आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है, रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा व्यक्त किये गए अनेकों विचार

विचार 2 दर्शनशास्त्र, गणित व दवा
09-05-2024 09:25 AM
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आधुनिक समय में भी प्रासंगिक है, रबिन्द्रनाथ टैगोर द्वारा व्यक्त किये गए अनेकों विचार

हम सभी जानते हैं कि नोबेल पुरस्कार विजेता रहे रबिन्द्रनाथ टैगोर न केवल एक प्रतिभाशाली लेखक थे, बल्कि एक गहन विचारक भी थे। वास्तव में टैगोर बहुमुखी प्रतिभा के धनी व्यक्ति थे। उन्होंने अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए अपनी कविताओं, गीतों, लघु कथाओं, उपन्यासों, नाटकों और यहां तक कि अपने चित्रों का भी भरपूर उपयोग किया। उन्होंने राष्ट्रवाद के बारे में बहुत कुछ लिखा और उनके विचार उस समय राष्ट्रवाद के बारे में आम धारणाओं से एकदम भिन्न थे। चलिए आज गुरु रबिन्द्रनाथ जयंती के दिन, राष्ट्रवाद के बारे में टैगोर के विचारों को समझने की कोशिश करें और उनके कुछ उद्धरणों पर नज़र डालें जो आज के भारत में भी प्रासंगिक हैं। साथ ही आज हम यह भी जानेंगे कि टैगोर ने नोबेल पुरस्कार के अलावा और कौन-कौन से पुरस्कार जीते थे? अगर आप गूगल पर या किसी किताब में 'राष्ट्रवाद' का अर्थ खोजेंगे तो आपको कई परिभाषाएँ मिलेंगी। लेकिन वास्तव में यह शब्द काफी पेचीदा है, क्योंकि कोई भी एक परिभाषा इसे पूरी तरह से समझा नहीं सकती है। अलग-अलग स्थितियों में इसका अलग-अलग मतलब हो सकता है। इसका एक रूप सामंतवाद (feudalism) हो सकता है, जिसके ख़ुद में ही कई रूप हैं। 'राष्ट्रवाद' का दूसरा रूप औपनिवेशिक शासन हो सकता है, जिसके भी कई प्रकार हैं। अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया में प्रचलित उपनिवेशीकरण की अवधारणा भारत या चीन की अवधारणा से भिन्न है। दरअसल कोई भी आज़ाद देश राष्ट्रवाद को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकता। आईये आगे इस लेख के माध्यम से समझते हैं।
रबिन्द्रनाथ टैगोर का जन्म और उनका पूरा जीवन एक अविभाजित भारत में बीता जो उस समय एक ब्रिटिश उपनिवेश था। जिसकी तुलना मोटे तौर पर आधुनिक दक्षिण एशियाई क्षेत्र से की जा सकती है। रबिन्द्रनाथ टैगोर जैसे-जैसे बड़े हो रहे थे, वैसे-वैसे उनके मन में भी अपने कई साथी भारतीयों की भाँति ब्रिटिश शासकों के लिए मिश्रित भावनाएँ पनप रही थीं। समय के साथ उन्हें ब्रिटिश सत्ता को करीब से देखने का मौका मिला। युवा अवस्था में वह अपने देश के प्रति वैसी ही प्रेम की अनुभूति करते थे, जैसी कि वह अपने परिवार के लिए करते थे। वह भारत के गौरवशाली अतीत से जुड़ी कविताएँ लिखते थे। साथ ही कांग्रेस की बैठकों में 'बंदे मातरम' गाने के अलावा, बाद में 1905 में ब्रिटिश फैसलों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भी उनकी सक्रिय भागीदारी रही। बंगाल के पहले विभाजन के विरोध के दौरान वह सड़कों पर भी उतरे थे। 1880 के दशक के अंत तक, वह एक आरामदायक जीवन जी रहे थे, रोमांटिक कविताएँ लिख रहे थे, गाने लिख रहे थे, और गंभीर तथा आनंददायक दोनों प्रकार के नाटकों का निर्माण और मंचन कर रहे थे।
