शामिल होते हैं। बोडो लोग ‘ज़ू माई’ नामक पारंपरिक पेय के भी शौकीन हैं।
‘बाथो पूजा’ बोडो लोगों का एक महत्वपूर्ण धार्मिक त्योहार है। इस त्यौहार के गरजा, खेराई और मरई आदि विभिन्न रूप हैं। इनमें से खेराई बोडो लोगों का सबसे महत्वपूर्ण और प्रमुख त्योहार है।
“बागुरूम्बा” नृत्य और “देवधिनी” नृत्य बोडो के महत्वपूर्ण नृत्य हैं। बागुरुम्बा नृत्य को “तितली नृत्य” भी कहा जाता है, क्योंकि नर्तक तितलियों की तरह नृत्य करते हैं। देवधिनी शब्द संस्कृत शब्द “देव” से लिया गया है, जिसका अर्थ – भगवान या देवता है और “धनी” का अर्थ – ध्वनि है।
फिर भी, अनुसूचित जनजाति सबसे अधिक हाशिए पर तथा अलग-थलग और वंचित आबादी रही है। ऐसी जनजातियों के भूमि अधिकारों की रक्षा और सुरक्षा के लिए तथा आदिवासियों के भूमि अधिग्रहण और विस्थापन के मुद्दे को संबोधित करने के लिए, निम्नलिखित संवैधानिक और कानूनी प्रावधान किए गए हैं:
१.अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, की धारा 4 (5) में कहा गया है कि, वनों में रहने वाले अनुसूचित जनजाति या अन्य पारंपरिक वन निवासी के किसी भी सदस्य को बेदखल या हटाया नहीं जाएगा। मान्यता और सत्यापन प्रक्रिया पूरी होने तक वन भूमि उनके कब्जे में होती है। अधिनियम की धारा 5 के तहत, ग्राम सभा को सामुदायिक वन संसाधनों तक पहुंच को विनियमित करने और जंगली जानवरों, जंगल और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डालने वाली किसी भी गतिविधि को रोकने हेतु ग्राम सभा में लिए गए निर्णय का अनुपालन सुनिश्चित करने का अधिकार है।
२.सरकार ने भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजे व पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 अधिनियमित किया है। उक्त अधिनियम का उद्देश्य स्थानीय स्वशासन संस्थानों और संविधान के तहत स्थापित ग्राम सभाओं के परामर्श से भूमि अधिग्रहण के लिए एक मानवीय, सहभागी, सूचित और पारदर्शी प्रक्रिया सुनिश्चित करना है, जिससे भूमि के मालिकों को कम से कम परेशानी हो। साथ ही, ऐसे अन्य प्रभावित परिवारों और उन प्रभावित परिवारों को उचित मुआवजा प्रदान किया जाए, जिनकी भूमि अधिग्रहित की गई है, या अधिग्रहण के लिए प्रस्तावित है।
इसी अधिनियम की धारा 48 के तहत, पुनर्वास और पुनर्स्थापन के लिए एक राष्ट्रीय स्तर की निगरानी समिति का गठन किया गया है। विस्थापन के खिलाफ सुरक्षा उपायों के माध्यम से अधिनियम की धारा 41 और 42 के तहत अनुसूचित जाति और जनजातियों के लिए विशेष प्रावधान किए गए हैं, जो उनके हितों की रक्षा करते हैं। यह अधिनियम पुनर्वास की प्रक्रिया और तरीके भी निर्धारित करता है।
३.पंचायत (अनुसूचित क्षेत्र तक विस्तार) अधिनियम, 1996 में यह प्रावधान है कि, अनुसूचित क्षेत्रों या विकास परियोजनाओं में भूमि का अधिग्रहण करने से पहले और प्रभावित व्यक्तियों को बसाने या पुनर्वास करने से पहले उचित स्तर पर ग्राम सभा या पंचायतों से परामर्श किया जाएगा।
४. संविधान की अनुसूची-V के तहत आने वाले संवैधानिक प्रावधान भूमि अधिग्रहण आदि के कारण आदिवासी आबादी के विस्थापन के खिलाफ सुरक्षा उपाय भी प्रदान करते हैं। जिस राज्य में अनुसूचित क्षेत्र हैं, उस राज्य के राज्यपाल को आदिवासियों से भूमि के हस्तांतरण को प्रतिबंधित करने और ऐसे मामलों में अनुसूचित जनजातियों के सदस्यों को भूमि आवंटन को विनियमित करने का अधिकार है।
