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मेसोनिक लॉज(Masonic lodge) मेसोनिक बिरादरी समाज(Freemasonry) का स्थानीय संगठन होता है। यह ग्रैंड लॉज(Grand lodge) के एक विशेषाधिकार के तहत संचालित होता है। आज हमारे देश भारत में, 470 से अधिक मेसोनिक लॉज हैं। इनका मुख्यालय दिल्ली में स्थित है। फ्रीमेसन वास्तुकला तथा इसके प्रतीकवाद और अनुष्ठान, दुनिया के सबसे अविश्वसनीय वास्तुकला में से कुछ हैं। तो आइए, इनके तथा हमारे राज्य उत्तर प्रदेश में स्थित मेसोनिक लॉज के बारे में जानते हैं। साथ ही, यह भी समझें कि, लोग मेसोनिक लॉज से क्यों जुड़ते हैं?
मेसोनिक लॉज एक ऐसी जगह है, जहां कोई व्यक्ति, पूरी तरह से स्वागत योग्य और बाहरी दुनिया की प्रतिस्पर्धा से मुक्त महसूस कर सकता है। मेसोनिक कार्यालय और पदक्रम वास्तव में, प्रतीकात्मक हैं और इनमें स्पर्धा नहीं होती हैं।
फ्रीमेसनरी और वास्तुकला के बीच संबंध, इस संगठन के शुरुआती दिनों से ही है, जब यह मुख्य रूप से ‘राजमिस्त्री’ और अन्य कुशल कारीगरों से बना था। ये शुरुआती सदस्य वास्तुकला और ज्यामिति के सिद्धांतों से अच्छी तरह वाकिफ थे। इसे उन्होंने चर्च(Church), महलों और अन्य स्मारकीय संरचनाओं पर अपने काम में लागू किया था। फिर, यह संगठन विकसित हुआ, और जीवन के विभिन्न क्षेत्रों से इसमें सदस्य आने लगे। तब, इसका ध्यान वास्तुकला के प्रतीकात्मक और दार्शनिक पहलुओं पर स्थानांतरित हो गया। ये विचार मेसोनिक लॉज और संगठन से जुड़ी अन्य इमारतों के डिजाइन(Design) और निर्माण में परिलक्षित होते हैं।
इसके अलावा, फ्रीमेसनरी वास्तुकला में अक्सर विशिष्ट प्रतीकों और रूपांकनों को शामिल किया जाता है, जो सदस्यों के लिए विशेष महत्व रखते हैं। फ्रीमेसनरी वास्तुकला का सबसे स्पष्ट उदाहरण, मेसोनिक मंदिरों और लॉज के डिजाइन और निर्माण में पाया जा सकता है। इन इमारतों का निर्माण संगठन की बैठकों और अनुष्ठानों के लिए किया गया है, और इनमें अक्सर ही, विस्तृत वास्तुशिल्प विवरण और प्रतीकात्मक तत्व शामिल होते हैं।
अब आइए, हमारे देश में स्थित लॉज के बारे में पढ़ते हैं। फ्रीमेसन हॉल(Freemason’s Hall) या लॉज, दिल्ली में प्रतिष्ठित कनॉट प्लेस(Connaught Place) के पास, जनपथ के पास स्थित है। यह इमारत अब लगभग 90 वर्ष पुरानी है। और इसका स्वामित्व नई दिल्ली की मेसोनिक बिरादरी के पास है। इस भव्य इमारत की नींव 4 अप्रैल, 1935 को तत्कालीन भारत के वायसराय(Viceroy of India) लॉर्ड विलिंगडन(Lord Willingdon) द्वारा रखी गई थी।
इस आकर्षक इमारत के आंतरिक कक्षों में, पहली मंजिल पर एक भव्य मेसोनिक लॉज है। यहां चमकदार राजचिह्न में इस बिरादरी के सदस्य 1930 के दशक से, एक चेकर-बोर्ड फर्श(Checkered-board floor) और एक ‘ग्रैंड मास्टर(Grand Master)’ से जुड़े विस्तृत और रहस्यमय अनुष्ठान करने के लिए इकट्ठा होते रहे हैं।
इस लॉज का उद्घाटन 24 फरवरी 1936 को, तत्कालीन पटियाला के महाराजा द्वारा किया गया था। सूर्य और चंद्रमा का प्रतिनिधित्व करने वाली पट्टिका, इसके मुख्य द्वार के शीर्ष पर चौरस और कम्पास(Compass) के प्रमुख मेसोनिक प्रतीक को दर्शाती हैं।