लेकिन उनकी इस कहानी का एक दूसरा पहलू भी है। उन्हें यह भी पता था कि उनके देश और बाकी दुनिया में क्या हो रहा है। 1881 में, उन्होंने 'चाइना मारनेर ब्याबोसे (चीन में मौत का व्यापार) नामक एक बंगाली लेख प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने चीन में ब्रिटिशों के दुष्कर्मों के बारे में लिखा, जिसमें चीनी लोगों को उनकी इच्छा के विरुद्ध अफ़ीम का उत्पादन और उपभोग करने के लिए मजबूर किया गया था। इसके अलावा उन्होंने भारत की बिगड़ती हालत के प्रति लोगों की उदासीनता पर दुख व्यक्त करते हुए कुछ देशभक्ति गीत भी लिखे।
उन्नीसवीं सदी के मध्य में, बंगाल देशभक्ति की भावना से भर गया था। देशभक्ति की यह भावना साहित्य और रंगमंच के माध्यम से फैल रही थी। दुर्भाग्य से, इससे सांप्रदायिक तनाव भी पैदा हुआ। ऐसा संभवतः कर्नल जेम्स टॉड (Colonel James Tod) की एनल्स एंड एंटीक्विटीज़ ऑफ राजस्थान "Annals and Antiquities of Rajasthan" (खंड 1, 1829) नामक पुस्तक के कारण भी हुआ होगा, जिसका उस समय के शिक्षित बंगाली हिंदुओं पर बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा था। रंगलाल बंद्योपाध्याय (1827-1887), बंकिम चंद्र चटर्जी (1838-1894) और ज्योतिरींद्रनाथ टैगोर (1849-1925) जैसे लोगों की कृतियाँ, विशेष रूप से देशभक्तिपूर्ण थे। उनमें से अधिकांश ने अतीत के मुस्लिम शासकों को भारत की स्वतंत्रता के दुश्मन के रूप में चित्रित किया। विडम्बना यह थी कि उस दौरान भारत पर अंग्रेजों का शासन था। 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना हुई थी। तब तक, रबिन्द्रनाथ टैगोर राजनीतिक रूप से सक्रीय नहीं थे। उन्होंने गीत और कविताएँ लिखकर सामाजिक आंदोलनों में योगदान दिया। हालाँकि, जब वह अपने परिवार की बड़ी संपत्ति का प्रबंधन करने के लिए मध्य-बंगाल चले गए, तो अपने देश और यहाँ के लोगों के प्रति उनका दृष्टिकोण काफी बदल गया। उन्होंने महसूस किया कि कांग्रेस की महत्वाकांक्षाएं आम लोगों की इच्छाओं को प्रतिबिंबित नहीं करतीं।
टैगोर ने एक जापानी देशभक्त योशिदो तोराजिरो (Yoshido Torajiro) से एक देश और उसके आम लोगों के बीच संबंध के बारे में सीखा। दरअसल पहली बार उन्होंने रॉबर्ट लुई स्टीवेन्सन (Robert Louis Stevenson) की एक किताब में टोराजिरो के जीवन के बारे में पढ़ा। 1905 में एक व्याख्यान में टैगोर ने बताया था कि टोराजिरो ने कैसे तीन साल तक आम लोगों के साथ रहकर उन्हें समझने के बाद अपना जीवन अपने देश को समर्पित कर दिया। उन्होंने अपना जीवन वंचितों के लिए समर्पित करने का निर्णय लिया। हालाँकि ऐसा करने के लिए उन्हें सामंती शासकों द्वारा फाँसी पर लटका दिया गया।
लेकिन टैगोर को टोराजिरो की भाँति पूरे देश की यात्रा नहीं करनी पड़ी, किंतु पूर्वी बंगाल में बिताये समय के दौरान उन्होंने वास्तविक भारत को गहराई से समझा। उन्होंने अपने आस पास रहने वाले वंचित और उत्पीड़ित लोगों की स्थिति देखी। उन्होंने इन लोगों के उत्थान के लिए कई प्रयास किये। राष्ट्र के प्रति टैगोर का दृष्टिकोण उनके लेखन में भी झलकता है। उन्होंने भारत माता की कल्पना हिमालय की चोटी पर वीणा बजाती एक दिव्य आकृति के रूप में नहीं की थी। इसके बजाय, उन्होंने भारत माता को एक गाँव की एक आम महिला के रूप में देखा, जो गरीबी और बीमारी से जूझ रही थी, अपने बेटे के लिए बेहतर भविष्य सुरक्षित करने के लिए उसे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ाने की कोशिश कर रही थी।
