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जौनपुर की गलियों और सड़कों से होकर गुजरते हुए, टेम्पों और ई-रिक्शा में जोर-जोर से बजते हुए भोजपुरी गाने आपने भी जरूर सुने होंगे। इससे जौनपुर में भोजपुरी भाषा की व्यापकता का भी पता चलता है। क्या आप जानते हैं कि जौनपुर में रहने वाले हर तीन लोगों में से एक व्यक्ति की मातृभाषा भोजपुरी है। इसके चलते यहां पर भोजपुरी लोकनृत्य भी बड़े पैमाने पर पसंद और प्रदर्शित किया जाता है। आज हम अपने राज्य के कुछ ऐसे ही प्रसिद्ध लोक नृत्यों और इनकी विशेषताओं के बारे में जानेंगे। इसके अलावा आज हम कुछ ऐसे लोक नृत्यों के बारे में भी जानेगे जो दुर्भाग्य से हमारे देश से लुप्त होने की कगार पर खड़े हैं।
ऐतिहासिक रूप से उत्तर प्रदेश एक समृद्ध एवं विविध संस्कृति वाला राज्य रहा है। इतिहास में इस राज्य में कई अलग-अलग शासकों ने शासन किया है, जिन्होंने इसके संगीत और नृत्य को आकार देने में बड़ी भूमिका निभाई है।
उत्तर प्रदेश में दो मुख्य प्रकार के नृत्य प्रचलित हैं:
1. शास्त्रीय नृत्य: उत्तर प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य “कथक” है, जिसकी शुरुआत सम्राटों और नवाबों के शाही दरबार में हुई, लेकिन बाद में यह आम लोगों के बीच भी लोकप्रिय हो गया। उत्तर प्रदेश ने दुनिया को कुछ बेहतरीन कथक नर्तक भी दिए हैं।
2. लोक नृत्य: उत्तर प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्यों में रास-लीला और चरकुला शामिल हैं, जो भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं पर आधारित हैं। रास-लीला एक प्रेम प्रसंगयुक्त अथवा रोमांटिक नृत्य है, जिसमें श्री कृष्ण और राधा के बीच के प्रेम को प्रदर्शित किया जाता है, जबकि चरकुला नृत्य में राधा के जन्म का जश्न मनाया जाता है। चरकुला का प्रदर्शन विशेष अवसरों पर किया जाता है।
इन दोनों के अलावा एक अन्य लोक नृत्य “करमा” भी खूब लोकप्रिय है, जिसे आदिवासी लोगों द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। यह बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बहुत आम है। इसमें अक्सर स्थानीय देवी-देवताओं का आह्वान किया जाता है। इसका प्रदर्शन छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, गोंडवाना और झारखंड जैसे अन्य आदिवासी क्षेत्रों में भी किया जाता है।
इसके अलावा उत्तर प्रदेश और उत्तरी बिहार में “दादरा” नामक एक अन्य नृत्य बहुत लोकप्रिय है। यह आमतौर पर एक कामुक नृत्य है जो शादी और संभोग की खुशी को व्यक्त करता है। नृत्य के दौरान गायक गीत गाते हैं जबकि नर्तक मंच पर उनका अभिनय करते हैं। दादरा एक मनोरंजक और जीवंत नृत्य है।
उक्त सभी नृत्यों के अलावा "कजरी नृत्य" उत्तर प्रदेश के सबसे प्रसिद्ध लोक नृत्यों में से एक है। इसका प्रदर्शन बरसात के मौसम का स्वागत करने और अपनी प्रसन्नता की अभिव्यक्ति करने के लिए किया जाता है। कजरी नृत्य की शुरुआत मिर्ज़ापुर में हुई, जिसकी प्रेरणा “कजली” नाम की राजकुमारी की कहानी से ली गई है। कजली अपने पति से बहुत प्यार करती थी, लेकिन दुर्भाग्य से कभी उससे मिल नहीं पाई। वह हर बरसात में उसका इंतजार करती थी, लेकिन वह कभी नहीं आया। वह इतना रोई कि उसके आंसू ही "कजरी गीत" बन गए। इन गीतों के रूप में वह आज भी जिंदा हैं।
