Post Viewership from Post Date to 15- Jun-2024 (31st Day) | ||||
---|---|---|---|---|
City Subscribers (FB+App) | Website (Direct+Google) | Total | ||
2261 | 117 | 2378 |
पोलियो एक वायरस के कारण होने वाली बीमारी है, जो मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी, या मस्तिष्क स्टेम (brain stem) की नसों को प्रभावित करती है। अपने सबसे गंभीर रूप में, पोलियो के कारण व्यक्ति अपने शरीर के कुछ अंगों को हिलाने में असमर्थ हो सकता है, जिसे पक्षाघात भी कहा जाता है। इसके कारण सांस लेने में परेशानी होती है, और कभी-कभी मौत भी हो सकती है। इस बीमारी को पोलियोमाइलाइटिस (Poliomyelitis) भी कहा जाता है। दुनिया भर में टीकाकरण के प्रयासों के कारण हाल के वर्षों में इसके मामले बहुत कम संख्या में सामने आए हैं। लेकिन उन क्षेत्रों में, जहां टीकाकरण की दर कम है, पोलियो वायरस के मामले अभी भी देखने को मिलते हैं। 'अमेरिकी रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र' (U.S. Centers for Disease Control and Prevention (CDC) द्वारा उन देशों की यात्रा सूचनाएं प्रकाशित की जाती हैं जहां पोलियो का खतरा अधिक है। आमतौर पर अफ्रीका, मध्य पूर्व और दक्षिणी और मध्य एशिया के कुछ देशों में पोलियो का खतरा अधिक है।
यद्यपि पोलियो का कारण बनने वाले वायरस 'पोलियोवायरस' से संक्रमित अधिकांश लोगों में तुरंत ही इसके लक्षण नहीं दिखते हैं, लेकिन तीव्रता के आधार पर व्यक्ति में इसके तीन रूप देखने को मिल सकते हैं:
वृद्धिरोधी पोलियो (Abortive Polio):
यह पोलियो का सबसे हल्के लक्षणों वाला रूप है। पोलियो वायरस से पीड़ित लगभग 5% लोगों में बीमारी का यह रूप देखने को मिलता है जिसे वृद्धिरोधी या एबॉर्टिव पोलियोमाइलाइटिस कहा जाता है। इसके लक्षण फ्लू जैसे होते हैं, जो 2 से 3 दिनों तक बने रहते हैं। इसके लक्षणों में शामिल हैं:
- बुखार
- सिरदर्द
- मांसपेशियों में दर्द
- गला खराब होना
- पेटदर्द
- भूख में कमी
- जी मिचलाना
- उल्टी करना
गैर-लकवाग्रस्त पोलियो (Nonparalytic Polio):
पोलियो से संक्रमित लगभग 1% लोगों में बीमारी का एक अधिक गंभीर रूप, जिसे गैर-लकवाग्रस्त, या नॉनपैरालिटिक पोलियो कहा जाता है, देखने को मिलता है। हालाँकि इसके लक्षण कुछ दिनों से अधिक समय तक रह सकते है, लेकिन इससे पक्षाघात नहीं होता है। गैर-लकवाग्रस्त पोलियो के लक्षणों में अधिक गंभीर फ्लू जैसे लक्षण होने के अलावा, निम्नलिखित लक्षण भी शामिल हो सकते हैं:
- गर्दन में दर्द या अकड़न
- हाथ या पैर में दर्द या अकड़न
- भयंकर सरदर्द
इस प्रकार के संक्रमण में आमतौर पर जब व्यक्ति को लगता है कि वह ठीक हो रहा है, तो इसी दौरान लक्षणों का एक दूसरा चरण भी शुरू हो सकता है। इन लक्षणों में शामिल हैं:
- रीढ़ और गर्दन में अकड़न
- सजगता में कमी
- मांसपेशियों में कमजोरी
लकवाग्रस्त पोलियो (Paralytic polio): पोलियो का यह सबसे गंभीर रूप है। हालांकि पोलियो के इस रूप के लक्षण नॉन पैरालिटिक पोलियो की तरह ही शुरू होते हैं लेकिन धीरे-धीरे इसके लक्षण और अधिक गंभीर होते जाते हैं, जिनमें शामिल हैं:
- तेज़ दर्द
- अत्यधिक स्पर्श संवेदनशीलता
- झुनझुनी या चुभन की अनुभूति
- मांसपेशियों में ऐंठन या मरोड़
मांसपेशियों की कमजोरी पैर के पक्षाघात में बदल जाती है। जोड़ों में पक्षाघात का अनुभव हो सकता है,। लेकिन इसमें एक पैर का पक्षाघात सबसे आम है, उसके बाद एक हाथ का पक्षाघात भी हो सकता है। रोग की गंभीरता के आधार पर, अन्य लक्षण भी शामिल हो सकते हैं, जैसे:
- सांस लेने में शामिल मांसपेशियों का पक्षाघात
- निगलने में कठिनाई