दिल्ली के मेसोनिक लॉज के अलावा, हमारे राज्य के कुछ शहरों में भी, ऐसे लॉज स्थित हैं। आइए, जानते हैं।
इलाहाबाद : उत्तरी भारत का पहला, सबसे पुराना और सबसे महत्वपूर्ण लॉज इलाहाबाद में स्थित है। यह लॉज इलाहाबाद शहर के कुचेरी रोड पर स्थित है, जिसे लॉज इंडीपेंडेंस विथ फिलेंथ्रॉफी नंबर 2(Lodge Independence with Philanthropy No. 2) के नाम से जाना जाता है। वर्ष 1828 में इसका उद्घाटन किया गया था, और 26 अगस्त, 1828 को इसकी गारंटी दी गई थी। इस लॉज का इतिहास लगभग 200 वर्ष पुराना है। इसकी इमारत और धार्मिक स्थल ऐसे स्थान पर स्थित हैं, जो आसानी से एक विरासत इमारत समझी जा सकती है। मंदिर को डिजाइन करते समय ध्वनि की गतिशीलता पर अच्छी तरह से विचार किया गया था। वे उन संग्रहालयों का भी रखरखाव कर रहे हैं, जिनमें 1857 से अब तक के रिकॉर्ड मौजूद हैं। रुडयार्ड किपलिंग(Rudyard Kipling) और पंडित मोतीलाल नेहरू, इस लॉज के कई प्रमुख और सक्रिय सदस्यों में से थे।
मेरठ:
मेरठ के रूड़की रोड पर एक मेसोनिक लॉज स्थित है। इस लॉज का उद्घाटन 28 मई 1833 को किया गया था, और, 25 मई 1833 को इसकी गारंटी दी गई थी। यह लॉज, लॉज होप नंबर 4(Lodge Hope No.4) के नाम से जाना जाता है।
लखनऊ: लॉज मॉर्निंग स्टार नंबर 7(Lodge Morning Star No.7) के नाम से प्रसिद्ध, लखनऊ का मेसोनिक लॉज, शहर के सरोजिनी नायडू मार्ग पर स्थित है। इस लॉज का वर्ष 1848 में उद्घाटन किया गया था, और इसका वारंट 29 फरवरी, 1848 को दिया गया था। इसकी नियमित बैठक हर महीने के पहले शनिवार को होती है, और उनकी स्थापना मार्च के महीने में होती है। दूसरी ओर, एक अन्य लॉज– लॉज इंडिपेंडेंस नंबर 33(Lodge Independence No.33), राम तीर्थ मार्ग पर स्थित है। इस लॉज का उद्घाटन 7 अगस्त 1879 को किया गया था, और 1 अगस्त 1879 को इसका वारंट जारी किया गया था।
दरअसल, प्रत्येक व्यक्ति अपनी स्वतंत्र इच्छा और सहमति से, अपनी व्यक्तिगत जरूरतों और रुचियों के साथ मेसनरी का सदस्यत्व लेता है। कोई व्यक्ति अन्य लोगों के साथ जुड़ने के लिए भी, या फिर खुद को बेहतर बनाने के लिए भी, मेसनरी का सदस्य बन सकता है। कोई अन्य व्यक्ति अपनी धर्मार्थ प्रवृत्तियों की तलाश में, या फिर, गैर-सांप्रदायिक अनुष्ठानों की तीव्र इच्छा से भी इसकी ओर आकर्षित हो सकता है। कई लोग तो इसमें केवल इसलिए शामिल होते हैं, क्योंकि, वे किसी फ्रीमेसन मित्र या रिश्तेदार को जानते हैं।
संदर्भ
http://tinyurl.com/4tmjtewa
http://tinyurl.com/4awu6exw
http://tinyurl.com/35f6dw52
http://tinyurl.com/bdb4vu4f
चित्र संदर्भ
1. मेसोनिक लॉज को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
2. बेल्जियम के ब्रुसेल्स शहर में मेसोनिक लॉज को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
3. दिल्ली के फ्रीमेसन हॉल को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
4. विभिन्न स्थानों के मेसोनिक लॉज को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
5. मेसोनिक बिरादरी समाज को दर्शाता एक चित्रण (youtube)
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