जबकि भारत दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में से एक है, यह आर्थिक रूप से सबसे असमान देशों में से भी एक है। पिछले तीन दशकों से यह आर्थिक असमानता तेज़ी से बढ़ी है। अमीर लोग, और अधिक अमीर होते जा रहे हैं तथा गरीब लोग और अधिक गरीब। गरीब, अभी भी न्यूनतम वेतन अर्जित करने, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं, जबकि अमीर, विलासिता पूर्ण जीवन जीने के साथ-साथ, अपने धन में निरंतर वृद्धि कर रहे हैं। ये बढ़ती असमानताएँ, महिलाओं और बच्चों को सबसे अधिक प्रभावित करती हैं। तो आइए, आज इस लेख में, हम भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता के बारे में समझते हैं, जो आज एक बढ़ती हुई समस्या है। इसके साथ ही, हम अमीरों और गरीबों के बीच अत्यधिक असमानता को दर्शाने वाले कुछ आंकड़े साझा करेंगे। इसके बाद, हम यह भी समझने का प्रयास करेंगे कि वैश्वीकरण (Globalization) का आर्थिक असमानता पर क्या प्रभाव पड़ता है।
भारत में बढ़ती आर्थिक असमानता-
"भारत में आय और धन असमानता, 1922-2023: अरबपति राज का उदय" (Income and Wealth Inequality in India, 1922-2023: The Rise of the Billionaire Raj) नामक एक रिपोर्ट के अनुसार, 2014-15 और 2022-23 के बीच, भारत में आर्थिक एकीकरण के मामले में शीर्ष स्तर की असमानता में विशेष रूप से वृद्धि हुई है। 2000 के दशक की शुरुआत से ही भारत में असमानता आसमान छू रही है, और 2022-23 में शीर्ष एक प्रतिशत आबादी की आय और संपत्ति हिस्सेदारी बढ़कर क्रमशः 22.6 प्रतिशत और 40.1 प्रतिशत हो गई है, जो ऐतिहासिक रूप से उच्चतम स्तर पर है और दुनिया में सबसे अधिक है, यहां तक कि दक्षिण अफ़्रीका , ब्राज़ील और संयुक्त राज्य अमेरिका से भी अधिक है।
इस रिपोर्ट के अनुसार, शुद्ध संपत्ति की दृष्टि से, भारतीय आयकर प्रणाली भी प्रतिगामी हो सकती है। कई ऐसे कारक हैं, जिनके कारण अधिकांश आबादी कम वेतन अथवा आय वाले रोज़गार कार्यों में लगी हुई है। इन कारकों में शिक्षा का निम्न स्तर एक प्रमुख कारण है। इन कारकों ने मुख्य रूप से निचले स्तर पर 50 प्रतिशत और मध्य स्तर पर 40 प्रतिशत भारतीयों की वृद्धि को प्रभावित किया है।
इस रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में आर्थिक आंकड़ों की गुणवत्ता काफ़ी खराब है और हाल ही में इसमें गिरावट देखी गई है। इसमें कहा गया है कि जनसंख्या की शीर्ष 1 प्रतिशत आय हिस्सेदारी दुनिया में केवल पेरू, यमन और कुछ अन्य छोटे देशों के बाद" सबसे अधिक है। शीर्ष 1 प्रतिशत की आय हिस्सेदारी, जो 1922 में 13 प्रतिशत थी, अंतर-युद्ध अवधि में उल्लेखनीय रूप से बढ़कर 20 प्रतिशत से अधिक हो गई। जबकि उसके बाद, 1940 के दशक के दौरान, भारत की आज़ादी के समय तक, इसमें नाटकीय रूप से 13 प्रतिशत की गिरावट देखी गई, जबकि 1950 के दशक के दौरान, थोड़े समय के लिए बढ़ने के बाद, शीर्ष 1 प्रतिशत आय हिस्सेदारी में अगले दो दशकों में लगातार गिरावट देखी गई और 1982 तक यह 6.1 प्रतिशत तक पहुंच गई। संभवतः यह 1980 के दशक तक भारत सरकार द्वारा अपनाए गए व्यापक समाजवादी नीति एजेंडे का परिणाम था।
