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आज सोशल मीडिया का ज़माना है, और ऐसे समय में हम सभी के लिए “छपरी” और “भंगी” जैसे जातिसूचक शब्द या टिप्पणियाँ सुनना बहुत आम हो गया है। लेकिन जो लोग इन शब्दों का उपयोग करते हैं, वे वास्तव में इन शब्दों के अर्थ और हमारे प्रारंभिक भारत में इसके इतिहास और योगदान से अनजान हैं। तो चलिए आज इन शब्दों की मूल उत्पत्ति का पता लगाने की कोशिश करते हैं। साथ ही हम प्रारंभिक भारत में इनकी भूमिकाओं को समझने की भी कोशिश करेंगे और यह भी जानेगे कि आधुनिक समय में ये शब्द इतने अधिक आक्रामक क्यों हो गए हैं?
इंस्टाग्राम (Instagram) पर स्क्रॉल (Scrolling) करते समय, आपको भी (“अरे भंगी” या "क्या छपरी दिख रहा है ये?") जैसे वाक्यों का सामना ज़रूर करना पड़ा होगा। इन वाक्यों का उपयोग, आमतौर पर किसी को अपमानित करने के लिए किया जाता है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि “इन शब्द को इतनी लापरवाही से आखिर क्यों उछाला जाता है, और इनका वास्तविक अर्थ क्या होता है?
आज का हमारा पहला शब्द "छपरी", छप्परबंद नामक एक जाति को संदर्भित करता है। इस जाति के लोग पारंपरिक रूप से अस्थायी छतों और झोपड़ियों की मरम्मत का काम किया करते थे। माना जाता है कि छप्परबंद जाति की उत्पत्ति पंजाब क्षेत्र से हुई थी। उन्होंने दक्कन क्षेत्र में मुगल आक्रमण (लगभग 1677-88) के दौरान झोपड़ियाँ बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
जब 1720 में बीजापुर मराठा शासन के अधीन आया, तो छप्परबंद उनकी सेना में शामिल हो गए और 1818 में ब्रिटिश उपनिवेश बनने तक उनकी सेवा करते रहे।
हालांकि ब्रिटिश शासन के दौरान काम की कमी के कारण कुछ छप्परबंद लोग अपने मूल स्थान पर लौट आए। लेकिन इनमे से कई लोगों ने नया पेशा (नकली सिक्के बनाना (जिसे "छपना" कहा जाता है) भी अपना लिया। दुर्भाग्य से, अंग्रेजों ने उन्हें "जन्मजात अपराधी" करार दिया और उन्हें कंटीली तारों वाली बस्तियों तक ही सीमित कर दिया।
भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद, छप्परबंद लोग, मुख्य रूप से सोलापुर और पुणे तथा कर्नाटक और महाराष्ट्र के अंदरूनी इलाकों में बस गए। गुजरते समय के साथ, "छपरी' एक अपमानजनक शब्द के रूप में विकसित हो गया है, जिसका उपयोग किसी को यह कहकर अपमानित करने के लिए किया जाता है कि “उसमें गुणों और मानकों की कमी है।” 2021 के आसपास इस शब्द की लोकप्रियता में भारी वृद्धि हुई।
वास्तव में इस शब्द के उपयोग में वृद्धि का श्रेय आंशिक रूप से प्रभावशाली यूट्यूबर (Youtuber) कैरी मिनाटी (Carryminati) को दिया जा सकता है, जिन्होंने अपने वायरल वीडियो (Viral Video) 'थारा भाई' में कई बार 'छपरी' नामक शब्द का इस्तेमाल किया था। इस विडियो को 65 मिलियन से अधिक बार देखा गया है।
हालांकि आज यह शब्द एक अपमानजनक लेबल (Derogatory Label) बन गया है, जो निम्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के किसी व्यक्ति की अविकसित फैशन समझ के साथ दर्शाता है। इंटरनेट ने भी इस स्टीरियोटाइप (Stereotype) का ख़ूब विस्तार किया है। आपको ऑनलाइन 'छपरी स्टार्टर पैक (Chhapri Starter Pack)' जैसे मीम (Memes) अक्सर दिखाई दे जायेंगे, जिनमें स्किनी ब्लीच जींस (Skinny Bleach Jeans), रंगीन बाल (Bleached Hair), नकली ब्रांड के कपड़े और एक नीयन हरी केटीएम बाइक (Neon Green KTM Bike) में सवार एक लड़के को दिखाया जाता है।
हालांकि गहरे अर्थों में क्या आप कल्पना कर सकते हैं कि जिन लोगों को 'छपरी' के रूप में लेबल किया गया है, वे इसके अपमानजनक निहितार्थों से अवगत हैं?