कजरी नृत्य दो प्रकार का होता है। पहले नृत्य का प्रदर्शन मंच पर किया जाता है और दूसरे नृत्य का प्रदर्शन बारिश से पहले दिन की शाम को महिलाओं द्वारा किया जाता है। दूसरे प्रकार के नृत्य को 'धुनमुनिया कजरी' कहा जाता है। इस दौरान महिलाएं सुंदर गीत गाती हैं जिन्हें 'झूला गीत' कहा जाता है। यह एक प्रकार का अर्ध-शास्त्रीय संगीत है। उत्तर प्रदेश में गर्मियों के दौरान बहुत अधिक गर्मी पड़ती है, इसलिए जब काले बारिश वाले बादल घिरते हैं, तो लोग ख़ुशी से झूम उठते हैं। बादल अपने साथ बारिश और ठंडक लेकर आते हैं। इसलिए महिलाएँ गीत गाकर और बगीचों में झूला झूलकर जश्न मनाती हैं।
प्रसिद्ध चित्रकार, जल रंगकर्मी और सिविल सेवक रहे चार्ल्स डोयले (Charles Doyle) ने लखनऊ की एक नर्तकी महिला का वर्णन करते हुए कहा है कि “उनकी नृत्य मुद्राएँ और गतिविधियां अच्छी तरह से निष्पादित और प्रकृति में सुंदर हैं। यद्यपि उनके चरणों में विविधता का अभाव है फिर भी जटिल पैरों की गतिविधियों को उल्लेखनीय रूप से पूरा किया जाता है।”
इस नृत्य के नर्तक आमतौर पर एक तंग फिटिंग और छोटी लंबाई का ब्लाउज (blouse) पहनते हैं, जिसे चोली कहा जाता है और इसे एक चौड़ी स्कर्ट के साथ पहना जाता है। वे एक स्कार्फ (scarf) भी पहनते हैं जिसे दुपट्टा कहा जाता है, जिसे वे अपने सिर और कंधे के चारों ओर लपेटते हैं। दुपट्टे के किनारों पर सोने और चांदी के धागे होते हैं। स्कर्ट चौड़ी होती है और इसकी कई तह होती हैं। यह टखनों तक पहुंच जाती है। नर्तक बहुत सारे आभूषण भी पहनते हैं, जिनमे चूड़ियाँ, पायल, कान की बालियाँ और हार आदि शामिल हैं। कजरी नृत्य कुछ-कुछ कथक नृत्य जैसा ही दिखता है।
कजरी नृत्य का प्रदर्शन उत्तर प्रदेश (मिर्ज़ापुर, बनारस, मथुरा, इलाहाबाद) और बिहार (भोजपुर क्षेत्र) में कई स्थानों में किया जाता है। कजरी नृत्य को लोकप्रिय बनाने में पंडित छन्नूलाल मिश्रा, शोभा गुर्टू, सिद्धेश्वरी देवी, गिरिजा देवी, राजन और साजन मिश्रा जैसे कुछ प्रसिद्ध कलाकारों की अहम् भूमिका रही है।
भारत में इस तरह की कई अद्भुत नृत्य शैलियाँ हैं, जो अपने-अपने क्षेत्रों के जीवन और संस्कृति को दर्शाती हैं। हालांकि इनमे से कई नृत्य ऐसे भी हैं, जो इतने प्रसिद्ध नहीं हैं और उन्हें ज्यादा ध्यान नहीं मिला है।
इन नृत्यों में शामिल है:
1. छाऊ: यह उड़ीसा, झारखंड और पश्चिम बंगाल का एक प्रसिद्ध आदिवासी मार्शल आर्ट नृत्य (martial arts dance) है। इसका प्रदर्शन आमतौर पर चैत्र पर्व के वसंत उत्सव के दौरान किया जाता है। यह नृत्य महाभारत और रामायण की कहानियों से प्रेरित है, और विभिन्न शैलियों में किया जाता है।
2. गोटीपुआ: ओडिशा के रघुराजपुर में उत्पन्न, गोटीपुआ का अनुवाद 'एकल लड़का' या कुंवारा होता है। 16वीं शताब्दी की इस नृत्य शैली में नर्तकों की पारंपरिक वेशभूषा और श्रृंगार में परिवर्तन देखा गया है। युवा लड़के किशोरावस्था तक पहुंचने तक लड़कियों की तरह कपड़े पहनते हैं और भगवान कृष्ण और जगन्नाथ की स्तुति में नृत्य करते हैं।
3. घोड़े मोदिनी: इस नृत्य शैली में गोवा में पुर्तगालियों पर मराठा शासकों, रानियों की जीत का जश्न मनाया जाता है। इसे योद्धा नृत्य के रूप में भी जाना जाता है, जिसमें नर्तक चमकदार पोशाक पहनते हैं और उनकी कमर पर लकड़ी का घोड़ा बंधा होता है और वह ढोलक की आवाज़ पर घोड़े की तरह कदम उठाते हैं। इस नृत्य को गोवा के कुछ उत्तरी तालुकों में शिग्मो उत्सव के दौरान देखा जा सकता है।