1980 के दशक की शुरुआत से, जब भारत सरकार ने आर्थिक सुधारों की एक विस्तृत श्रृंखला शुरू की, तो शीर्ष 1 प्रतिशत आय हिस्सेदारी में गिरावट रुक गई। 1990 के दशक की शुरुआत से शीर्ष 1 प्रतिशत आय हिस्सेदारी में अगले 30 वर्षों में लगातार वृद्धि हुई है और यह 2022 में, 22.6 प्रतिशत के सर्वकालिक उच्च स्तर पर पहुंच गई है। फ़ोर्ब्स(Forbes) की अरबपति रैंकिंग के आंकड़ों से पता चलता है कि 1 बिलियन डॉलर से अधिक की शुद्ध संपत्ति वाले भारतीयों की संख्या 1991 में एक से बढ़कर 2022 में 162 हो गई है। एशिया के दो सबसे अमीर व्यक्ति, रिलायंस इंडस्ट्रीज के मुकेश अंबानी और अदानी समूह के गौतम अदानी भारतीय हैं। 92 मिलियन भारतीय वयस्कों में से 10,000 सबसे धनी व्यक्तियों के पास, औसतन 22.6 अरब रुपये की संपत्ति है, जो देश के औसत से 16,763 गुना अधिक है, जबकि शीर्ष 1 प्रतिशत के पास, औसतन 54 अरब रुपये की संपत्ति है।
आइए, असमानता से संबंधित कुछ दिलचस्प आंकड़ों पर नज़र डालें:
- भारतीय आबादी के शीर्ष 10% लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा है। 2017 में, उत्पन्न संपत्ति का 73%, सबसे अमीर 1% के पास था, जबकि उस समय, 670 मिलियन भारतीय, जो आबादी का सबसे गरीब आधा हिस्सा थे, उनकी संपत्ति में केवल 1% की वृद्धि देखी गई।
- 2022 तक, भारत में 119 अरबपति थे। उनकी संख्या, 2000 में 93 से केवल 9 बढ़कर 2017 में 101 हो गई। जबकि 2018 और 2022 के बीच, भारत में हर दिन 70 नए करोड़पति पैदा होने का अनुमान है।
- पिछले एक दशक में अरबपतियों की संपत्ति में लगभग 10 गुना की बढ़ोतरी देखी गई है और वित्त वर्ष 2018-19 से ही उनकी कुल संपत्ति भारत के पूरे केंद्रीय बजट से अधिक रही है।
- कई आम भारतीय, अपनी ज़रूरत की स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच पाने में भी सक्षम नहीं हैं। हर साल, लगभग 63 मिलियन भारतीय, स्वास्थ्य देखभाल की लागत के कारण गरीबी रेखा के नीचे आ जाते हैं - लगभग हर सेकंड दो लोग।
- एक प्रमुख भारतीय परिधान कंपनी में सबसे अधिक वेतन पाने वाले कर्मचारी को 1 साल में जितना वेतन मिलता है ग्रामीण भारत में न्यूनतम वेतन पाने वाले एक कर्मचारी को अपना धन कमाने में लगभग 941 साल लगेंगे।
- विडंबना तो यह है कि जबकि सरकार द्वारा अपने सबसे धनी नागरिकों पर बमुश्किल कर लगाया जाता है, वहीं इसका सर्वाधिक बोझ मध्यम वर्ग पर है और सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल पर सरकार द्वारा किया जाने वाला खर्च दुनिया में सबसे कम है। एक अच्छी तरह से वित्त पोषित स्वास्थ्य सेवा के स्थान पर, सरकार द्वारा तेज़ी से शक्तिशाली वाणिज्यिक स्वास्थ्य क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया है।
- परिणामस्वरूप, अच्छी स्वास्थ्य देखभाल, केवल उन लोगों के लिए उपलब्ध विलासिता है जिनके पास इसके लिए भुगतान करने के लिए पैसे हैं। जबकि हमारा देश, चिकित्सा पर्यटन के लिए एक शीर्ष गंतव्य है, सबसे गरीब भारतीय राज्यों में शिशु मृत्यु दर, उप-सहारा अफ़्रीका की तुलना में भी अधिक है। वैश्विक मातृ मृत्यु में 17% और पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों में 21% मृत्यु भारत में होती है।
क्या वैश्वीकरण से आय और आर्थिक असमानता बढ़ती है?