५.अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 को अनुसूचित जाति और जनजाति के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार के अपराधों को रोकने, ऐसे अपराधों की सुनवाई और राहत प्रदान करने के लिए पेश किया गया है। अनुसूचित जाति या जनजाति के सदस्यों को उनकी भूमि या परिसर से गलत तरीके से बेदखल करना; किसी भूमि या परिसर या पानी या सिंचाई सुविधाओं पर वन अधिकारों सहित उनके अधिकारों के आनंद में हस्तक्षेप करना; उनकी फसलों को नष्ट करना; वहां से उपज को छीन लेना आदि अपराध की श्रेणी में आते हैं, और उक्त अधिनियम के तहत दंड के अधीन हैं।
इसके अलावा, प्रधान मंत्री वन धन योजना या वन धन विकास योजना आदिवासी समुदायों की आजीविका में सुधार लाने के उद्देश्य से भारत सरकार के जनजातीय मामलों के मंत्रालय द्वारा शुरू की गई एक योजना है। यह योजना वन-आधारित उत्पादों के लिए मूल्य श्रृंखला विकसित करने और आदिवासी समुदायों को कौशल प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण प्रदान करके उनकी आय बढ़ाने पर केंद्रित है।
वन धन विकास योजना के तहत, आदिवासी समुदायों को क्लस्टर बनाने और उनके मूल्य को बढ़ाने के लिए वन उपज का प्रसंस्करण करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। इन समूहों को आवश्यक बुनियादी ढांचे, जैसे उपकरण, मूल्य संवर्धन और उद्यमिता में प्रशिक्षण प्रदान किया जाता है। यह योजना जनजातीय समुदायों को उनके उत्पादों के लिए ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म सहित विभिन्न चैनलों के माध्यम से बाज़ार संपर्क भी प्रदान करती है।
इस योजना में तीन स्तरीय कार्यान्वयन प्रक्रिया है, जिसमें ग्राम स्तर पर – वन धन विकास केंद्रों, क्लस्टर स्तर पर – वन धन विकास संरक्षण समितियों और ज़िला स्तर पर – वन धन विकास समूह का गठन शामिल है। इस योजना का लक्ष्य देश भर में 50,000 वन धन विकास केंद्र स्थापित करने का है, जिससे लगभग 10 लाख आदिवासी उद्यमियों को लाभ होगा।
वन धन विकास योजना में भारत में आदिवासी समुदायों को वैकल्पिक आजीविका के अवसर प्रदान करके, और उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार करके उनके जीवन को बदलने की क्षमता है। यह योजना न केवल उद्यमिता को बढ़ावा देती है, बल्कि, वनों के संरक्षण और जैव विविधता की सुरक्षा में भी मदद करती है।
संदर्भ
https://tinyurl.com/mr3fswx9
https://tinyurl.com/jmw6hpju
https://tinyurl.com/5x6mc89f
चित्र संदर्भ
1. बोडो जनजाति और ‘वन धन योजना’ के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia,x)
2. ‘वन धन योजना’ के लोगो को संदर्भित करता एक चित्रण (x)
3. मादक उत्पाद बनाती बोडो जनजाति की महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. बोडो जनजाति के एक पुरुष को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बोडो नृत्य करती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. बोडो जनजाति की बुनकर महिलाओं को दर्शाता चित्रण (wikimedia)
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