छपरी के अलावा "भंगी" भी एक ऐसा शब्द है, जिसका प्रयोग सोशल मीडिया पर किसी को अपमानित करने के लिए अक्सर किया जाता है। लेकिन वास्तव में भंगी, एक ऐसा शब्द है जो भंगी जाति के सदस्य को संदर्भित कर सकता है, जिन्हें ऐतिहासिक रूप से उत्पीड़ित किया गया है और पारंपरिक रूप से शौचालयों की सफाई, हाथ से मैला ढोने और झाड़ू-पोछा करने तक ही सीमित रखा गया है।
भंगी उपनाम, अरोड़ा-खत्री नामक एक समुदाय से जुड़ा है। “भंगियों की वंशावली सूर्यवंशी राजवंश और भगवान राम से मिलती है, इसलिए उन्हें क्षत्रिय के रूप में मान्यता दी जाती है”। भंगी मुख्यतः दोहरे विश्वास वाले हिंदू होते हैं, जो हिंदू और सिख दोनों धर्मों का पालन करते हैं। ये वे अच्छी तरह से शिक्षित हैं, समृद्ध हैं और भारत और विश्व स्तर पर एक महत्वपूर्ण समुदाय के रूप में पहचाने जाते हैं।
14 अगस्त, 1947 में भारत का विभाजन, भंगियों सहित अरोड़ा, खत्री और सिखों के लिए एक उथल-पुथल भरा साबित हुआ। इस अवधि में अरोड़ा, खत्री और सिखों को रातों-रात अपनी जमीन, संपत्ति और प्रियजनों को पीछे छोड़ना पड़ा।
भारत विभाजन की भयावहता बहुत भीषण थी। अरोड़ा, खत्री और सिखों के घरों पर मुस्लिम प्रवासियों ने कब्ज़ा कर लिया और महिलाओं पर अत्याचार किए गए। इन घटनाओं के बाद उनका जीवन चुनौतीपूर्ण हो गया था। हालाँकि, गुजरते समय के साथ उन्होंने लचीलापन दिखाया, किसी भी काम को अपने से कमतर नहीं समझा और दुनिया में भारत का दर्जा ऊंचा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
आज, भंगी भारत के सभी हिस्सों में रहते हैं, जिनमें अधिकांश पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश में रहते हैं। अपने आधुनिक दृष्टिकोण के बावजूद, भंगी अपनी परंपराओं और मूल्यों से गहराई से जुड़े हुए रहते हैं। वे अपनी भारतीय विरासत पर गर्व करते हैं। भंगियों ने प्रौद्योगिकी, चिकित्सा, वित्त, व्यवसाय, इंजीनियरिंग, शिक्षा, निर्माण, मनोरंजन और सशस्त्र बलों जैसे विभिन्न क्षेत्रों में भी सफलता हासिल की है।
भंगी अन्य जातियों के प्रति भी सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं। भंगी उदार और मौज-मस्ती पसंद लोग होते हैं और दुनिया भर में जहां भी जाते हैं, वहां अपनी अमिट छाप छोड़ देते हैं।
आज सोशल मीडिया के ज़माने में हम सभी के लिए यह पहचानना बहुत आवश्यक हो गया है, कि हम जिस भाषा का उपयोग करते हैं, उसके जातिगत पूर्वाग्रह बहुत गहरे हो सकते हैं। कई बार किसी की शक्ल-सूरत या साफ़-सफ़ाई का वर्णन करते समय हम जिन शब्दों को चुनते हैं वह, जातिवाद के इतिहास से प्रभावित होते है। छोटी उम्र में सीखे गए ये शब्द नकारात्मकता को दर्शाते हैं और 'अगली' पीढ़ी भी पारित हो सकते हैं। इसलिए इन शब्दों के बारे में बातचीत करना, उनकी मूल उत्पत्ति की पहचान करना और उनसे जुड़े मुद्दों को संबोधित करना बहुत ज़रूरी है। ये शब्द महज भाषा से कहीं अधिक हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3tmjvsv7
https://tinyurl.com/3zsb3dye
https://tinyurl.com/3bykt7ce
चित्र संदर्भ
1. भारत के जूता निर्माताओं को संदर्भित करता एक चित्रण (getarchive)
2. छपरी कहे जा रहे युवाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
3. एक झोपड़ी के बाहर खड़े व्यक्ति को दर्शाता एक चित्रण (Look and Learn)
4. अपमान को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. में भंगी हूँ नामक एक पुस्तक को दर्शाता एक चित्रण (Round Table India)
6. भारत के विभाजन के दृश्य को दर्शाता एक चित्रण (picryl)
7. एक दुखी भारतीय लड़के को दर्शाता एक चित्रण (PixaHive)
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