वैश्वीकरण का आय और आर्थिक असमानता के साथ एक जटिल और बहुआयामी संबंध है। वैश्वीकरण से संबंधित ऐसे कई कारक हैं जिनके आधार पर आर्थिक असमानता भिन्न हो सकती है। इन कारकों में मौजूदा नीतियां, अलग-अलग देशों की विशिष्ट परिस्थितियां और वैश्वीकरण को प्रबंधित करने का तरीका आदि शामिल हैं।
वैश्वीकरण का असमानता पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही तरह से प्रभाव पड़ता है। यहां विचार करने योग्य कुछ प्रमुख बिंदु दिए गए हैं:
वैश्वीकरण का असमानता पर सकारात्मक प्रभाव:
- आर्थिक विकास: वैश्वीकरण से व्यापार, निवेश और नवाचार को बढ़ावा मिलता है, जिससे आर्थिक विकास को प्रोत्साहन मिलता है। आर्थिक गतिविधियों के विकास से समग्र जीवन स्तर को ऊपर उठाने और कई देशों में गरीबी को कम करने में मदद मिलती है।
- उपभोक्ता लाभ: वैश्विक बाज़ार तक पहुंच से उपभोक्ताओं के लिए कीमतें कम हो सकती हैं, जिससे कम आय वाले लोगों को लाभ हो सकता है। वैश्वीकरण से उत्पाद और सेवाएं अधिक किफ़ायती बन सकती हैं, जिससे कई लोगों के जीवन स्तर में सुधार हो सकता है।
- नौकरी के अवसर: निर्यात-उन्मुख उद्योगों से, विशेष रूप से विकासशील देशों में, नौकरी के अवसर उत्पन्न हो सकते हैं। ये नौकरियाँ खेती या अनौपचारिक श्रम जैसे वैकल्पिक रोज़गार विकल्पों की तुलना में बेहतर आय और कामकाजी परिस्थितियाँ प्रदान कर सकती हैं।
वैश्वीकरण का असमानता पर नकारात्मक प्रभाव:
- आय में असमानताएँ: वैश्वीकरण से कुछ देशों में आय असमानता को बढ़ावा मिल सकता है। वैश्विक अर्थव्यवस्था से जुड़े उद्योगों में कुशल और शिक्षित श्रमिकों को अधिक लाभ हो सकता है, जबकि अन्य क्षेत्रों में कम-कुशल श्रमिकों का वेतन तुलनात्मक रूप से कम हो सकता है।
- धन का केंद्रीकरण: कुछ मामलों में, वैश्वीकरण धन केंद्रीकरण में योगदान कर सकता है। जिनके पास संसाधन हैं और वैश्विक बाज़ारों तक पहुंच है, वे अधिक तेजी से धन जमा कर सकते हैं, जबकि जिनके पास ऐसी पहुंच नहीं है, उन्हें इसे बनाए रखने के लिए संघर्ष करना पड़ सकता है।
- कर से बचाव और चोरी: वैश्वीकरण का उपयोग, कर से बचने और काले धन के उपयोग के लिए किया जा सकता है| धनवान व्यक्ति, निगम आय और संपत्तियों को कम-कर क्षेत्राधिकार में स्थानांतरित करके करों से बचने के लिए वैश्वीकरण का लाभ उठा सकते हैं, जिससे आर्थिक असमानता और अधिक बढ़ सकती है।
- मानकों में गिरावट: प्रतिस्पर्धी वैश्विक माहौल में, कुछ देश, विदेशी निवेश को आकर्षित करने और प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए श्रम और पर्यावरण मानकों को कम कर सकते हैं, जिससे श्रमिकों के लिए काम करने की स्थितियां खराब हो सकती है और पर्यावरण को भी हानि हो सकती है।
संस्थागत और नीतिगत कारक: वास्तव में, वैश्वीकरण किस हद तक असमानता को प्रभावित करता है, यह इस बात पर निर्भर करता है कि इसे कैसे प्रबंधित किया जाता है। सरकारी नीतियां, श्रम नियम, कराधान और सामाजिक सुरक्षा नियम, वैश्वीकरण के कारण होने वाली असमानता को या तो कम कर सकते हैं या बढ़ा सकते हैं।
वैश्विक परिप्रेक्ष्य: वैश्वीकरण से कम विकसित देशों की तुलना में अमीर देशों और व्यक्तियों को अधिक लाभ मिल सकता है जिससे वैश्विक आय असमानता में बढ़ोतरी हो सकती है। विकासशील देशों को अक्सर वैश्विक अर्थव्यवस्था में पूरी तरह से भाग लेने और उससे लाभ उठाने में अधिक कठिनाई का सामना करना पड़ता है।
संक्षेप में, आय और आर्थिक असमानता पर वैश्वीकरण का प्रभाव विभिन्न कारकों पर निर्भर करता है। हालाँकि इससे आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करने और कई लोगों के जीवन स्तर में सुधार करने में मदद मिलती है, लेकिन यदि वैश्वीकरण को ठीक से प्रबंधित नहीं किया जाता, तो इससे असमानता को भी बढ़ावा मिल सकता है। इसलिए नीति निर्माताओं को यह सुनिश्चित करना अत्यंत महत्वपूर्ण है कि वैश्वीकरण के लाभ व्यापक रूप से साझा किए जाएं और किसी भी परिणामी असमानता को दूर करने के लिए उपाय किए जाएं।
संदर्भ
https://tinyurl.com/3w2247xv
https://tinyurl.com/2s3ava98
https://tinyurl.com/2npx7nbu
चित्र संदर्भ
1. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में धारावी को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)
2. आमने-सामने अमीरों और गरीबों की बस्ती को संदर्भित करता एक चित्रण (flickr)
3. ज़मीन पर सोते बुज़ुर्ग को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
4. पैसों के पौधे को संदर्भित करता एक चित्रण (pxhere)
5. छोटी झोपड़ी के पीछे एक विशाल ईमारत को संदर्भित करता एक चित्रण (wikipedia)