पोलियो, जैसा कि इसके नाम से ही पता चलता है, पोलियोवायरस के कारण होता है। यह वायरस मुख्य रूप से रीढ़ की हड्डी, और मस्तिष्क स्टेम में तंत्रिका कोशिकाओं को लक्षित करता है, जो मांसपेशियों की गति को नियंत्रित करने के के लिए जिम्मेदार हैं। संवेदना को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाएं आम- तौर पर प्रभावित नहीं होती हैं,। हालांकि अब प्राकृतिक रूप से पाए जाने वाला पोलियो वायरस, जिसे जंगली प्रकार का पोलियो वायरस (wild-type poliovirus) कहा जाता है, अधिकांश देशों में समाप्त हो गया है, और इसके केवल कुछ ही मामले सामने आते हैं। लेकिन अब वायरस का दूसरा संस्करण, जिसे वैक्सीन-व्युत्पन्न पोलियोवायरस (vaccine-derived poliovirus (VDPV) कहा जाता है, अधिक व्यापक है और अब दुनिया भर में अधिकांश संक्रमण के मामले इसी के कारण होते हैं। VDPV वायरस का एक नया संस्करण है, जो एक ऐसे समुदाय या क्षेत्र में विकसित होता है जहां पर्याप्त लोगों को टीका नहीं लगाया गया है।
पोलियो के संक्रमण को रोकने, एवं इसके उपचार के लिए जीवित-तनुकृत टीके (Live-attenuated vaccine) का उपयोग किया जाता है। जीवित-तनुकृत टीकों में बीमारी का कारण बनने वाले रोगाणु के तनुकृत (या क्षीण) रूप का उपयोग किया जाता है। ये टीके प्राकृतिक रोगाणु के संक्रमण के समान कार्य करते हैं, और इस प्रकार वे एक मजबूत और लंबे समय तक चलने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली स्थापित करते हैं। अधिकांश जीवित टीकों की केवल, 1 या 2 खुराक, रोगाणु और उससे होने वाली बीमारी के प्रति जीवन भर सुरक्षा प्रदान कर सकती है। लेकिन चूंकि इसमें वायरस का अत्यंत सूक्ष्म हिस्सा होता है, इसलिए कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोग, दीर्घकालिक स्वास्थ्य समस्याओं वाले लोग, या वे लोग जिनका अंग प्रत्यारोपण हुआ है उन्हें इसका टीका लेने से पहले अपने स्वास्थ्य देखभाल प्रदाता से परामर्श ले लेना चाहिए। इसके साथ ही इस टीके को ठंडा रखने की आवश्यकता होती है इसलिए रेफ्रिजरेटर तक पहुंच वाले देशों में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता है। पोलियो के अलावा इन टीकों का उपयोग निम्नलिखित बीमारियों की रोकथाम के लिए भी किया जाता है:
- खसरा (Measles), कण्ठमाला (mumps), रूबेला (rubella) (MMR संयुक्त टीका)
- रोटावायरस (Rotavirus)
- चेचक (Smallpox)
- छोटी माता (Chickenpox)
- पीला बुखार (Yellow fever): क्या आप जानते हैं कि पोलियो के लिए पहला सुरक्षित और प्रभावी टीका विकसित करने का श्रेय एक अमेरिकी चिकित्सक और चिकित्सा शोधकर्ता जोनास साल्क (Jonas Salk) को दिया जाता है। 1939 में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिसिन (New York University College of Medicine) से एम.डी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद साल्क ने थॉमस फ्रांसिस जूनियर (Thomas Francis, Jr.) के साथ काम किया, जो किल्ड-वायरस के प्रति प्रतिरक्षा अध्ययन कर रहे थे। 1942 में उन्होंने मिशिगन विश्वविद्यालय के ‘स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ’ में इन्फ्लूएंजा के खिलाफ टीकाकरण विकसित करने के लिए कार्य कर रहे वैज्ञानिकों के साथ कार्य करना शुरू कर दिया। 1947 में साल्क, ‘पिट्सबर्ग स्कूल ऑफ मेडिसिन विश्वविद्यालय’ (University of Pittsburgh School of Medicine) में जीवाणु विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर और वायरस अनुसंधान प्रयोगशाला के प्रमुख हो गए, जिसके बाद उन्होंने पोलियो पर शोध शुरू किया। 20वीं सदी के मध्य में हर साल सैकड़ों-हजारों बच्चे इस बीमारी की चपेट में आते थे। पोलियोवायरस के विभिन्न उपभेदों को वर्गीकृत करने के लिए, एक कार्यक्रम में अन्य विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिकों के साथ काम करते हुए, साल्क ने इसके तीन अलग-अलग उपभेदों की पहचान की। फिर उन्होंने प्रदर्शित किया, कि तीनों में से प्रत्येक का मृत वायरस, जिससे अब बीमारी दोबारा नहीं हो सकती है, बंदरों में एंटीबॉडी निर्माण को प्रेरित कर सकता है। यह शोध उन्होंने, सबसे पहले बंदरो पर किया| 1952 में उन्होंने अपने मृत वायरस के टीके का क्षेत्रीय परीक्षण किया, पहले उन बच्चों पर, जो पोलियो से उबर चुके थे, और फिर उन बच्चों पर , जिन्हें यह बीमारी नहीं थी। उनके यह दोनों परीक्षण सफल रहे क्योंकि बच्चों के शरीर में एंटीबॉडी का स्तर काफी बढ़ गया, और टीके से किसी भी बच्चे को पोलियो नहीं हुआ। उनके निष्कर्ष अगले वर्ष प्रकाशित भी हुए। 