प्रोटोज़ोआ: एककोशिकीय परपोषी

कीटाणु,एक कोशीय जीव,क्रोमिस्टा, व शैवाल
07-03-2018 11:25 AM
प्रोटोज़ोआ: एककोशिकीय परपोषी

व्हिटेकर वर्गीकरण के अनुसार प्रोटोज़ोआ (Protozoa) प्रॉटिस्टा (Protista) जगत के जीव हैं। इन्हें हिंदी में प्रजीवगण भी कहा जाता है तथा प्रोटोज़ोआ का शब्दशः अर्थ होता है पहले जानवर/जीव। यह सुश्मजीवों के चार प्रकारों में से एक हैं जिन्हें देखने के लिए सूक्ष्मदशंक यंत्र की जरुरत होती है। प्रोटोज़ोआ विभिन्न प्रकार के एककोशिकीय यूकर्योटिक जीवों का समूह है। यह परपोषी अपने आप में पूर्ण जीव रहते हैं जिनकी अंदरूनी संरचना जटिल होती है तथा इनमें झिल्लियुक्त केन्द्रक रहता है। यह थोड़े बहुत प्राणियों की तरह पेश आते हैं तथा अपने आयुकाल में वे लैंगिक और अलैंगिक दोनों प्रकार से प्रजनन कर सकते हैं। अलैंगिक प्रजनन द्विविभाजन द्वारा होता है तथा लैंगिक प्रजनन में नर-मादा युग्मक बनते हैं। यह परपोषी जीव अंतर्ग्रहण, गले-सड़े पदार्थों से तथा पारजैविक तरीके से अपने लिए पोषण इकठ्ठा करते हैं। इनके संचलन के तरिके के अनुसार इन्हें चार मुख्य विभागों में बांटा गया है:

1) अमिबोइड प्रोटोजोअंस/सर्कोडीन्स (Amoeboid Protozoans or Sarcodines): यह ज़्यादातर खरे एवं सादे पानी में तथा आर्द्रभूमि में पाए जाते हैं। इनमें कशाभिका नहीं होती इसी लिए संचलन के लिए वे जीव-द्रव्‍यी उद्वृद्धि से बने आभासी पैरों का इस्तेमाल करते हैं। इनसे संक्रमित पानी पीने से दस्त हो सकता है जिससे रोगी की जान भी जा सकती है।

2) ज़ूफ्लैजलेट्स (Zooflagellates): यह पारजैविक जीव होते हैं जो संचलन के लिए कशाभिका का इस्तेमाल करते हैं। इनसे इंसानों को निद्रा रोग हो सकता है।

3) सिलीएट्स (Ciliates): यह प्रोटोज़ोआ के जीवों में से सबसे बड़ा जीव-समूह है। इनके पूरे शारीर पर छोटे बाल रहते हैं जो इन्हें संचलन में मदद करते हैं। ये मलेरिया फैलाते हैं क्यूंकि ये मलेरिया के मच्छरों का इस्तेमाल परपोषी के लिए करते हैं।

4) स्पोरोज़ोअन्स (Sporozoans): ये अंत: परोपजीवी तथा रोगजनक़ होते हैं जैसे इनमें प्लासमोडियम (Plasmodium) परजीवी है जो मलेरिया कारक है।

प्रोटोज़ोआ ज्यादातर रोगकारक होते हैं जैसे कालाजर, अमिबी मल, पायरिया आदि।

जौनपुर में, ख़ास कर गाँवों में 55% लोकसंख्या कुंवा आदि भूजल पर निर्भर करती है जिसमें प्रोटोज़ोआ का प्रादुर्भाव सबसे ज़्यादा हो सकता है। सारे प्रोटोज़ोआ बहुतायता से पानी एवं आर्द्रभूमि में पाए जाते हैं तथा इनसे ही इनका प्रसार होता है, इसीलिए पानी उबाल के तथा छान के पीना और सब्जियां- फल आदि अच्छे से साफ़ कर इस्तेमाल करना इन रोगकारकों से दूर रहने का सबसे सरल और प्रभावी उपाय है।

1. मेडिकल माइक्रोबायोलॉजी 4थी एडिशन: रोबर्ट येगर https://www.ncbi.nlm.nih.gov/books/NBK8325/
2. https://courses.lumenlearning.com/boundless-microbiology/chapter/microbes-and-the-world/

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