टैगोर का राष्ट्रवाद समावेशी था। यानी उन्हें किसी विशेष धर्म की परवाह नहीं थी, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान। वह सांप्रदायिक विभाजन से दुखी थे और अक्सर सामाजिक मुद्दों के प्रति असंवेदनशीलता के लिए हिंदुओं की भी आलोचना करते थे। उनका ध्यान सांप्रदायिक पहचान के बजाय वंचितों पर अधिक था। उनकी कविता 'भारत-तीर्थ' और 'जन-गण-मन' गीत इस सच्चाई को दर्शाते हैं।
राष्ट्र के बारे में टैगोर का विचार केवल यहाँ की भूमि या उसकी प्राकृतिक सुंदरता तक ही सीमित नहीं था। उनके लिए राष्ट्र का मूल आधार और अर्थ यहाँ के लोग होते है।
टैगोर के राष्ट्रवाद का विचार देश की सीमाओं से भी परे था। दुनिया में जो कुछ भी हो रहा था, उससे वह जुड़े रहे। नैबेद्य (1901) में उनकी कुछ कविताओं ने हमें साम्राज्यवाद के खतरों के बारे में आगाह किया। टैगोर अनावश्यक विषयों से बचने का प्रयास करते थे। उन्होंने कहा कि इस देश में जन्म लेना उनका सौभाग्य है और उन्हें अपना स्वर्णिम बंगाल बहुत पसंद है। उन्होंने कहा कि वह अपने देश की मिट्टी के आगे शीश झुकायेंगे, वह मिट्टी जो उनके लिए धरती मां की साड़ी के आंचल के समान है। टैगोर के दर्शन को आप उनके द्वारा दिए गए कुछ उद्धरणों से बेहतर समझ सकते हैं:
1. "हमें यह हमेशा याद रखना चाहिए कि जिन लोगों ने राजनीतिक स्वतंत्रता प्राप्त कर ली है, जरूरी नहीं है कि वे पूरी तरह से स्वतंत्र हैं, वे केवल शक्तिशाली हैं। टैगोर ने हमें चेतावनी दी कि “नैतिक और आध्यात्मिक स्वतंत्रता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता खतरनाक हो सकती है।”
2. "भारत में हमारी असली समस्या राजनीतिक नहीं, सामाजिक है।": टैगोर का मानना था कि भारत में मुख्य मुद्दा राजनीतिक नहीं, बल्कि सामाजिक है। उन्होंने अनुभव किया कि राजनीतिक एकता की आड़ में पश्चिमी आदर्शों की नकल की जा रही थी। उन्होंने भारत की अनूठी सामाजिक जटिलताओं को समझे बिना पश्चिमी राजनीतिक प्रथाओं का अंधानुकरण करने को बेहद खतरनाक बताया। उनके मुताबिक असली मुद्दा सामाजिक एकता का है, जिसे हासिल करने के लिए भारत आज भी संघर्ष कर रहा है।
3. टैगोर ने वर्तमान युग में वैश्विक एकता और सहयोग की आवश्यकता पर प्रकाश डाला, क्यों कि आज दुनिया भर की विभिन्न नस्लें और लोगों के समूह एक साथ करीब आ गए हैं। उनका मानना था कि मानवता के पास दो विकल्प हैं -
१. प्रतिस्पर्धा करना
२. सहयोग करना।
उन्होंने भविष्यवाणी की कि जो लोग लगातार दूसरों के प्रति असहिष्णुता दिखाते हैं, उन्हें अंततः शारीरिक रूप से नहीं बल्कि सामाजिक और नैतिक रूप से समाप्त कर दिया जाएगा।
4. "हमें, भारत में, अपना ख़ुद का विचार या मत विकसित करना चाहिए। हम दूसरे लोगों का इतिहास उधार नहीं ले सकते, और यदि हम अपने इतिहास को दबाते हैं, तो हम आत्महत्या कर रहे हैं।" टैगोर ने भारतीय संस्कृति और इतिहास के संदर्भ पर विचार किए बिना पश्चिमी आदर्शों और मूल्यों को अपनाने की कोशिश के खतरों के प्रति आगाह किया। उनका मानना था कि भारत को अपनी परंपराओं और मूल्यों के आधार पर प्रगति के लिए अपना अनूठा मार्ग विकसित करने की आवश्यकता है। उन्होंने यह दिखाने के लिए जापान का उदाहरण लिया कि कैसे पश्चिमी तरीकों को अपनाने के बजाय पश्चिमी संस्कृति को केवल सतही तौर पर अपनाया जा सकता है। उनका मानना था कि पश्चिमी प्रभाव के प्रति संवेदनशील होने से बचने के लिए भारत को अपनी विशिष्ट पहचान विकसित करनी चाहिए।
