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भारत के हुनरमंद कारीगरों के हाथों में जादू है, और यह जादू हर उस घर में बिखरा हुआ है, जहां इन कारीगरों के हाथों से निर्मित सुंदर सजावटी वस्तुएं रखी गई हैं। सजावटी कलाओं में ऐसी कलाकृतियां शामिल होती हैं, जो कार्यात्मक और सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन होती हैं। इनमे फर्नीचर, कांच के बर्तन, चीनी मिट्टी की चीज़ें, लकड़ी का काम, धातु का काम और वस्त्र आदि शामिल हैं। हालाँकि, आधुनिक मशीनरी का आगमन धीरे-धीरे इन पारंपरिक हस्तशिल्पों की जगह ले रहा है, जिससे हस्तनिर्मित सजावटी कलाओं की संस्कृति में गिरावट आ रही है। लेकिन मशीनरी के आगमन के बावजूद, भारत में हस्तशिल्प की लोकप्रियता अभी भी अटूट बनी हुई है।
हस्तशिल्प अपने रचनाकारों के निस्वार्थ प्रेम, रचनात्मकता और सांस्कृतिक समर्पण का प्रतीक है, जिसे मशीनें दोहरा नहीं सकती हैं। मशीनों के अंदर हस्तशिल्प में निहित भावनात्मक जुड़ाव का अभाव नजर आता है। हस्तशिल्प, रचनात्मकता को व्यक्त करने और कलात्मक अभिव्यक्ति को मूर्त रूप देने के लिए एक अद्वितीय माध्यम के रूप में कार्य करता है।
हस्तशिल्प और मशीन-निर्मित उत्पादों की तुलना करना उचित भी नहीं होगा क्योंकि दोनों ही अलग-अलग उद्देश्यों की पूर्ति करते हैं। हालाँकि, मशीनी युग में भी हस्तशिल्प की विशेषता लोगों के दिलों को लुभाती रहती है।
भारतीय हस्तशिल्प और पारंपरिक शिल्प, देश की समृद्ध संस्कृतियों और विरासत को प्रदर्शित करते हैं। यहां के शिल्पकार, अपने उत्कृष्ट डिजाइनों के माध्यम से, अपनी विरासत, संस्कृति और कल्पना को मूर्त रूप देते हैं और अपने शिल्प को ऐसी वस्तुओं या संरचनाओं में बदलते हैं जो समय की कसौटी पर खरे उतरते हैं। पहले के समय में भारतीय कारीगरों को उनके असाधारण कौशल के लिए सम्मानित और बड़े पैमाने पर मुआवजा दिया जाता था। हालाँकि, 19वीं शताब्दी में औद्योगीकरण के बढ़ने से उनके काम की मांग में कमी आने लगी।
बाद के वर्षों में मशीन से निर्मित वस्तुएं, जो जल्दी तैयार हो जाती हैं और कम कीमत पर बिक जाती हैं, अधिक प्रचलित हो गई हैं। वहीँ दूसरी ओर हस्तशिल्प, जो हस्तनिर्मित, समय लेने वाली और अधिक महंगी होती है, उनकी मांग में गिरावट देखी गई है।
भारत में हस्तशिल्प के प्रचलन या लोकप्रियता के कम होने के कई कारणों में शामिल है:
1. ब्रिटिश शासन के दौरान शाही दरबारों के उन्मूलन के साथ ही 'कारखाने' (कार्यशालाएं) भी बंद हो गईं, क्योंकि कारीगरों को अब हस्तशिल्प का उत्पादन करने के लिए दरबार द्वारा नियुक्त नहीं किया जाता था।
2. कई शिक्षित भारतीय जो ब्रिटेन में या अंग्रेजों के करीब रहते थे, उन्होंने अंग्रेजों के ही कपड़े, भोजन और जीवनशैली की आदतों को अपनाना शुरू कर दिया।
3. हस्तशिल्प उद्योग के तहत हथियार और ढाल भी बनाते थे, जिसे अंग्रेजों द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था।
4. अंग्रेजों ने अप्रत्यक्ष रूप से गिल्डों (guilds ) और अन्य व्यापार नियामक निकायों की शक्ति को कम कर दिया, जिससे कारीगरी की गुणवत्ता खराब होने लगी और सामग्रियों में मिलावट हुई, जिससे उत्पादों के मूल्य और कीमत में कमी आई।
5. यूरोपीय निर्माताओं से प्रतिस्पर्धा: भारतीय हस्तनिर्मित वस्तुओं को सस्ते, मशीन-निर्मित यूरोपीय सामानों से कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा।
6. टैरिफ नीति (Tariff Policy): ब्रिटिश सरकार ने 'एकतरफा मुक्त व्यापार (Unilateral Free Trade)' टैरिफ नीति लागू कर दी।
7. कमजोर औद्योगिक संरचना: कुछ लोगों का मानना है कि कमजोर औद्योगिक संरचना, विपणन प्रयासों की कमी और भारतीय व्यापार पर विदेशी नियंत्रण के कारण भारतीय हस्तशिल्प उद्योग ध्वस्त हो गए। इसने भारतीय कारीगरों और उत्पादकों को अंग्रेजों की दया पर छोड़ दिया। इसके बाद उद्योगों का मार्गदर्शन करने के लिए औद्योगिक उद्यमियों का कोई वर्ग मौजूद ही नहीं था।