1954 में उनके साथी फ्रांसिस द्वारा एक बड़े पैमाने पर क्षेत्रीय परीक्षण किया गया, और पाया गया कि सुई द्वारा इंजेक्ट किया गया टीका, पोलियो की घटनाओं को सुरक्षित रूप से कम करता है। 12 अप्रैल, 1955 को यह टीका संयुक्त राज्य अमेरिका (United Stated of America) में उपयोग के लिए जारी किया गया था। बाद के वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका में पोलियो की घटनाएँ प्रति 100,000 लोगों में 18 मामलों से घटकर प्रति 100,000 लोगों में 2 से भी कम हो गईं। 1960 के दशक में एक दूसरे प्रकार का पोलियो वैक्सीन विकसित किया गया, जिसे ओरल पोलियोवायरस वैक्सीन (OPV) या साबिन वैक्सीन के नाम से जाना जाता है - जिसका नाम इसके आविष्कारक, अमेरिकी चिकित्सक और माइक्रोबायोलॉजिस्ट, अल्बर्ट साबिन के नाम पर रखा गया था। ओपीवी में जीवित क्षीण (कमजोर) वायरस होता है, और इसे मौखिक रूप से दिया जाता है।
हमारे देश भारत के मामले में यह अत्यंत प्रसन्नता एवं गर्व का विषय है, कि 27 मार्च 2014 को 'क्षेत्रीय पोलियो प्रमाणन आयोग' (Regional Polio Certification Commission) द्वारा भारत को पोलियो मुक्त प्रमाणित किया गया है। देश में वाइल्ड पोलियो वायरस का आखिरी मामला 13 जनवरी, 2011 को हावड़ा, पश्चिम बंगाल में सामने आया था और उसके बाद देश के किसी भी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में वाइल्ड पोलियो वायरस का कोई मामला सामने नहीं आया है। देश की पोलियो मुक्त स्थिति को बनाए रखने के लिए सरकार द्वारा निम्नलिखित उपाय किए जा रहे हैं: हर साल पोलियो अभियान चलाकर पोलियो के विरुद्ध जनसंख्या की प्रतिरोधक क्षमता बनाए रखी जा रही है। अतिरिक्त सुरक्षा के रूप में जनसंख्या की प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए देश भर में निष्क्रिय पोलियो वैक्सीन (IPV) भी पेश की गई है।
वायरस के आयात के जोखिम को कम करने के लिए भारत की अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर पूरे वर्ष निरंतर टीकाकरण किया जा रहा है।
पोलियो की संवेदनशीलता को मानव और पर्यावरण निगरानी में एक्यूट फ्लेसीड पैरालिसिस (Acute Flaccid Paralysis (AFP) निगरानी के माध्यम से बनाए रखा जाता है ताकि किसी भी पोलियो खतरे का जल्द से जल्द पता लगाया जा सके और परिसंचरण के जोखिम को कम करने के लिए तुरंत प्रतिक्रिया दी जा सके।
संदर्भ
https://shorturl.at/iNRS4
https://shorturl.at/aHIW7
https://shorturl.at/ayKOR
https://shorturl.at/dmvwT
चित्र संदर्भ
1. पोलियों की खुराक लेती एक छोटी बच्ची को संदर्भित करता एक चित्रण (Rawpixel)
2. पोलियो ग्रस्त व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (picryl)
3. कोलकाता में एक पोलियो ग्रस्त व्यक्ति को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. पोलियो की खुराक लेते बच्चे को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. बीच सड़क में पोलियो की खुराक लेते बच्चे को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
A. City Subscribers (FB + App) - This is the Total city-based unique subscribers from the Prarang Hindi FB page and the Prarang App who reached this specific post.
B. Website (Google + Direct) - This is the Total viewership of readers who reached this post directly through their browsers and via Google search.
C. Total Viewership — This is the Sum of all Subscribers (FB+App), Website (Google+Direct), Email, and Instagram who reached this Prarang post/page.
D. The Reach (Viewership) - The reach on the post is updated either on the 6th day from the day of posting or on the completion (Day 31 or 32) of one month from the day of posting.