पोषण युक्त भोजन,स्वस्थ जीवन का आधार:‘पोषण वाटिका’ से होगा माँ-शिशु का स्वास्थ्य सुनिश्चित

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09-02-2024 09:25 AM
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पोषण युक्त भोजन,स्वस्थ जीवन का आधार:‘पोषण वाटिका’ से होगा माँ-शिशु का स्वास्थ्य सुनिश्चित

शैशवावस्था और प्रारंभिक बाल्यावस्था मानसिक एवं शारीरिक विकास की अवधि होती है। विकास की इस महत्वपूर्ण अवधि के दौरान, पोषणयुक्त भोजन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और आजीवन स्वास्थ्य के लिए मंच तैयार करता है। शैशवावस्था और बचपन के दौरान पोषण की कमी दुनिया भर में व्याप्त एक आम समस्या है। वैश्विक स्तर पर 2020 में, पांच साल से कम उम्र के 149 मिलियन बच्चे ऐसे थे जिनकी लंबाई अपनी उम्र के हिसाब से कम थी तथा 45 मिलियन बच्चों का वजन उनकी ऊंचाई के मुकाबले कम था। ये दोनों तथ्य कुपोषण के मजबूत संकेतक हैं। जीवन के पहले 3 साल शारीरिक एवं मानसिक विकास की दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इस दौरान, विटामिन, प्रोटीन और खनिज तत्व जैसे सूक्ष्म पोषक तत्व पूरे शरीर में महत्वपूर्ण संरचनात्मक और कार्यात्मक भूमिका निभाते हैं। चूँकि यह समय गहन शारीरिक और मानसिक विकास का होता है, इसलिए जीवन की शुरुआत में सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से बच्चे के दीर्घकालिक स्वास्थ्य और क्षमता पर अत्यंत दुष्प्रभाव पड़ सकता है। प्रारंभिक विकास के दौरान कुपोषण से बच्चों में रिकेट्स (rickets), रक्ताल्पता, कोरोनरी हृदय रोग, टाइप 2 मधुमेह, कैंसर और ऑस्टियोपोरोसिस (osteoporosis) जैसी गंभीर बीमारियों के विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा पोषक तत्वों की कमी से शिशुओं और बच्चों में विकास संबंधी अपर्याप्तता और अन्य उपनैदानिक ​​​​स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न हो सकती हैं, जो आसानी से दिखाई नहीं देती हैं। विशेष रूप से, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से शारीरिक विकास रुक सकता है, संज्ञानात्मक कार्य क्षमता और प्रतिरक्षा क्षमता कम हो सकती है। साथ ही वजन में कमी, कम ऊर्जा स्तर और मनोदशा और व्यवहार में बदलाव आदि लक्षण भी परिलक्षित हो सकते हैं।
शैशवावस्था और प्रारंभिक बचपन के दौरान पोषण संबंधी कमी एक विश्वव्यापी समस्या है। वैश्विक स्तर पर, पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में होने वाली 45% मौतें अल्पपोषण के कारण होती हैं। इसके अलावा, वैश्विक स्तर पर, लगभग एक तिहाई आबादी एक या अधिक सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से प्रभावित है। थाईलैंड (Thailand) में 6 महीने से 12 साल की उम्र के बच्चों की पोषण स्थिति का आकलन करने के लिए किए गए एक अध्ययन में 50% से अधिक बच्चों में कैल्शियम, आयरन, जिंक, विटामिन A और विटामिन C की कमी पाई गई। एक अन्य अध्ययन में आयरलैंड (Ireland) में 12 से 36 महीने की आयु के छोटे बच्चों के आहार संबंधी जोखिम का मूल्यांकन किया गया और पाया गया कि कई बच्चों में आयरन, जिंक, विटामिन डी, राइबोफ्लेविन (riboflavin), नियासिन (niacin), फोलेट (folate), फॉस्फोरस (phosphorous), पोटेशियम (potassium), कैरोटीन (carotene), रेटिनॉल (retinol) और आहारीय फाइबर (dietary fiber) जैसे प्रमुख पोषक तत्वों की कमी थी। हाल ही में अमेरिका (America) में किये गए एक अध्ययन में एक से छह साल की उम्र के बच्चों के भोजन और पेय पदार्थों के सेवन की जांच में आयरन, विटामिन बी 6, कैल्शियम, फाइबर, कोलीन (choline), पोटेशियम और डोकोसाहेक्सैनोइक एसिड (docosahexaenoic acid (DHA)) जैसे पोषक तत्वों की कमी सामने आई। जीवन के आरंभ में पोषक तत्वों की कमी बच्चों की मानसिक मंदता का एक प्रमुख कारण होती है, जो दो कारकों पर आधारित