आज वैश्वीकरण और विभिन्न प्रकार के किफायती उत्पादों की उपलब्धता ने भारतीय शिल्पकारों के समक्ष कड़ी प्रतिस्पर्धा पैदा कर दी है। आमतौर पर हस्तशिल्प को पारंपरिक माना जाता है और युवा पीढ़ी की रुचि इसमें बहुत कम रही है। इसके अलावा भारतीय शिल्प की छवि को पुनः स्थापित करने के प्रयास भी बहुत कम किये जा रहे हैं। ऊपर से हस्तनिर्मित वस्तुएं, जिन्हें बनाने में महीनों लग जाते थे, अब मशीनों से एक दिन या घंटों में भी तैयार की जा सकती हैं। इन सभी बदलावों का पारंपरिक हस्तशिल्प उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।
हालांकि आज की जरूरतों को पूरा करने के लिए कारीगरों ने पेंटिंग (painting), मूर्तिकला और वास्तुकला जैसी तकनीकों के माध्यम से नए रूप विकसित करना शुरू कर दिया। इसके अतिरिक्त, ई-कॉमर्स (e-commerce) और आईसीटी पहल ( ICT initiatives) के उदय ने आज की ऑनलाइन मार्केटिंग रणनीतियों (online marketing strategies) को बढ़ाया है।
बदलते बाजारों के अनुसार, कलाकारों ने भी खुद को नई तकनीकों और आकांक्षाओं के अनुकूलन किया है। सबसे जरूरी यह है कि "मशीनों का युग" कहे जाने के बावजूद, मशीनें मानवीय भावनाओं की नकल नहीं कर सकतीं हैं, जो कला का अभिन्न अंग हैं। इसलिए, जब तक भावनाएं मौजूद हैं, तब तक कला और कला प्रेमी मौजूद रहेंगे।
ऊपर से प्रभावी सरकारी पहल, समर्पित प्लेटफार्मों के उद्भव और अन्य कारकों के बीच प्रौद्योगिकी के हस्तक्षेप के कारण भारतीय हस्तशिल्प का भविष्य उज्ज्वल नजर आ रहा है। भारतीय हस्तशिल्प देश की विविध संस्कृति और समृद्ध विरासत का प्रतिबिंब हैं। भारतीय कारीगर अपनी भूमि और संस्कृति की विरासत का प्रतिनिधित्व करने के लिए जटिल डिजाइनों का उपयोग करके अपनी अनूठी कला को ऐसे रूपों में ढालते हैं, जिन्हें पीढ़ियों तक पारित किया जा सकता है।
आज, हस्तशिल्प उद्योग भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जो देश भर में लाखों लोगों के जीवन को बदल रहा है। यह सबसे बड़े रोजगार सृजनकर्ताओं में से एक है और देश के निर्यात में महत्वपूर्ण योगदान देता है। हस्तशिल्प का निर्यात काफी हद तक राज्य और क्षेत्रीय समूहों से प्रभावित होता है।
इंडिया ब्रांड इक्विटी फाउंडेशन (India Brand Equity Foundation) के अनुसार, भारतीय हस्तशिल्प क्षेत्र खंडित है, जिसमें सात मिलियन से अधिक क्षेत्रीय कारीगर और 67,000 निर्यातक/निर्यात घराने घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दोनों बाजारों में क्षेत्रीय कला और शिल्प कौशल को बढ़ावा दे रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में हस्तशिल्प क्षेत्र में 20% की लगातार वार्षिक वृद्धि दर के साथ उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्तमान में इसमें 68.86 लाख से अधिक शिल्पकार कार्यरत हैं।
सरकार ने भी शिल्पकारों की सहायता के लिए कई योजनाएँ लागू की हैं। इनमे 'दस्तकार सशक्तिकरण योजना (Artisans Empowerment Scheme)', 'अम्बेडकर हस्तशिल्प विकास योजना ('Ambedkar Handicraft Development Scheme)', 'मेगा क्लस्टर योजना (Mega Cluster Scheme)', 'विपणन सहायता और सेवा योजना (Marketing Assistance and Service Scheme)', और 'अनुसंधान और विकास योजना (Research and Development Scheme)' शामिल है।
इन योजनाओं का उद्देश्य बुनियादी ढांचा, प्रौद्योगिकी और मानव संसाधन विकास प्रदान करना, कलाकारों को स्वयं सहायता संगठनों में संगठित करना, रोजगार सृजन की सुविधा प्रदान करना और जीवन स्तर में सुधार करना है। वैश्विक बाजार में छोटी हिस्सेदारी होने के बावजूद, भारत के हस्तशिल्प के निर्यात में वृद्धि की संभावना बहुत अधिक है। दुनिया भर में हस्तशिल्प बाजार के 2022-2027 तक 10.9% सीएजीआर से बढ़ने की उम्मीद है, जो 2026 तक अनुमानित 1,204.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंच जाएगा।
संदर्भ
http://tinyurl.com/32asasj4
http://tinyurl.com/29ayj862
http://tinyurl.com/34s5w2tp
चित्र संदर्भ
1. एक पात्र में नक्काशी करती महिला को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
2. हस्तनिर्मित सजावटी कलाओं से सुसज्जित बाजार को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. बांस के हस्तशिल्प को संदर्भित करता एक चित्रण (pexels)
4. खिलौने बनाती मशीन को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
5. एक मूर्तिकार को दर्शाता एक चित्रण (pexels)
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