4. गौर मारिया: मध्य प्रदेश के इस कम प्रसिद्ध नृत्य रूप का नाम बाइसन (गौर) के नाम पर रखा गया है। प्रारंभ में यह नृत्य जनजाति की शिकार भावना को उकसाने के लिए किया जाता था। इसमें एक सींग या बांस की तुरही का उपयोग किया जाता है और महिलाएं ढोल की थाप पर छड़ी हिलाती हैं।
5. फाग नृत्य: ऐसा माना जाता है कि इस नृत्य की उत्पत्ति कश्मीर में हुई थी। यह नृत्य आमतौर पर वसंत ऋतु के दौरान, फरवरी से मार्च तक, किसानों और उनके परिवारों द्वारा किया जाता है। यह एक तरह से फसल के मौसम का उत्सव ही है।
6. सैला नृत्य: छत्तीसगढ़ के इस नृत्य का प्रदर्शन पारंपरिक रूप से फसल के मौसम के बाद वहां के लड़कों द्वारा किया जाता है। इस दौरान कलाकार लाठियों का उपयोग करते हैं और अन्य कलाकारों पर अपनी लाठियों से प्रहार करने की शैली में आगे बढ़ते हैं। नृत्य का समापन दृश्यात्मक मनमोहक नाग नृत्य के साथ होता है।
7. डोलू कुनिथा: यह उत्तरी कर्नाटक का एक ड्रम-आधारित नृत्य है। यह नृत्य वहां के “देवता” बीरेश्वर के सम्मान में किया जाता है।
8. थिडाम्बु नृत्यम: उत्तरी केरल से शुरू हुआ, यह आध्यात्मिक अनुष्ठान नृत्य ज्यादातर मंदिरों में किया जाता है। कलाकार, जिन्हें नंबूथिरी कहा जाता है, अपने सिर पर सुंदर रूप से सुसज्जित देवताओं को रखकर नृत्य करते हैं।
9. यक्षगान: यह कर्नाटक का एक नृत्य रूप है जो अभिनय और संवाद को आपस में जोड़ता है, जिससे यह एक नाटकीय कला का रूप बन जाता है।
10. छोलिया: इस नृत्य को तलवार नृत्य के रूप में भी जाना जाता है। इस नृत्य शैली की उत्पत्ति पहाड़ी राज्य उत्तराखंड में हुई थी। वहां के कुमाउनी लोग, अपनी मार्शल परंपराओं के लिए जाने जाते हैं। ये लोग बुरी आत्माओं को दूर रखने के लिए और विवाह समारोह के दौरान यह नृत्य करते हैं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/ucj2v26u
https://tinyurl.com/ycy9pdyt
https://tinyurl.com/4css5397
चित्र संदर्भ
1. कथक नृत्य करती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
2. कच्ची घोड़ी लोक नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. रास-लीला को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
4. चरकुला नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
5. कजरी नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
6. छाऊ नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
7. गोटीपुआ को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
8. गौर मारिया नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
9. फाग नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (youtube)
10. सैला नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
11. डोलू कुनिथा को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
12. थिडाम्बु नृत्यम को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
13. यक्षगान को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
14. छोलिया नृत्य को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
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