होती है: पोषक तत्वों की कमी का समय और उस पोषक तत्व के लिए मस्तिष्क की आवश्यकता। उदाहरण के लिए, शरीर में आयरन की आवश्यकता बच्चे की उम्र के साथ बदलती रहती है। इसकी सबसे अधिक आवश्यकता भ्रूण और नवजात काल में होती है। इसलिए, गर्भवती महिलाओं को जन्मजात तंत्रिका नली से संबंधित विकारो को रोकने के लिए आयरन और फोलिक एसिड की खुराक लेने की सलाह दी जाती है। मस्तिष्क के पूर्ण विकास के लिए बच्चे के आहार में सभी पोषक तत्व संतुलित मात्रा में होने चाहिए। हालांकि कुछ पोषक तत्व प्रारंभिक विकास के दौरान विशेष रूप से महत्वपूर्ण होते हैं। और इन पोषक तत्वों की कमी से बच्चों में मानसिक मंदता का जोखिम हो सकता है। साथ ही यह भी देखा गया है कि बच्चों में कुपोषण से संक्रामक रोगों, बोलने में देरी करने की प्रवृत्ति, चलने-फिरने, संचार में कठिनाई या बौद्धिक विकास में सीमाओं के साथ-साथ अन्य मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं का खतरा भी बढ़ जाता है।
दुनिया भर में रोकथाम योग्य मस्तिष्क क्षति और मानसिक मंदता का सबसे बड़ा कारण आयोडीन की कमी है। 1990 के विश्व शिखर सम्मेलन में भी वर्ष 2000 के लिए निर्धारित किए सबसे अधिक प्राप्त करने योग्य लक्ष्यों में से एक लक्ष्य बच्चो में आयोडीन की कमी को दूर करना था। आहार में आयोडीन की अपर्याप्त मात्रा से थायराइड (thyroid) हार्मोन का अपर्याप्त उत्पादन होता है, जो शरीर के कई हिस्सों, विशेष रूप से मांसपेशियों, हृदय, यकृत, गुर्दे और बच्चों के विकासशील मस्तिष्क को प्रभावित करता है। थ्रॉक्सिन, थायराइड हार्मोन का एक महत्वपूर्ण घटक है जो आयोडीन से थायरोक्सिन (thyroxin) नामक एक घटक में होता है जो जीवन के प्रारंभिक भ्रूण चरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह घटक शरीर के विभिन्न अंगों और विशेषकर मस्तिष्क की वृद्धि, विभेदन और परिपक्वता के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि गर्भवती महिलाओं के आहार में पर्याप्त आयोडीन नहीं होता है, तो भ्रूण को पर्याप्त मात्रा में थायरोक्सिन नहीं मिल पाता और भ्रूण का विकास मंद हो जाता है। कभी कभी इसकी कमी से हाइपोथायराइड (Hypothyroid) भ्रूण अक्सर गर्भ में ही नष्ट हो जाते हैं और कई शिशुओं की जन्म के एक सप्ताह के भीतर ही मृत्यु हो जाती है। लगभग 40% मामलों में गर्भावस्था के समय उचित एवं पोषण युक्त भोजन से रोकथाम योग्य मस्तिष्क क्षति और मानसिक मंदता को होने से रोका जा सकता है। यद्यपि किसी भी देश में सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये पोषणयुक्त आहार केंद्रीय भूमिका में है, तथापि, हमारे देश भारत में यह एक लंबे समय से प्रतीक्षित और उपेक्षित विकास क्षेत्र रहा है। यह तथ्य बेहद दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन सत्य है कि भारत बच्चों की पोषण संबंधी स्वास्थ्य स्थिति, विशेष रूप से बच्चों के कम वजन, दुबलेपन और बौनेपन को प्रभावी ढंग से संबोधित करने में विफल रहा है। वर्तमान संदर्भ में समग्र रूप से भारत और विशेष रूप से हमारे राज्य उत्तर प्रदेश के लिए यह एक प्रमुख चिंता का विषय है। उत्तर प्रदेश में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक वर्गों और क्षेत्रों में बाल स्वास्थ्य और पोषण से संबंधित गंभीर चुनौतियों के कारण बाल मृत्यु दर और रुग्णता का स्तर भी उच्च है।
बाल स्वास्थ्य और विकास को बढ़ावा देने और लाभ पहुंचाने के लिए भारत में कई बाल स्वास्थ्य नीतियां और कार्यक्रम शुरू किए गए, जैसे एकीकृत बाल विकास योजना ( Integrated Child Development Scheme (ICDS), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission), टीकाकरण कार्यक्रम (Immunisation Programme) और राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (National Rural Health Mission (NRHM)। लेकिन इतने अधिक कार्यक्रम एवं योजनाएं लागू होने के कई साल बाद भी, भारत अभी भी विकासशील देशों के बीच विभिन्न बाल स्वास्थ्य, विकास और पोषण विकास संकेतकों में सबसे निचले पद पर है। समग्र रूप से और विशेष रूप से हम उत्तर प्रदेश में उच्च बाल कुपोषण का सामना कर रहे है। जागरूकता, ज्ञान और शिक्षा के साथ पोषणयुक्त आहार से बाल स्वास्थ्य में सुधार किया जा सकता है।