5. टैगोर ने हमारे देश के भीतर गहरी जड़ें जमा कर चुके सामाजिक विभाजन को संबोधित करने में विफल रहने के लिए भारतीय राष्ट्रवादी आंदोलन और उसके नेताओं की आलोचना की। उन्होंने स्विट्जरलैंड के साथ एक सशक्त सादृश्य प्रस्तुत किया, जहां विभिन्न नस्लों के लोग स्वतंत्र रूप से मिल-जुल सकते थे और विवाह कर सकते थे।उन्होंने चेतावनी दी कि ये सामाजिक बाधाएँ भारत की राजनीतिक एकता की राह में बाधा बनेंगी। उन्होंने सवाल किया कि क्या स्वतंत्रता की मात्र अवधारणा के लिए हमारे नैतिक मूल्यों का बलिदान देना उचित है? अपने विचारों, रचनाओं और सामाजिक हितों में किये गए कार्यों के बल पर बंगाली बहुश्रुत रबिन्द्रनाथ टैगोर को कई पुरस्कार और मान्यताएँ प्राप्त हुई हैं। इनमें शामिल है:
नोबेल पुरस्कार: रबिन्द्रनाथ टैगोर को उनके संग्रह ‘गीतांजलि’ के लिए 1913 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। नाइटहुड: टैगोर को 1915 में नाइटहुड (Knighthood) की उपाधि दी गई थी, लेकिन 1919 में जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में उन्होंने यह उपाधि वापस कर दी।
साहित्य में डॉक्टरेट की उपाधि: ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय (Oxford University) ने एक विशेष समारोह में टैगोर को यह उपाधि प्रदान की रबिन्द्रनाथ टैगोर के नाम दिये जाने वाले कुछ प्रमुख पुरस्कारों की सूची:
- रवीन्द्र (रबिन्द्र) पुरस्कार
- टैगोर रत्न और टैगोर पुरस्कार
- रबिन्द्रनाथ टैगोर साहित्यिक पुरस्कार
- टैगोर पुरस्कार
रबिन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर रखे गए संग्रहालयों की सूची
भारत में:
- रवीन्द्र भारती संग्रहालय, कोलकाता, पश्चिम बंगाल
- रवीन्द्र भवन संग्रहालय, शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल
- रबिन्द्रनाथ टैगोर मेमोरियल संग्रहालय, कलिम्पोंग, पश्चिम बंगाल
बांग्लादेश में:
- रवीन्द्र मेमोरियल संग्रहालय, शहजादपुर, बांग्लादेश
- पतिसार रवीन्द्र कचारीबारी, नौगांव, बांग्लादेश
- रूपशा, बांग्लादेश में पिथावोगे रवीन्द्र मेमोरियल कॉम्प्लेक्स
- खुलना, बांग्लादेश में रवीन्द्र कॉम्प्लेक्स
रबिन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर रखे गए स्थानों की सूची:
- रवीन्द्र सरोबर: कोलकाता
- टैगोर हिल: रांची
- टैगोर गार्डन: दिल्ली
- टैगोर टाउन:प्रयागराज
- आरटी नगर: बेंगलुरु
- ठाकुरोवा पार्क: प्राग, चेक गढ़राज्य
- रेहोव टैगोर: इज़राइल


संदर्भ
https://tinyurl.com/yartdh7j
https://tinyurl.com/3k2a7xjb
https://tinyurl.com/hvrx9z5d

चित्र संदर्भ
1. रबिन्द्रनाथ टैगोर और गांधीजी को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
2. राष्ट्रवाद को दर्शाता एक चित्रण (प्रारंग चित्र संग्रह)
3. बचपन से रबिन्द्रनाथ टैगोर की तस्वीरों को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
4. पठन कार्य करते रबिन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. रबिन्द्रनाथ टैगोर के रेखाचित्र को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. गंभीर मुद्रा में रबिन्द्रनाथ टैगोर को दर्शाता एक चित्रण (GetArchive)
7. रबिन्द्रनाथ टैगोर के मुखमंडल को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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