इन सभी पूरक पोषण कार्यक्रमों का प्राथमिक लक्ष्य अनुशंसित आहार और औसत दैनिक सेवन के बीच के अंतर को पाटना है। 'महिला एवं बाल विकास मंत्रालय' (Ministry of Women & Child Development (MWCD) द्वारा राज्य सरकारों को आहार विविधता, कृषि-जलवायु क्षेत्रीय भोजन योजनाओं को बढ़ावा देने और पूरक पोषण कार्यक्रम में आयुष प्रथाओं को अपनाने की सलाह दी गई है। इसी कड़ी में सरकार द्वारा 15वें वित्त आयोग की अवधि 2021-22 से 2025-26 के दौरान MWCD की एक एकीकृत पोषण सहायता कार्यक्रम योजना "सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0" को मंजूरी भी दे दी गई है। सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 का मुख्य लक्ष्य मातृ पोषण, शिशु और छोटे बच्चों का पोषण, आहार मानदंड और आयुष प्रथाओं के माध्यम से कम वजन और रक्तअल्पता का उपचार तथा कम वजन के प्रसार को रोकने पर केंद्रित है।
मिशन सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 के दिशानिर्देशों के अनुसार, आयुष मंत्रालय के साथ अभिसरण की परिकल्पना इस प्रकार की गई है:
- पोषण वाटिकाओं को औषधीय पौधों, तकनीकी सहायता आदि के माध्यम से हरा भरा रखना।
- स्थानीय रूप से उगाई गई सब्जियों को एकीकृत करने वाले स्थानीय व्यंजनों की सिफारिश करना।
- विभिन्न आयुष प्रथाओं/उत्पादों की अनुशंसा करना जिनका उपयोग एनीमिया और जन्म के समय कम वजन को कम करने और प्रतिरक्षा को मजबूत करने के लिए सफलतापूर्वक किया गया है। देश के कुछ जिलों में गर्भवती महिलाओं, स्तनपान कराने वाली माताओं और बच्चों के लिए राशन में आयुष घटक को शामिल किया गया है।
सरकार द्वारा आंगनवाड़ी केंद्रों, राज्य के स्वामित्व वाले विद्यालयों और ग्राम पंचायत की भूमि पर, जहां महिलाओं और बच्चों को लाभ होने की सबसे अधिक संभावना है, पोषण वाटिका की स्थापना को प्रोत्साहित किया जा रहा है। इससे सामुदायिक स्तर पर सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से संबंधित कुपोषण को संबोधित करने, कुपोषण को दूर करने और महत्वपूर्ण मात्रा में सूक्ष्म पोषक तत्वों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए खाद्य सुरक्षा और आहार विविधता प्रदान करने में मदद मिलेगी। बच्चों, गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं के समग्र पोषण के लिए सक्षम आंगनवाड़ी और पोषण 2.0 के तहत योग के माध्यम से बीमारियों की रोकथाम और कल्याण को बढ़ावा देने, पोषण वाटिकाओं में औषधीय जड़ी-बूटियों की खेती और अंतर्निहित विकारों के इलाज के लिए आयुष निरूपण के उपयोग पर ध्यान केंद्रित करने वाली आयुष प्रथाओं को प्रोत्साहित किया जाता है। उत्तर प्रदेश में अब तक कुल 41106 पोषण वाटिकाएँ विकसित की जा चुकी हैं।

संदर्भ
https://shorturl.at/rsLW1
https://shorturl.at/bhASU
https://shorturl.at/hlSY2
https://shorturl.at/rsxOS
https://t.ly/yV91W

चित्र संदर्भ
1. खेतों में काम करती महिलाओं को संदर्भित करता एक चित्रण (PixaHive)
2. रिकेट्स से पीड़ित बच्चों को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
3. भोजन करते बच्चों को दर्शाता एक चित्रण (Rawpixel)
4. अपने बच्चे को भोजन कराती माँ को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)
5. पोलियों की खुराक पिलाती कार्यकर्ता को संदर्भित करता एक चित्रण (wikimedia)
6. वाटिका में काम करती महिलाओं को दर्शाता एक चित्रण (wikimedia)

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